अदालतों में मुकदमों की सुनवाई में तारीख पर तारीख लगना कोई नयी बात नहीं है और आम जनता की इस परेशानी से सरकारों से लेकर न्यायपालिका तक सभी परिचित हैं लेकिन इसका समाधान नहीं निकल रहा है। कोई समझ नहीं पा रहा कि ‘तारीख पर तारीख’ की बीमारी से जनता को कब छुटकारा मिलेगा और उसे जल्द से जल्द न्याय मिलना सुनिश्चित हो सकेगा।
न्याय मिलने में देरी के संदर्भ में न्यायिक व्यवस्था पर टिप्पणी करता हुआ एक हिन्दी फिल्म अभिनेता सनी देओल का बहुत ही चर्चित डायलॉग है, ‘‘तारीख पर तारीख।’’ यह डायलॉग आज शीर्ष अदालत में उस वक्त जीवंत हो गया जब उसके संज्ञान में आया कि देहरादून की एक अदालत में एक आपराधिक मामले में तारीख पर तारीख की वजह से मुकदमे की सुनवाई 78 बार स्थगित होने के बावजूद इसमें आरोप निर्धारित नहीं हो पाये हैं।
निचली अदालतों में करीब चार करोड़ मुकदमे लंबित होने में ‘तारीख पे तारीख’ लगने की प्रवृत्ति का भी बड़ा योगदान रहा है। तारीख पे तारीख की वजह से अनेक वादकारियों को दस से बीस साल और इससे भी ज्यादा समय तक न्याय का इंतजार करना पड़ता है।
इस प्रवृत्ति पर शीर्ष अदालत अब कड़ा रुख अपना रही है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि अदालतें भी अब सख्ती करने लगी हैं।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने इसे बहुत गंभीरता से लिया और जांच अधिकारी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निचली अदालत में गवाहों के परीक्षण के लिये निर्धारित तारीखों पर उन्हें पेश किया जाये। न्यायालय ने निचली अदालत को छह महीने के भीतर इस मुकदमे की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया।
तारीख पे तारीख का एक उदाहरण अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ जावेद अख्तर की आपराधिक शिकायत है। इस मामले में मजिस्ट्रेट अदालत में नवंबर, 2020 में आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी अदालत ने दिसंबर में पुलिस को रनौत के खिलाफ जावेद जख्तर की शिकायत की जांच का आदेश दिया था। आपराधिक मानहानि के इस मामले में अदालत ने कगना के खिलाफ फरवरी महीने में समन जारी किया था लेकिन यहां भी तारीख पे तारीख का ही सिलसिला जारी रहा।
कंगना को उच्च न्यायालय से भी इस मामले में राहत नहीं मिली और अंतत: अदालत ने 14 सितंबर को कंगना को पेशी से छूट देने के साथ ही स्पष्ट किया कि 20 सितंबर को पेश नहीं होने पर उनके खिलाफ वारंट जारी किया जायेगा।
यह मामला भी दिलचस्प है। शिकायतकर्ता ने 2012 में मेरठ जिले के जानी थाने में आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धोखाधड़ी और जालसाजी से संबंधित धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराई थी मामले में आरोप पत्र भी दाखिल हुआ। लेकिन अदालत द्वारा आरोप पत्र का संज्ञान लिये जाने के बावजूद 28 जून, 2014 से 15 अक्टूबर, 2020 के बीच सुनवाई के लिए 78 तारीखें लगीं लेकिन आरोपियों के खिलाफ आरोप निर्धारित नहीं हो सके।
आरोप निर्धारित नहीं होने की वजह कुछ भी हो लेकिन वस्तुस्थिति यही है कि शिकायतकर्ता को अभी भी मुकदमे की विधिवत सुनवाई शुरू होने का इंतजार है।
तारीख पर तारीख से संबंधित यह पहला मामला नहीं है जो शीर्ष अदालत के आया है। सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों से संबंधित प्रकरण की सुनवाई के दौरान भी न्यायालय को ऐसे मामलों की जानकारी दी गयी थी जिनमे सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मामला दर्ज किये जाने के बावजूद कई साल तक आरोप पत्र दाखिल नहीं हुए और आरोप पत्र दाखिल होने की वजह से आरोप निर्धारित नहीं हुये।
इस तरह के मामलों में जांच अधिकारियों और आरोपियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहती है। आरोपी अगर प्रभावशाली और पहुंच वाला है तो वह हर बार किसी न किसी आधार पर अदालत से तारीख लेने के लिए अपने वकील पर दबाव बनाता है।
शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने पिछले महीने भी तारीख पर तारीख देने से इंकार करते हुए एक मामले में बहस करने वाले अधिवक्ता दूसरे मामले में व्यस्त होने के आधार पर इस मुकदमे की सुनवाई स्थगित करने से इंकार कर दिया था। यही नहीं, न्यायालय ने सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध कर रहे वकील से खुद बहस करने के लिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो उसने अपील खारिज कर दी थी।
तारीख पर तारीख की एक घटना इसी साल जुलाई महीने में दिल्ली स्थित कड़कड़डूमा अदालत में हुयी थी जहां आरोपी ने सनी देओल का यही डायलॉग चिल्लाते हुए हंगामा किया और तोड़फोड़ की। इस मामले में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। राजधानी के शास्त्री पार्क स्थित झुग्गी में रहने वाले इस आरोपी का मामला 2016 से अदालत में लंबित है।
इसी तरह एक प्रकरण बंबई उच्च न्यायालय के सामने भी आया था। इस मामले में न्यायालय ने सुनैना होले नाम की महिला द्वारा अपने मामले के बारे में ट्वीट करके ‘तारीख पे तारीख’ डायलॉग किया था। लेकिन अदालत में इस पर सख्ती की बजाए नरम रुख अपनाया था।
—-इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम