पीएफआई पर बैन की इनसाइड स्टोरी

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गैर-कानूनी गतिविधियों में संलिप्त पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके सहयोगी संगठनों पर पांच साल के लिए बैन लगा दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से जारी गजट नोटिफिकेशन में पीएफआई को गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया है। सूत्रों ने बताया कि इसके निर्देश 22 सितंबर को ही गृह मंत्रालय में एजेंसियों के साथ हुई उच्चस्तरीय बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दे दिए थे।

पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर प्रतिबंध की मांग लगातार उठ रही थी। आखिरकार गृह मंत्रालय ने यूएपीए कानून की धारा 3 (1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए ये फैसला लिया है। आईएएनएस ने अपने सूत्रों के हवाले से 25 सितंबर को ही बताया था कि गृह मंत्रालय ने पीएफआई को बैन करने की पूरी तैयारी कर ली है।

गृह मंत्रालय ने आज ये कहते हुए पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया है कि ये संगठन वैश्विक आतंकी संगठनों के साथ संबंध और कई आतंकी मामलों में शामिल रहा है। दरअसल पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर कार्रवाई की तैयारी कई महीनों से चल रही थी। जानकारी के मुताबिक केंद्रीय एजेंसी ईडी ने केरल से गिरफ्तार किए पीएफआई के सदस्य शफीक पायेथ के रिमांड में जब से ये खुलासा किया था कि जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पटना रैली में पीएफआई हमले की साजिश रच रहा था। उसके बाद से ही गृह मंत्रालय ने पीएफआई और उसके पदाधिकारियों पर नकेल कसने के लिए एनआईए और ईडी को निर्देश जारी कर दिए थे।

सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश की बात सामने आने और संगठन द्वारा लगातार की जा रहीं गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर गृह मंत्रालय ने पीएफआई के पूरे नेटवर्क को तोड़ने का फैसला किया। इसके लिए बड़े पैमाने पर रूपरेखा गृह मंत्रालय की हाल में हुईं 2 बैठकों में तैयार की गई। फिर 22 सितंबर की एक उच्चस्तरीय बैठक में पीएफआई के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी गई।

सूत्रों के मुताबिक 29 अगस्त को अमित शाह ने एनआईए, ईडी और आईबी के अधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की थी। इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और गृह सचिव अजय कुमार भल्ला भी मौजूद थे। इसी बैठक में पीएफआई से जुड़े लोगों पर बड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। सभी संबंधित एजेंसियों के अधिकारियों से पीएफआई के खिलाफ सबूतों सहित डोजियर तैयार करने को कहा गया।

इसके बाद 19 सितंबर को जब सभी केंद्रीय एजेंसियों ने तैयारी पूरी कर ली, उसके बाद फिर गृह मंत्रालय के अधिकारियों और जांच एजेंसियों के अफसरों की एक बैठक हुई। इसमें सभी एजेंसियों को तालमेल बनाकर छापेमारी और गिरफ्तारी करने का आदेश दिया गया। जिसके बाद 22 सितंबर और 27 सितंबर को केंद्रीय एजेंसियों और राज्य पुलिस ने 300 से ज्यादा पीएफआई के सदस्यों को गिरफ्तार/ हिरासत में लिया।

सूत्रों ने बताया कि 22 सितंबर को जब जांच एजेंसियों की छापेमारी पूरी हो गई, तो उसी दिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एनआईए, ईडी और आईबी के अधिकारियों को बुलाया। एजेंसियों ने छापेमारी के दौरान बरामद हुए सबूतों और अन्य दस्तावेजों के आधार पर पीएफआई और उससे जुड़े 8 संगठनों पर प्रतिबंध की सिफारिश की। जानकारी के मुताबिक प्रतिबंध की कार्यवाही के निर्देश गृह मंत्रालय की तरफ से तो दिए गए, लेकिन इसके पहले कानूनी चुनौतियों का अध्ययन करने को भी कहा गया। फिर जो हुआ वो सबके सामने है।

पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का जो मुख्य आधार गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया है, उनके अनुसार पुलिस और एनआईए द्वारा विभिन्न राज्यों में पीएफआई और उसके प्रमुख संगठनों के कार्यकर्ताओं के खिलाफ 1300 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से कुछ मामले यूएपीए, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और आईपीसी की अन्य जघन्य धाराओं के तहत भी दर्ज किए गए थे।

इसके अलावा पीएफआई के 100 से ज्यादा ऐसे बैंक खाते एजेंसियों के संज्ञान में आए थे, जो खाताधारकों के वित्तीय प्रोफाइल से मेल नहीं खाते थे। इसी को लेकर आईटी अधिनियम की धारा 12ए और 12एए के तहत पीएफआई का पंजीकरण भी रद्द किया गया था। वहीं गृह मंत्रालय ने बताया कि उत्तरप्रदेश, कर्नाटक और गुजरात ने पीएफआई को बैन करने की मांग की थी।

बैन लगने के बाद अब पीएफआई और उसके पदाधिकारी शीर्ष नेतृत्व की गिरफ्तारी के बाद विरोध प्रदर्शन, सेमिनार, सम्मेलन, दान अभ्यास या प्रकाशन और ऐसी किसी भी गतिविधि का आयोजन नहीं कर पाएंगे। प्रतिबंध संगठन से जुड़े सदस्यों को खुद संगठन के दस्तावेज और अन्य जानकारी स्थानीय पुलिस को देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उन्हें जेल भी हो सकती है। वहीं राज्य सरकारों को भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएफआई के दफ्तरों और अन्य गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लगाने की अधिसूचना भी जारी की है।

–आईएएनएस

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