वोट की ख़ातिर फिर राम की शरण में मोदी-योगी

यूसुफ़ अंसारी

29 जून

नई दिल्ली: में कोरोना की दूसरी लहर अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है। तीसरी लहर जल्द आने की चेतावनी दी जा रही है। डेल्टा प्लस वायरस ने तेजी से अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। इस बीच बीजेपी ने अगले साल की शुरूआत में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से शुरू कर दी हैं।

चुनावी तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर जारी है। कभी लखनऊ में मंथन हो रहा है तो कभी दिल्ली में। चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने हिंदू मुस्लिम के बीच तनाव पैदा करने वाले मुद्दे उठाने तो पहले ही शुरू कर दिए थे। अब उसने चुनाव में जीत को सुनिश्चित बनाने के लिए एक बार फिर राम की शरण ले ली है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को अयोध्या के विकास कार्यों की समीक्षा की। कोरोना काल की वजह से यह बैठक वर्चुअल हुई। बैठक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उपमुख्यमंत्री और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और अन्य विकास कार्यों से जुड़े अधिकारी शामिल हुए।

इस बैठक में पीएम मोदी के सामने अयोध्या का विज़न डॉक्यूमेंट पेश किया गया। इसमें बताया गया कि किस तरह से आगामी एक वर्ष में अयोध्या का कायाकल्प किया जाएगा। पीएम मोदी ने बैठक के दौरान मौजूद रहे सभी अधिकारियों और मंत्रियों से फीडबैक लिया। मोदी ने सुझाव दिया कि राम मंदिर बनने से पहले अयोध्या में सभी विकास कार्य पूरे कर लिए जाएं।

अगले साल फरवरी-मार्च में होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले यह बैठक काफी महत्वपूर्ण है। इसे चुनाव से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए। इस बैठक के ज़रिए पीएम मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश समेत देश की जनता को यह संदेश देने की पुरज़ोर कोशिश की है कि राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी के लिए आज भी सर्वोपरि है। राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ अयोध्या के विकास के लिए किए गए वादों को पूरा करने के लिए वो तन मन धन से जुटी हुई है। उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी बीजेपी को चुनावों में इसका फायदा मिलेगा।

दरअसल संघ परिवार अयोध्या को शुरू से ही एक विश्व स्तरीय धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का सपना संजोए हुए हैं। वो शुरु से ही कहता रहा है कि जैसे मुसलमानों के लिए मक्का और ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी है ठीक उसी तर्ज पर अयोध्या का विकास किया जाएगा। नवंबर 2019 में राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला आने के बाद बीजेपी ने इसे मूर्त रूप देने का काम भी शुरू कर दिया है। हालांकि इसका विज़न और ब्लूप्रिंट काफी पहले से तैयार था। अब विधानसभा चुनाव से पहले इस काम को गति दे कर प्रदेश के वोटरों को लुभाने की कोशिश की जा रही है।

बीजेपी इसी प्रोजेक्ट के सहारे चुनावी वैतरणी भी पार करना चाहती है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने ख़ुद अयोध्या के विकास कार्यों की समीक्षा की है। राम मंदिर निर्माण की भी समीक्षा के लिए आगे चलकर अलग से बैठक बुलाई जाएगी। ज़ाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस तरह की समीक्षा बैठकों के ज़रिए लगातार प्रदेश और देश की जनता को यह याद दिलाते रहेंगे कि वह राम मंदिर निर्माण और अयोध्या के विकास कार्यों के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं।

दरअसल उत्तर प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान काफी अव्यवस्था रही। ऑक्सीजन की कमी से कई लोगों की मौत हुई। सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन सिलेंडर मांगने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की गई। योगी सरकार पर कोरोना के मामले और इससे होने वाली मौत के आंकड़े छुपाने के भी आरोप हैं। इससे जनता में सरकार के ख़िलाफ काफी ग़ुस्सा है। लोगों की नाराज़गी और ग़ुस्से की काट सिर्फ राम के पास है। इसलिए बीजेपी सब कुछ छोड़ छाड़ कर राम की शरण में चली गई है। बीजेपी को पूरा यक़ीन है कि इससे कोरोना की अव्यवस्था और महंगाई की मार झेल रहे उसके वोटर इन मुद्दों को भुलाकर उसकी शरण में आ जाएंगे।

दरअसल राम नाम के सहारे ही बीजेपी आज इस मुकाम पर पहुंची है कि केंद्र में पिछले 7 साल से उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार है। ज्यादातर राज्यों में सत्ता पर उसी का क़ब्ज़ा है। यह सब राम की कृपा से हुआ है। 1989 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने पहली बार अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने का मुद्दा उठाया था। तब वह 1984 में जीती 2 सीटों से बढ़कर 86 सीटों तक पहुंच गई थी। तब बीजेपी ने केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार को समर्थन दिया था। दूसरी तरफ से इस सरकार को वामपंथियों का समर्थन हासिल था। वीपी सिंह ने पिछड़ों के आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किया तो इसकी काट के लिए तब के बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने देशभर में रथ यात्रा निकालकर राम मंदिर निर्माण को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया।

बीजेपी के इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाने के बाद 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ उसकी सरकार बनी थी। इसी के दौरान 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा के ज़रिए बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया। इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की बीजेपी की चार सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया था। लेकिन इसके 10 महीने बाद हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। दरअसल 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव की नई-नई बनी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा। इस तरह दलित और पिछड़े वोटों के ध्रुवीकरण से बीजेपी सत्ता से दूर हो गई। कमंडल पर मंडल भारी पड़ा।

सपा बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी को इस बात का एहसास हो गया था कि गठबंधन अगर लंबा चलता है तो बीजेपी का भविष्य अंधकार में है। लिहाज़ा उसने जोड़-तोड़ करके पहले इस गठबंधन को तोड़ा। 1995 में बीएसपी को समर्थन देकर मायावती को पहली बार मुख्यमंत्री बनवा दिया। कुछ दिन बाद समर्थन वापस भी ले लेकर सरकार गिरा दी। 1996 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा बनी। इसमें बीजेपी और बीएसपी ने छह-छह महीने मुख्यमंत्री पद अपने पास रखने के फार्मूले के तहत सरकार बनाई। पहला मौक़ा बीएसपी को मिला। बीजेपी के समर्थन से मायावती दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। 1997 में मायावती ने अपना 6 महीने का कार्यकाल पूरा करने के बाद बीजेपी को सत्ता हस्तांतरण करने से इनकार कर दिया। तब कल्याण सिंह ने बीएसपी में ही तोड़फोड़ करके बीजेपी की सरकार बना ली।

कल्याण सिंह के ख़िलाफ जल्दी ही पार्टी में बग़ावत हुई तो बीजेपी को उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। हालात यहां तक पहुंचे की कल्याण सिंह को बीजेपी भी छोड़नी पड़ी। उनकी जगह पहले रामप्रकाश गुप्ता और फिर राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन बीजेपी 2002 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई। सत्ता से बीजेपी का यह वनवास 2017 में दूर हुआ। तब बीजेपी ने राम मंदिर के साथ हिंदू वादी मुद्दों और पीएम मोदी की ज़बरदस्त ब्रांडिंग के सहारे धमाकेदार तरीक़े से सत्ता में वापसी की। बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 325 सीटों पर जीत हासिल की थी।

अब बीजेपी के सामने अपने इस पुराने प्रदर्शन को दोहराने की बड़ी चुनौती है। बीजेपी के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर भी रस्साकशी और सिरफुटव्वल चल रही है। पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और यहां तक कि संघ परिवार भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज से खुश नहीं बताया जाता। ऐसे संकेत मिल रहे हैं। सबसे बड़ा संकेत तो यही है कि हाल ही में योगी आदित्यनाथ के जन्मदिन पर सोशल मीडिया पर ना तो पीएम ने बधाई दी और ना ही गृह मंत्री अमित शाह ने। इसे इन दोनों की योगी से नाराज़गी के तौर पर देखा जा रहा है।

इधर उत्तर प्रदेश बीजेपी के पोस्टरों से अचानक गायब हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर का मामला भी राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय रहा। काफी दिन से ऐसा माना जा रहा था कि 2024 में योगी मोदी की जगह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। योगी के क़रीबी लोग इसे हवा भी दे रहे थे। लेकिन हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह सफाई देनी पड़ी कि उनकी कोई राष्ट्रीय राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। वो महज़ बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और बतौर कार्यकर्ता ही पार्टी का हर हर आदेश माऩे को हमेशा तैयार हैं।

कुछ दिन पहले संघ परिवार ने भी उत्तर प्रदेश के चुनावों को लेकर लखनऊ में मंथन बैठक की थी।उसके बाद योगी सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए बीजेपी आलाकमान ने विशेष तौर पर बीएल संतोष को भेजा था। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके तमाम मंत्रों से अलग-अलग मुलाक़ात करके फीडबैक लिया। उसके बाद बीजेपी में अगले मुख्यमंत्री को लेकर दबी जुबान में चर्चा शुरू हुई। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने यह कह दिया कि मुख्यमंत्री का फ़ैसला आलाकमान करेगा। इसके बाद योगी आदित्यनाथ को केशव प्रसाद मौर्य के घर जाकर यह संदेश देना पड़ा की पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक है। बीजेपी आलाकमान की तरफ से भी यह साफ संकेत देने पड़े कि अगला चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

बताया यह भी जा रहा है कि बीजेपी के विधायकों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के कामकाज को लेकर के काफी नाराज़गी है। इस नाराज़गी ख़ामियाज़ा बीजेपी को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। इन तमाम तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए राम मंदिर निर्माण और ख़ुद राम बीजेपी के लिए रामबाण साबित हो सकते हैं।इसीलिए बीजेपी वक्त रहते उन्हीं की शरण में चली गई है। ताकि जग के संकटमोचक बीजेपी के को भी तमाम संकटों से मुक्ति दिला कर सत्ता में उसकी वापसी सुनिश्चित करा सकें।

बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का वादा पूरा करने के बाद पहली बार चुनाव में उतरेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि उस पर राम की कितनी कृपा होती है। वैसे राम नाम से हमेशा बीजेपी को फ़ायदा होता रहा है। इस बार भी बीजेपी उम्मीद कर रही है कि राम नाम के सहारे वो फिर चुनावी वैतरणी को पार कर लेगी। उत्तर प्रदेश में वैसे भी मंडल वादी ताक़तें काफी कमज़ोर हो चुकी हैं। कमंडल ही राजनीति पर हावी है। चुनाव आते-आते बीजेपी राम मंदिर के साथ-साथ तमाम हिंदूवादी मुद्दों को गरमाएगी तो उसे फायदा पहुंचना निश्चित है।

( इस लेख में व्यक्त किये हुए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

–इंडिया न्युज़ इस्ट्रीम

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