देश में अमृत महोत्सव की धूम है। आजादी के पचहत्तर साल का ढोल खूब पीटा जा रहा है और केंद्र की भाजपा सरकार इसे भी एक इवेंट के तौर पर आयोजित कर सियासी फायदा उठाने में लगी है। शायद देश को काले जादू से उबारने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर-घर तिरंगा अभियान शुरू किया और उससे पहले सोशल मीडिया पर डीपी बदलने को लेकर भी जोर-शोर से एक मुहिम चलाई गई। सारा खेल सियासी है। आजादी का जश्न मनाएं और घर-घर तिरंगा भी। लेकिन तीन-चार साल पहले 15 अगस्त, 2022 तक देश के हर नागरिक को पक्का घर मुहैया कराने की बात कहने वाले नरेंद्र मोदी अब इसकी चर्चा तक नहीं करते। अब तो अमृत महोत्सव और हर घर तिरंगा का नारा उछाल कर उन वादों को बिसराने में लगी हुई है सरकार। तिरंगा अभियान सरकार ने चलाया और डीपी बदलने की बात हुई तो कांग्रेस ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की उस तस्वीर को सार्वजनिक किया जिसमें वे तिरंगा हाथों में लिए दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर को सार्वडनिक करते हुए कांग्रेस ने भाजपा नेताओं को चुनौती दी कि इसतरह कीकोई तस्वीर हेडगवार, गोलवरकर या श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भाजपा के पास है तो सार्वजनिक करे।
दरअसल आरएसएस की यह कमजोर नस है। अरसे तक उसने अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया। अपने भगवा मोह की वजह से आरएसएस भी विवादों में रहा है। कुछ घटनाएं भी घटीं हैं जिसकी वजह से कहा जाता रहा है कि आरएसएस तिरंगे को लेकर गंभीर नहीं रहा। यहां तक कि उसने कई मौकों पर तिरंगा फहराने का विरोध तक किया है। लेकिन लंबे अरसे बाद उसने सोशल मीडिया पर तिरंगा को अपनाया। सवाल यह है कि आरएसएस अब ऐसा कर उन विवादों पर विराम लगाना चाहता है जो उसके साथ लंबे समय से जुड़ा है।
तिरंगा और आरएसएस की बात होती है तो नागपुर अदालत के केस नंबर 176 चर्चा जरूर होती है। इस केस से आरएसएस का असली चेहरा सामने आता है। अगस्त 2013 में नागपुर की एक अदालत ने 2001 के एक मामले में दोषी तीन आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया था। बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी का कथित अपराध बस इतना था कि उन तीनों ने 26 जनवरी, 2001 को नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा झंडा फहराने की कोशिश की थी। संघ इस पर बेतरह तिलमिलाया और उसने तीनों पर मुकदमा दर्ज करा दिया। बारह साल तक मुकदमा चला। बाद में संघ को लगा कि इससे उसकी फजीहत हो रही है। उसने खुद ही इस घटना से पीछा छुड़ाना चाहा। तब तक यह बात साफ हो गई थी कि आरएसएस अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराना चाहता है। इसे लेकर जब-तब संघ और भाजपा को कठघरे में खड़ा करते हुए मुकदमानंबर 176 की याद दिलाई जाती थी।
कांग्रेस इस मामले को लेकर आक्रामक दिखी। वह लगातार इसे लेकर भाजपा और संघ को घेरती रही। जाहिर है कि इससे संघ बैकफुट पर आ जाता था और उसकी देशभक्ति पर सवाल खड़े किए जाते रहेंगे। इस तथ्य को सामने रख कर आरएसएस ने वह शिकायद बारह साल बाद वापस ली और तब जाकर वे युवक बरी हो पाए। बाद में तिरंगे को लेकर आरएसएश ने जोरशोर से प्रचार किया और देशभक्ति का नया इतिहास लगने में जुटे हुए हैं।
इस बीच उदयपुर अदालत पर 14 दिसंबर, 2017 को भगवा झंडा फहराया। आरोप है कि आरएसएस के संगठनों से जुड़े लोगों ने फहराया था। हालांकि उस कोर्ट पर तिरंगा पहले से ही लहरा रहा था। एक मुस्लिम की हत्या में शंभूनाथ रैगर को गिरफ्तार किया गया था। इसके विरोध में संघ से जुड़े संगठनों ने उदयपुर में आंदोलन किया। उसके कार्यकर्ता भगवा झंडा हाथ में लेकर उदयपुर कोर्ट पहुंचे और कोर्ट की इमारत पर चढ़कर तिरंगा उतारकर भगवा फहरा दिया। लेकिन दिलचस्प यह है कि सरकार ने इन लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। यह घटना नागपुर की घटना से कम गंभीर नहीं थी, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने आंखें मूंद लीं। वैसे आरएसएस ने सिर्फ दो बार 1947 और 1950 में नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा फहराया था। लेकिन फिर 52 सालों तक उसने तिरंगा से परहेज किया। जब 2001 की घटना के बाद संघ की देश भर में आलोचना होने लगी और कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया तो आरएसएस ने 26 जनवरी, 2002 को नागपुर मुख्यालय पर तिरंगा फहराया। इसका खूब प्रचार किया गया। लेकिन यह बात शीशे कीतरह साफ है कि अगर उन तीन युवकों ने 2001 में संघ के मुख्यालय में तिरंगा न फहराया होता तो आरएसएस 2002 में कभी भी तिरंगा नहीं फहराता।
हालांकि अब आरएसएस जिस तरह से तिरंगे का प्रचार कर रहा है लेकिन कुछ साल पहले तक उसके विचार कुछ और थे। एक अंग्रेजी दैनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक चेन्नई में 2015 में एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई थी, जिसमें आरएसएस से जुड़े लोगों ने कहा था कि देश का ध्वज तिरंगा नहीं बल्कि एकमात्र ध्वज भगवा ही होना चाहिए था, क्योंकि अन्य रंग साम्प्रदायिक विचार का प्रतिनिधित्व करते हैं।कर्नाटक के पूर्व मंत्री और आरएसएस के पूर्व प्रचारक केएस ईश्वरप्पा ने इसी साल मई में कहा था कि संघ का ध्वज एक दिन राष्ट्रीय ध्वज बनेगा। भगवा झंडे का सम्मान इस देश में हजारों वर्षों से हो रहा है।
तिरंगा को लेकर आरएसएस के प्रमुख विचारकों में से एक एमएस गोलवलकर के विचार से भी उनके तिरंगा प्रेम को समझा जा सकता है। उन्होंने ने अपनी किताब बंच ऑफ थॉट्स में लिखा है कि देश के नेता एक नया झंडा लाए हैं। उन्होंने ऐसा क्यों किया। यह सिर्फ बहकने और नकल करने का मामला है। संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने 1947 में एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया था कि तिरंगे के साथ कई समस्याएं हैं। यह कैसे राष्ट्रीय ध्वज हो सकता है। भारतीय नेता भले ही हमारे हाथों में तिरंगा दे दें लेकिन यह कभी भी हिंदुओं के सम्मान में नहीं होगा। तीन रंगों वाला झंडा देश के लिए हानिकारक है। यह निश्चित रूप से बुरा प्रभाव डालेगा। वैसे अब आरएसएस ने अपना डीपी बदल डाला है। तिरंगे को लेकर खूब प्रचार भी किया जा रहा है। भाजपा नेता भी उत्साह में हैं और सरकार भी लेकिन इस पूरे खेल के पीछे की सियासत को समझना बेहद जरूरी है। भाजपा को इस तरह की सियासत करने में महारत हासिल है। इसे समझना बेहद जरूरी है, देश के लिए भी और तिरंगा की शान के लिए भी¬¬¬