भारत की ऑर्थोपेडिक, कार्डियक इम्प्लांट इंडस्ट्री वित्त वर्ष 2028 तक 5 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी

नई दिल्ली । मजबूत घरेलू मांग और बढ़ती निर्यात उपस्थिति के कारण भारत का ऑर्थोपेडिक और कार्डियक इम्प्लांट सेक्टर वित्त वर्ष 2028 तक 4.5 से 5 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। यह जानकारी सोमवार को जारी एक लेटेस्ट रिपोर्ट में दी गई।

केयरएज रेटिंग्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में यह क्षेत्र (निर्यात सहित) 2.4 से 2.7 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।

भारतीय इम्प्लांट निर्माता घरेलू बाजार में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और धीरे-धीरे निर्यात बाजार में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश कोरोनरी और ऑर्थोपेडिक इम्प्लांट उत्पादों के आयात पर केवल 7.5 प्रतिशत सीमा शुल्क के साथ अमेरिका के साथ किसी भी संभावित व्यापार सौदे से टैरिफ में कमी आने की संभावना नहीं है, जिससे घरेलू निर्माताओं के लिए बाजार की गतिशीलता में कोई खास बदलाव आने की संभावना नहीं है।

हालांकि मूल्य सीमा में छूट मिलना एमएनसी की तुलना में घरेलू निर्माताओं के लिए प्रतिस्पर्धी परिदृश्य को बदल सकते हैं।

घरेलू इम्प्लांट निर्माताओं की बिक्री वित्त वर्ष 2024 में समाप्त चार वर्षों के दौरान 28 प्रतिशत (निर्यात के लिए 37 प्रतिशत सीएजीआर सहित) सीएजीआर से बढ़ी है, जो इसी अवधि के दौरान एमएनसी के लिए 12 प्रतिशत की बिक्री सीएजीआर से आगे निकल गई है।

प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण और सरकार द्वारा स्पॉन्सर्ड बीमा योजनाओं में बढ़ती भागीदारी की वजह से घरेलू संस्थाओं की बिक्री मात्रा में वृद्धि और भी अधिक थी।

केयरएज रेटिंग्स के निदेशक क्रुणाल मोदी ने कहा, “भारत का मेडिकल इम्प्लांट क्षेत्र मजबूत घरेलू मांग और बढ़ते निर्यात से प्रेरित होकर मजबूत विकास पथ पर है।”

पिछले 5-6 वर्षों के दौरान इम्प्लांट के लिए भारत की निर्यात वृद्धि दर इम्प्लांट आयात से काफी आगे निकल गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति व्यक्ति आय और अफोर्डिबिलिटी में वृद्धि, स्वास्थ्य सेवा के प्रति बढ़ती जागरूकता, बढ़ती उम्रदराज आबादी, स्वास्थ्य सेवा के इंफ्रास्ट्रक्चर में विस्तार और बीमा पेनेट्रेशन में वृद्धि से लंबी अवधि में इम्प्लांट की घरेलू मांग में तेजी आने की उम्मीद है।

प्राइस कैप ने विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उच्च-मार्जिन वाले उत्पादों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, जिससे उन्हें भारतीय बाजार से अपने कुछ प्रीमियम उत्पादों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

हालांकि, इससे अफोर्डिबिलिटी में सुधार हुआ, खासकर घरेलू कंपनियों द्वारा मैन्युफैक्चर्ड इम्प्लांट के लिए, जिससे उन्हें अपने बाजार हिस्से का विस्तार करने में मदद मिली।

रिपोर्ट के अनुसार, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने अफोर्डिबिलिटी में और अधिक सुधार किया और बाजार का विस्तार किया।

–आईएएनएस

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