राजस्थान के सम्राट अशोक ही रहेंगे…….? क्या राजस्थान भी पंजाब बनेगा*

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा ) ने हाल ही भूपेन्द्र पटेल जैसे अनजान चेहरे को मुख्यमंत्री बना और विजय रुपाणी मंत्रिपरिषद के सभी मंत्रियों को बदल कर गुजरात में ‘कामराज-प्लान’ लागू किया है ।कांग्रेस ने भी इसी तर्ज़ पर पंजाब में अपने ताकतवर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का त्यागपत्र करवा और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की पसन्द और एससी कार्ड चलते हुए नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी की है।इस राजनीतिक भूचाल के बाद अब सभी की नज़रें राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों की तरफ़ गड़ गई है ।

इन दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों अशोक गहलोत और भूपेश बघेल के खिलाफ़ उनकी पार्टी के ही नेता और ग्रूप विशेष के विधेयक विरोध का झण्डा उठायें हुए है। असन्तुष्ट गुट ढाई ढाई साल के फ़ार्मूले को लागू करने की माँग कर रहा है।

राजनीतिक सूत्रों के अनुसार राजस्थान और पंजाब की ज़मीनी परिस्थितियों में रात दिन का अन्तर है इसलिए नही लगता कि राजस्थान पंजाब बनेगा। लोगों के ज़ेहन में यह सवाल है कि राजस्थान के सम्राट (सेवक) अशोक गहलोत ही रहेंगे अथवा अन्य कोई……?

पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की विगत 17 सितंबर को दिल्ली में राहुल गांधी से हुई मुलाकात ने राजस्थान के सियासी पारे को फिर से गरमा दिया है ।इससे पूर्व राहुल ने 15 सितंबर को राजस्थान महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रेहाना रियाज से भी फीडबैक लिया था। इससे पायलट खेमा काफी सक्रिय बताया जा रहा है। उनके समर्थकों को उम्मीद है कि अब अच्छे दिन आएंगे।

वहीं पायलट की राहुल गांधी से 14 महीनों माह बाद हुई ताज़ा मुलाकात ने उनके विरोधियों के कान खड़े कर दिए है । हालाँकि इस मुलाक़ात का कोई सार्वजनिक ब्यौरा बाहर नही आया है लेकिन पायलट समर्थकों के चेहरों पर रौनक राजस्थान में भी कुछ बदलाव की ओर इशारा कर रही है।

हालांकि राजनीति के जानकार पंजाब जैसा बड़ा बदलाव तो राजस्थान में नहीं मानते,लेकिन पायलट के समर्थकों को अब जल्द ही गहलोत मंत्रिमंडल में समुचित प्रतिनिधित्व एवं राजनीतिक नियुक्तियों में भागीदारी मिल सकती हैं। पायलट को फिर से प्रदेश कांग्रेस की कमान और उप मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है। बताते है कि पायलट को आलाकमान ने इसके संकेत दिए है ।

हालाँकि पायलट स्वयं और उनके समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने एक ट्वीट कर राजस्थान की सियासत को और हवा दे दी है। आचार्य ने अपने ट्वीट में कहा कि पंजाब की हवायें राजस्थान और छत्तीसगढ़ का मौसम भी बिगाड़ सकती हैं। इसके मायने यहीं लगाए जा रहे है कि दोनों प्रदेशो में शीघ्र बदलाव होगा। हालांकि, आचार्य पहले भी पायलट के पक्ष में बोल व ट्वीट कर चुके हैं। उन्हें पायलट के काफी निकट माना जाता है। पायलट के खास सिपहसालार पूर्व प्रदेश कांग्रेस में संगठन महासचिव महेश शर्मा ने भी एक निजी चैनल में कहा कि– राजस्थान में भी नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए क्योंकि पायलट की मेहनत के दम पर राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनी है। ऐसे में आलाकमान को चाहिए कि पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाएं। उन्होंने कहा कि अगर पायलट को सीएम बनाते है तो आगामी चुनाव में भी फायदा मिलेगा।

‘ऑपरेशन राजस्थान’ कब होगा ?

राजनीतिक जानकार बताते है कि पंजाब ऑपरेशन के बाद अब ‘ऑपरेशन राजस्थान’ की तैयारी शुरू हो गई है और इसकी शुरुआत सचिन पायलट की राहुल गांधी मुलाकात से हों गई है। इस मुलाकात के बाद प्रदेश के कई राजनीतिक अटकलें लगनी शुरू हो गई है ।पार्टी से बगावत के बाद पिछले एक साल में राहुल गांधी सचिन पायलट से पहली दफा मिले हैं।कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि इस दौरान तीन मुद्दों पर बात हुई है।पहला राजस्थान में संगठन में बदलाव,दूसरा गहलोत मंत्रिमंडल में पूर्ण बदलाव और तीसरा सचिन पायलट की भावी भूमिका मुद्दा। पायलट समर्थकों का दावा है कि पायलट को पुनःराजस्थान कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जायेगा । साथ ही अगले महीने गहलोत मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल और संगठन में बदलाव हो सकता है।

पायलट समर्थकों का यह भी दावा है कि पार्टी हाईकमान गहलोत मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों की छुट्टी कर नया मंत्रिमंडल चाहता है। इस बदलाव के लिए पार्टी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्वास्थ्य में सुधार और उनके नियमित कामकाज शुरू करने का इंतजार कर रही है।
राजनीतिक सूत्रों ने राजस्थान में सचिन पायलट समर्थकों को सरकार संगठन में जगह मिलना तय माना जा रहा है लेकिन सचिन पायलट की भूमिका को लेकर मंथन चल रहा है।बताते है कि पार्टी हाईकमान सौच रहा है कि पायलट को अभी मैदान में उतारा जाए या एक साल इंतजार किया जाए।

ओएसडी लोकेश शर्मा के ट्वीट ने गहलोत की मुश्किलें बढ़ाई

इधर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा के ट्वीट ने उनकी मुश्किलें बढ़ाई हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के वक्त लोकेश शर्मा ने शायराना अंदाज में तंज कसा था कि मज़बूत को मजबूर किया जा रहा है. बाड़ ही खेत को खा रही है..तो फिर फसल कैसे बचेगी? हालांकि गहलोत ने समय पर डैमेज कंट्रोल करते हुए लोकेश शर्मा से इस्तीफा ले लिया।

प्रदेश में सत्ताधारी कांग्रेस की राजनीति में पिछलें दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट के ग्रूपों में मंत्रिमंडल और पार्टी संगठन के पुनर्गठन को लेकर जो खिंचतान हुई और एक के बाद एक पार्टी हाई कमान के दूतों के प्रदेश दौरें हुए उससे तरह तरह के क़यास लगाए गए थे लेकिन अंततोगत्वा निष्कर्ष यहीं रहा कि राजस्थान की राजनीति के तों असली सम्राट अशोक गहलोत ही है।

गहलोत ने यह भी साबित किया कि राजनीति में चीते की चाल से नहीं बल्कि शेर की चाल से ही राजा बना जा सकता है। उनके ज़ेहन में अपने बुजुर्ग नेता दिवंगत मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की यह बात हमेशा रहती है कि राजनीति में लम्बी रेस का खिलाड़ी बनने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जल्दबाज़ी के स्थान पर धीर- गम्भीर और मर्यादित रह कर नेतृत्व का विश्वास हासिल किया जा सकता है। शायद कभी उन्होंने यह मन्त्र सचिन को भी दिया हों,लेकिन जल्दबाज़ी में बुलंदियों के शिखर पर पहुँचने के महत्वाकांक्षी सचिन पायलट ने दिल्ली में डेरा डाल कर हाई कमान पर बहुत अधिक दवाब बनाया है। जबकि अशोक गहलोत ने अपने सिविल लाईन्स जयपुर स्थित आठ नम्बर के मुख्यमन्त्री बंगलों से बाहर निकले बिना यह जता दिया कि पार्टी में उनका क़द बहुत बड़ा है और हाई कमान उनकी बातों को किसी और के मुक़ाबलें अधिक तवज्जों देतीं है।

गहलोत ने हाई कमान के संज्ञान में इस तथ्य को ज़बर्दस्त ढंग से रखा कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री रहते सचिन पायलट ने अपने असंतुष्ट साथियों के साथ बग़ावत कर राज्य सरकार को गिराने का प्रयास किया और हाई कमान की सर्वोच्यता को भी चुनौती दी।गहलोत ने हाई कमान को स्पष्ट कर दिया कि सरकार बचाने वाले पार्टी विधायक के साथ बीएसपी से कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस को समर्थन देने वाले निर्दलीयों के ऊपर बगावत करने वाले विधायकों को सत्ता और संगठन में स्थान देने से अच्छा संदेश नही जायेगा। उन्होंने मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन की रिक्त नौ स्थानों को भरने के लिए मंत्रिमंडल का विस्तार करने पर अपनी सहमति जताई है ।

अशोक गहलोत अपनी सादगी सौम्यता संगठन और ज़मीन से जुड़े खाँटी नेता के रूप में जाने जाते है,इसीलिए उन्हें राजस्थान का गाँधी भी कहा जाता है। उन्होंने राजनीति में लम्बी पारी खेलते हुए कई मौक़ों पर अपनी जादूगरी भी दिखाई है इसलिए राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजस्थान में गहलोत की मर्ज़ी के मुताबिक़ ही सत्ता और संगठन में बदलाव होंगे और यदि ऐसा नही होता तो प्रदेश में समय से पहलें यूपी चुनाव के साथ मध्यावधि चुनाव के हालात भी पैदा हो सकते है।

राहुल गांधी राजस्थान का विवाद सुलझाने में बड़ी भूमिका निभायेंगे*

बताते है कि पंजाब के बाद अब राहुल गांधी राजस्थान का विवाद सुलझाने में भी बड़ी भूमिका निभाने वाले है। बताया जा रहा है कि वे अपने परिवार की हिमाचल प्रदेश की यात्रा के पश्चात इस माह के आखिर में राजस्थान का विवाद सुलझाएंगे।
पार्टी के विश्वस्त सूत्रों की माने तो

राहुल गांधी तीन चार राज्यों की सत्ता में सीमित रह गई कांग्रेस पार्टी के संगठन को मज़बूत करना और सभी वर्गों के कार्यकर्ताओं का सत्ता-संगठन में समुचित प्रतिनिधित्व चाहते है।
जानकारों के अनुसार नवरात्र के दौरान प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल हो सकता है। इसके साथ ही राजनीतिक नियुक्तियां भी हो सकती है।

सूत्रों का कहना है कि राजनीतिक नियुक्तियों की सूची तैयार होकर दिल्ली आई है। हालांकि सूची को अभी फाइनल रूप नहीं दिया गया है। इसके लिए एक बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश प्रभारी अजय माकन, प्रदेश कांग्रेसअध्यक्ष और शिक्षा राज्य मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चर्चा होकर अंतिम रूप दिया जाएगा।
बताते है कि राहुल गांधी अभी तक कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी नहीं मिलने से नाराज हैं लेकिन आने वाले दिनों में सभी विवादों का पटाक्षेप होने और मरु प्रदेश के मौसम के और अधिक सुहावने होने की उम्मीद है।

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