क्या चन्नी चलेंगे मांझी की राह पर?

पंजाब में विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना तो लिया है लेकिन इसे दलित सशक्तीकरण नहीं कहा जा सकता क्योंकि पूरी संभावना है कि चुनाव के बाद पार्टी प्रदेशाध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाये अर्थात चन्नी की तख्तपोशी ‘स्टॉप गैप अरेंजमेंट‘ मात्र है।

सात साल पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को भी अचानक महादलितों के सशक्तीकरण की याद आई थी जब मई 2014 लोकसभा चुनावों में जनता दल (यूनाईटेड) के खराब प्रदर्शन (पार्टी को 40 में से केवल 2 सीटें मिली थीं) की जिम्मेवारी स्वीकार करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने जितन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया।

अगले नौ महीनों तक नीतिश ने पर्दे के पीछे से राजकाज चलाने की कोशिश की जो मांझी को पसंद नहीं आया। कई मौकों पर मांझी ने खुलकर नीतिश के प्रति असहमति जताई और आरोप लगाया कि उन्हें अपमानित किया जा रहा है। उन्हें फरवरी 2015 में हटा दिया गया और नीतिश फिर खुद मुख्यमंत्री बन गये। मांझी ने अपनी पार्टी ‘हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा‘ बनाई और नीतिक के लिए असुविधाजनक स्थिति पैदा कर दी। यह अलग बात है कि पिछले विधानसभा चुनावों से पहले उनकी पार्टी जद (यू) के साथ हो ली। इस सारे घटनाक्रम ने लेकिन नीतिश कुमार की सोच के खोखलेपन को उजागर ही किया।

अब पंजाब की बात करें, चन्नी पंजाब के ही नहीं, लगभग उत्तर भारत में जिसमें हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, दिल्ली और उत्तराखंड शामिल हैं, प्रथम दलित मुख्यमंत्री हैं। केवल उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री रही हैं। उनके चार कार्यकाल में आखिरी कार्यकाल 2007-2012 था।

उत्तर प्रदेश में दलित आबादी 21.3 फीसदी है और पंजाब में 31.9, जो देश में सर्वाधिक है। पंजाब में हिंदू व सिख दलित दोनों हैं। उत्तर प्रदेश व पंजाब, दोनों प्रदेशों में अगले वर्ष चुनाव होने जा रहे हैं।

क्रिकेट की शब्दावली का इस्तेमाल किया जाए तो चन्नी कांग्रेस की तरफ से भेजे गये ‘नाईट वाचमैन‘ हैं और ज्यादा संभावना इसी बात की है कि चुनाव बाद कांग्रेस सत्ता में आई तो सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाया जाए। वास्तव में, चुनावों से पहले पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में भी पेश कर सकती है।

सिद्धू पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह व शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की तरह जट हैं। जट चाहे पंजाब हो, हरियाणा, राजस्थान या उत्तर प्रदेश केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ हैं। यह जट पिछले साल बनाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के अग्रिम मोर्चे पर हैं।

हालांकि ज्यादातर दलित सिख या मजहबी सिख शिरोमणि अकाली दल के मतदाता हैं और हिंदू दलित कांग्रेस के। बादल प्रदेश में दलितों के मत आकर्षित करने के लिए मायावती की बहुजन समाज पार्टी से पहले ही हाथ मिला चुके हैं। इसी वर्ष 14 अप्रैल यानी अंबेडकर जयंती पर उन्होंने घोषणा की थी कि यदि उनका गठबंधन सत्ता में आया तो किसी दलित को उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।

शिरोमणि अकाली दल ने चालीस साल पुराने गठबंधन सहयोगी भारतीय जनता पार्टी से तभी नाता तोड़ा जब उसने महसूस किया कि किसान कृषि कानूनों को स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं। पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में से 62 सीटें ग्रामीण मानी जाती हैं और कृषि कानूनों का असर चुनाव में मतों के पैटर्न पर पड़ेगा ही।

बसपा के संस्थापक, दिवंगत कांशीराम, मूलत: दलित सिख थे जो पंजाब के होशियारपुर से थे लेकिन पार्टी का ग्राफ हाल के वर्षों में पंजाब व उत्तर प्रदेश में गिरा ही है। हाल में पंजाब में पार्टी को केवल डेढ़ फीसदी वोट मिले थे जबकि अतीत में आठ से दस फीसदी वोट मिलता रहा है।

आम आदमी पार्टी भी पंजाब में दलित कार्ड खेल रही है। भाजपा के कमजोर होने और कांग्रेस की आपसी फूट ने आप को मजबूत होने का मौका दिया है।

हालांकि मांझी के अनुभव को ध्यान में रखते हुए इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि नाईट वाचमैन लंबी पारी खेल ही नहीं सकता। आखिर पूर्व ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज जैसन गिलेस्पी ने 2006 में बांग्लादेश के खिलाफ 201 नॉट आऊट की पारी खेली थी।

इंडिया न्यूज स्ट्रीम

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