रूस के पी एम ने शैलेन्द्र का गीत गाकर नेहरू का स्वागत किया

क्या आपको मालूम है कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मास्को गए थे तो रूस के प्रधानमंत्री ने शैलेन्द्र का गाना गाकर उनका स्वागत किया था।
रुड़की के एक सेवानिवृत प्राचार्य ने शैलेन्द्र पर एक लिखी किताब में यह जानकारी दी है।इस किताब का विमोचन पिछले दिनोंप्रख्यात गीतकार जावेद अख्तर नेकिया।
साहित्य अकेडमी से भारतीय साहित्य निर्माता शृंखला में छपी इस पुस्तक के अनुसार ” 1955 में जब नेहरू जी मास्को गए थे तो वहां तत्कालीन प्रधानमंत्री बुलगानिन ने “आवारा हूं या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूं” गाना सुना कर उनका स्वागत किया था.
इस घटना से पता चलता है कि शैलेन्द्र रूस में इतने लोकप्रिय हो गए थे कि उनके गानों की मुरीद रूस की जनता हो गयी थी।

आकाशवाणी भवन में आयोजित पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर साहित्य अकेडमी के अध्यक्ष माधव कौशिक असगर वजाहत नरेश सक्सेना अशोक चक्रधर और शैलेन्द्र के दोनो बेटे तथा बेटी अमला शंकर भी मौजूद थी।
शैलेन्द्र मूलतः बिहार के आरा जिले के अख्तियारपुर गांव के थे पर उनका जन्म
30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में हुआ था क्योंकि उनके पिता वहां काम करते थे।

शैलेन्द्र की 33 कविताओंकी किता “न्यौता औऱ चुनौती ” 1955 में प्रकाशित हुई तो उन्हें आलोचकों ने हिंदी साहित्य में जगह नहीं दी
उन्हें वह महत्व नहीं दिया जिसके वह हकदार थे लेकिन रूस की जनता ने उन्हें बहुत प्यार और सम्मान दिया ,यहां तक कि वहां के प्रधानमंत्री ने भी।

पुस्तक के अनुसार कि रामविलास शर्मा जैसे बड़े वामपंथी आलोचक ने शुरू में शैलेन्द्र की कविताओं को महत्व नहीं दिया लेकिन जब उन्होंने बॉम्बे में मजदूरों को शैलेन्द्र का गीत गाते सुना तो उनकी राय बदल गयी। पर रूस के लोग शुरू से शैलेन्द्र को पसंद करते थे।1959 में प्रसिद्ध रूसी विद्वान चेलीशेव ने जब भारतीय कवियों का एक संकलन रूसी में निकाला तो उसमें शैलेन्द्र की भी दो कविताएं थीं लेकिन हजारी प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य के इतिहास में शैलेन्द्र का जिक्र नहीं किया।
पुस्तक के अनुसार शैलेन्द्र की गरीबी का आलम यह था कि मैट्रिक की परीक्षा में फॉर्म भरने के लिए 5 रुपये भी नहीं थे।किसी तरह रुपए का इंतज़ाम हुआ और वह मथुरा जिले में टॉप हुए।
शैलेन्द्र ने फिल्मों में गीत लिखने के लिए 200 रुपये की रेलवे की नौकरी छोड़ दी और राजकपूर ने 500 रुपए प्रतिमाह पर रख लिया और दूसरे फिल्मों में भी गीत लिखने कवि सम्मेलनों में जाने की भीछूट दी।

बाद मे शैलेंद्र को गीतों के लिए 4 हज़ार रुपए भी मिलने लगे थे ।उनकी शादी 2 अप्रैल 1948 को झांसी के रेलवे मास्टर की बेटी शकुंतला से हुई ।शैलेन्द्र ने शुरू में तो राजकपूर को फिल्मों में गीत लिखने से मना कर दिया पर जब पत्नी गर्भवती हुईं तो पैसों की जरूरत पड़ी तब 500 रुपए के कर्ज की एवज में गीत लिखना स्वीकार कर लिया।
इस तरह शैलेन्द्र का सफर शुरू हुआ और उन्होंने 800 गीत लिखे।इनमें से कई गाने तो सदाबहार गीत बन गए और उनकी लोकप्रियता को आज तक कोई गीतकार छू न पाया लेकिन मात्र 43 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।उनके निधन की खबर मिलते ही राजकपूर देवानंद मुकेश शंकर जयकिशन हसरत जयपुरी बासु भट्टाचार्य कमलेश्वर सब उनके घर पहुंचे।शैलेन्द्र के निधन पर एक शोक सभा हुई जिसकी अध्यक्षता साहिर लुधियानवी ने की जिसमें कैफ़ी आज़मी सरदार जाफरी भरत व्यास नरेंद्र शर्मा राजेन्द्र सिंह बेदी कृष्णचंदर आदि ने भाग लिया। राजकपूर ने कहा कि मेरी अंतरराष्ट्रीय छवि के पीछे शैलेन्द्र का हाथ था।उन गीतों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।भारत की पूरी जनता इस महान कलाकार को कभी नहीं भुला पाएगी।

— इंडिया न्यूज स्ट्रीम

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