जारी है जदयू का आपरेशन आरसीपी सिंह

बिहार में जदयू पार्टी को धार देने में लगी है. पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की वजह से बेपटरी हुई पार्टी को पटरी पर लाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जुटे हैं और राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा उनके साथ पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं. पार्टी को मजबूत करने के लिए जरूरी था कि आरसीपी सिंह को किनारे किया जाए और जदयू ने ऐसा ही किया. पहले उन्हें तीसरी बार राज्यसभा भेजने से मना किया, फिर उन्हें उनके बंगला से बेदखल किया और अब संगठन को मजबूत करने के लिए ऐसे नेताओं की शिनाख्त की जा रही है जो आरसीपी सिंह के समर्थक हैं और जिनसे पार्टी को नुकसान हो रहा है. आपरेशन आरसीपी सिंह जारी है और इसके तहत बिहार में जदयू के कई नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. उनमें पार्टी प्रवक्ता अजय आलोक भी हैं.

अजय आलोक ने पार्टी के रुख के विपरीत कई मौकों पर जो बयान दिए उससे पार्टी की फजीहत हुई थी. पार्टी एक बार पहले भी उन्हें पार्टी प्रवक्ता से हटा चुकी थी. लेकिन इस बार तो उनसे कहा गया कि आप अब बस करें, दूसरा दरवाजा देखें. दरअसल अदय आलोक के कई बयान जदयू के सामाजिक न्याय की खिल्लियां उड़ातीं थी. उन्होंने तबलीगी जमात के खिलाफ जहर उगला था कोरोना काल में और गोलियों के उड़ा देने की बात की थी और हाल में हनुमान जयंती पर जलूस को लेकर उनके बयान का भी गलत संदेश अल्पसंख्यकों में गया था. पार्टी में इससे उनके खिलाफ पहले से ही नाराजगी थी, रही सही कसर आरसीपी सिंह के पक्ष में खड़े होना ने पूरी कर दी. इससे पहले पार्टी ने अपनी एक और प्रवक्ता सुहेली मेहता को भी पद से मुक्त कर दिया था. उन पर भी आरसीपी सिंह समर्थक होने की बात कही जा रही है.

जदयू ने अजय आलोक के अलावा प्रदेश महासचिव विपिन यादव, अनिल कुमार व समाज सुधार सेनानी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष जीतेंद्र नीरज पार्टी से निकाल दिया है. इन चारों पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है. पार्टी से निकाले गये चारों नेता केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के बेहद करीबी हैं. पार्टी ने जब आरसीपी सिंह को दोबारा राज्यसभा का टिकट नहीं दिया तब उनके समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मोर्चा खोल दिया था जिसके बाद आरसीपी सिंह के करीबियों पर पार्टी ने कार्रवाई शुरू की है.

आरसीपी सिंह का राज्यसभा टिकट कटने के बाद जदयू में पूछ भी घटी है और रुतबा भी. पहले नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा से बेटिकट किया और अब संगठन पर भी उनके प्रभाव को कम करने की लगातार कोशिश हो रही है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कमान संभालने के बाद ललन सिंह अपने तरीके से संगठन को मजबूत करने में लगे हैं ताकि पार्टी जो तीसरे नंबर पर खिसक गई थी उसे फिर से पहले नंबर पर लाया जाए. ललन सिंह पार्टी को नंबर वन बनाने के लिए मिशन आरसीपी सिंह चला रहे हैं ऐसा सियासी पंडितों का मानना है ताकि आरसीपी सिंह बिहार में जदयू में अलग-थलग पड़ जाएं. जाहिर है कि इसके लिए संगठन में वे अपनी मन-मर्जी से उन नेताओं को साध रहे हैं जो उनके साथ हैं. इससे आरसीपी सिंह के समर्थकों की परेशानी बढ़ी है और वे धीरे-धीरे आरसीपी सिंह का मोह त्याग रहे हैं. मंगलवार को पार्टी के कुछ नेताओं पर हुई कार्रवाई के बाद तो मिशन में और तेजी आएगी. जदयू में चल रही सियासत को देख कर साफ पता चलता है कि आरसीपी सिंह के करीबी माने जाने वाले हर छोटे–बड़े नेता और कार्यकर्ता को उनसे अलग करने की रणनीति पर काम किया जा रहा है. एक दौर था जब आरसीपी सिंह को ही जदयू का संगठन माना जाता था. पार्टी का संगठन महासचिव होने की वजह से आरसीपी सिंह पर यह जवाबदेही थी कि वे जमीनी स्तर तक पार्टी के संगठन का न केवल विस्तार करें बल्कि उसके कामकाज पर फैसले लें. राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जो आरसीपी सिंह ने अपना दमखम दिखाया भी. लेकिन केंद्रीय मंत्री बनने के साथ ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए. वे नीतीश कुमार से दूर होते चले गए और भाजपा व आरएसएस से नजदीक. पार्टी लाइन से खिलाफ भी उन्होंने खुल कर बोला

ललन सिंह मंत्री नहीं बन पाए, हो सकता है इसका मलाल भी उन्हें हो लेकिन जदयू के वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. पार्टी की कमान संभालने के बाद ललन सिंह पूरी रंगत में दिखे और आरसीपी सिंह के ठीक उलट पुराने साथियों के भरोसे पार्टी को मजबूत बनाने में वे जुट गए. आरसीपी सिंह के नजदीकी नेताओं को उन्होंने हाशिए पर ला दिया. आरसीपी सिंह ने उन्हें अपने साथ दिल्ली में समायोजित करने की कोशिश भी की लेकिन उन्हें इसमें बहुत कामयाबी नहीं मिली. बिहार में उनके करीबी अपनी ही पार्टी में अछूत बन गए. इससे आरसीपी सिंह का प्रभाव घटना शुरू हुआ. तब ऐसे नेताओं ने ललन सिंह में अपना भविष्य देखा. वे उनके साथ होने लगे. ललन सिंह ऐसा ही चाहते थे. वे आरसीपी सिंह को पार्टी में अलग-थलग करने में लगभग कामयाब हो गए हैं. आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहेंगे या नहीं यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को करना है लेकिन किसी सदन का सदस्य नहीं होने की वजह से वे ज्यादा दिनों तक केंद्र में मंत्री बने नहीं रह सकते हैं. इसलिए अगर वे संगठन में लौटते हैं तो उनका पुराना रुतबा कायम न रहे या पार्टी में उनके साथ खड़े होने वाले नेताओं की तादाद कम हो इस पर ललन सिंह काम कर रहे हैं.

बिहार की राजनीति में इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ही हैं. सात जुलाई को उनका संसदीय कार्यकाल समाप्त हो जाएगा यानी कि राज्यसभा के सदस्य नहीं रहेंगे. इसके साथ ही उनको अपने केंद्रीय मंत्रालय का प्रभार भी छोड़ना पड़ेगा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब आरसीपी सिंह दिल्ली से वापस आएंगे तो उन्हें संगठन में कौन सी जिम्मेदारी दी जाएगी. दरअसल, जदयू में दो महत्त्वपूर्ण पद हैं. एक राष्ट्रीय अध्यक्ष का और दूसरा संसदीय बोर्ड की राष्ट्रीय अध्यक्ष का. फिलहाल जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह है और जदयू के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा है. इनके रहते जदयू आरसीपी सिंह को कैसे और कहां फिट करेगी, यह बड़ा सवाल है. इस बीच उपेंद्र कुशवाहा ने आरसीपी सिंह पर हमला बोला और कहा कि नैतिकता तो यह कहती है कि उन्हें तत्काल केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे देना चाहिए. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आरसीपी सिह की आगे क्या भूमिका होगी यह मालूम नहीं. आरसीपी सिंह राज्यसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री हैं उनका कार्यकाल सात जुलाई को खत्म हो रहा है, इसलिए आरसीपी सिंह को सात जुलाई के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. उपेंद्र कुशवाहा ने यह भी कहा कि आगे वे क्या करेंगे यह उन्हें फैसला लेना है.

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