नयी दिल्ली: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एस वाय कुरेशी का कहना है कि परिवार नियोजन के लिए केवल मुस्लिमों पर ही दोष लगाना ठीक नहीं है क्योंकि बढ़ती आबादी समूचे देश के लिए चिंता का विषय है।
असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के दो बच्चों की नीति के प्रस्ताव पर इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम से बात करते हुए डॉ. कुरेशी ने कहा कि बढ़ती आबादी रोकना देश के लिए प्राथमिकता का विषय है और इस पर चर्चा “हिंदू-मुस्लिम“ नैरेटिव से ऊपर उठकर की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, “देश में कहीं भी ऐसी नीति लाने के लिए उद्देश्य महत्वपूर्ण है।“
एक मुस्लिम कैंप में आबादी नियंत्रण के बारे में श्री सरमा की हालिया टिप्पणी का जिक्र करते हुए डॉ. कुरेशी ने कहा कि ऐसी कोई भी नीति अमल में लाई गई तो उसका प्रभाव हर समुदाय पर पड़ेगा। और उसकी प्रतिक्रिया भी हर समुदाय से आयेगी।
उन्होंने कहा, “इसका सबसे बड़ा प्रभाव महिलाओं पर होगा। किसी महिला के साथ दो बच्चे होने के बाद लोग अपनी पत्नियों को तलाक देने लगेंगे। यह पहले भी हुआ है। कुछ प्रदेशों में जब यह नियम आया कि दो बच्चों से ज्यादा वाला व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता तो लोगों ने अपनी पत्नियों को तलाक देने शुरू किये। इसका क्षतिकारक सामाजिक प्रभाव होगा।“
उन्होंने कहा, “कन्याभ्रूण हत्या के मामले भी बढ़ेंगे। हालांकि देश में यह गैरकानूनी है लेकिन लोग यह जानने के बाद कि बेटी होने वाली है, गर्भपात करवाएंगे। हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए।“
डॉ. कुरेशी ने चीन का भी उदाहरण दिया, जहां एक बच्चे का नियम है।
उन्होंने कहा, “कुछ भारतीय चीन की एक बच्चे की नीति की तारीफें करते थे। लेकिन यह चीन में चल नहीं पायी और बंद करनी पड़ी। उन्होंने दो बच्चों की नीति अपनाई, वह भी नहीं चली। अब हाल में उन्होंने तीन बच्चों की नीति शुरू की है।“
“युवा और प्रोडक्टिव आबादी तेजी से कम हुई और उन पर निर्भर आबादी 75 फीसदी बढ़ गई। इससे नॉन-प्रोडक्टिव बूढ़ी आबादी की आर्थिक व सामाजिक समस्या पैदा हो गई।“
डॉ. कुरेशी ने भारत में हिंदू व मुस्लिम आबादी को लेकर कई मिथक भी तोड़े। उन्होंने अपने बयानों को सरकारी आंकड़ों से आधार दिया, जिनमें से कुछ उन्होंने अपनी किताब ‘पापुलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया: में भी दिये हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसे मिथकों में कोई दम नहीं है और सच्चाई पर इनका कोई प्रभाव नहीं है।
उन्होंने कहा, “हिंदू दक्षिणपंथी बहुसंख्यक समुदाय को बड़ी संख्या में बच्चे पैदा करने को कह रहे हैं ताकि मुस्लिमों के मुकाबले संख्या के मामले में पिछड़ न जाएं पर मैं मुस्लिमों से फिर भी अपील करना चाहूंगा कि ऐसी बातों पर ध्यान न दें और परिवार नियोजन अपनाएं. हम बच्चे पैदा करने का युद्द अफोर्ड नहीं कर पाएंगे।“
यह पूछने पर कि क्या मुस्लिमों में फैमिली प्लानिंग की स्वीकार्यता है क्योंकि आम राय यही है कि मुस्लिम इसके खिलाफ हैं, डॉ. कुरेशी ने कहा कि इस समय यदि मुस्लिमों में फैमिली प्लानिंग का स्तर सबसे कम (43.5 फीसदी) है तो अन्य समुदायों में दूसरा सबसे कम स्तर हिंदुओं का है।
लेकिन यह भी सच है कि मुस्लिम अब हिंदुओं से ज्यादा तेजी से फैमिली प्लानिंग की तरफ जा रहे हैं भले ही इनमें से कइयों को लगता रहा हो कि इस्लाम परिवार नियोजन के विचार के खिलाफ है, जैसा कि कि कुरान की हिदायतों के अनुसार है नहीं।
डॉ. कुरेशी ने याद दिलाया कि दो बच्चों की नीति वाला एक विधेयक संसद में लंबित है और यह मुद्दा बीच-बीच में राजनीतिक लाभ के लिए उठाया जाता रहा हे।
उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान, परिवार नियोजन लोगों पर थोपा गया। उसका नतीजा चुनावों में इंदिरा गांधी की हार के रूप में हुआ। आज भी राजनीतिज्ञ परिवार नियोजन के बारे में बात करने में असहज होते हैं।
उन्होंने कहा, “हमने राजनीतिज्ञों में परिवार नियोजन की जागरूकता को लेकर एक विश्लेषण किया है। तेरहवीं से 16वीं संसद तक की चार संसदों में से इस विषय पर कितनी चर्चा हुई। हमें पता चला कि इस अवधि में एक हजार से ज्यादा सवाल पूछे गये थे और केवल 0.15 फीसदी सवाल परिवार नियोजन के मुद्दे के बारे में थे।
इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम