ऑपरेशन सिंदूर: भारत ने पीओके और पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर हमले के बाद कैसे जीती कूटनीतिक लड़ाई?

नई दिल्ली । जब भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले को आखिरी हद का उल्लंघन मानते हुए आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का प्रण किया, तो निंदक स्वभाव वाले और हर बात में नकारात्मक पक्ष देखने वाले इसके कूटनीतिक परिणामों को लेकर आशंकित थे और उन्हें डर था कि सीमा पर तनाव बढ़ाने के लिए भारत को ‘अलग-थलग’ किया जा सकता है।

हालांकि, वास्तविकता उनके अनुमान के ठीक विपरीत है – भारत ने कूटनीतिक लड़ाई जीती है और नैरेटिव की लड़ाई में भी स्पष्ट रूप से आगे है।

पाकिस्तान में आतंक के कारखानों पर भारत के सैन्य हमलों को वैश्विक समर्थन मिला है। दुनिया भर की सरकारों और नेताओं ने अपने नागरिकों की रक्षा करने और क्षेत्र से आतंक को खत्म करने के लिए हरसंभव प्रयास के भारत के अधिकार का समर्थन किया है।

अमेरिका से लेकर यूरोपीय संघ और कुछ अरब देशों तक, सभी ने भारत के हवाई हमलों को उचित ठहराया है। कुछ ने तो पाकिस्तान से और अधिक हमले न करने को कहा है।

भारत को वैश्विक समर्थन सीमा पार आतंकी ठिकानों पर उसके द्वारा किए गए नपे-तुले और सोचे-समझे हमलों के कारण मिला है जिनकी प्रकृति तनाव बढ़ाने वाली बिल्कुल नहीं थी। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भारतीय हमलों के तुरंत बाद ऑपरेशन का विवरण साझा किया और यह भी बताया कि कैसे किसी भी तरह के नुकसान से बचा गया।

इसके बावजूद, पाकिस्तान ने हमलों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए लगातार दो रातों तक भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों और आम नागरिकों को निशाना बनाने की कोशिश की, हालांकि उसके सभी प्रयास विफल हो गए।

भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में दृढ़ और दृढ़ निश्चयी रुख अपनाया है। इसने न केवल पाकिस्तान की ओर से किए गए हर हमले को विफल किया, बल्कि अपनी धरती पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के बावजूद पाकिस्तान के दुस्साहस के बारे में मित्र देशों और वैश्विक निकायों को जानकारी देकर कूटनीतिक युद्ध का सहारा भी लिया।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कल (गुरुवार) रात पाकिस्तान द्वारा किए गए मिसाइल और ड्रोन हमले के तुरंत बाद अमेरिका और यूरोपीय संघ के समकक्षों से बात की और उन्हें बताया कि अगर दूसरी तरफ से कोई भी कार्रवाई की जाती है, तो भारत उसका दृढ़ता से जवाब देगा।

भारत की कार्रवाई और कूटनीतिक संपर्क का भारत की वैश्विक छवि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा जो हमें मिल रहे वैश्विक समर्थन से स्पष्ट है। कई देशों ने भारत के पक्ष में बयान जारी किए हैं, जबकि अन्य ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का समर्थन किया है।

ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने भारत के कार्यों का समर्थन करते हुए कहा कि भारत के पास आक्रोशित होने के पर्याप्त कारण हैं।

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा, “किसी भी देश को सीमा पार आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।”

रूस ने बढ़ते सैन्य तनाव पर चिंता व्यक्त की और सभी रूपों में आतंकवाद की निंदा की।

इजरायल ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करते हुए कहा, “आतंकवादियों के लिए कोई पनाहगाह नहीं है।”

यूरोपीय संघ और उसके सभी 27 सदस्य देशों ने भारत के पक्ष में संयुक्त बयान जारी किया, जबकि फ्रांस, नीदरलैंड और जापान जैसे देशों ने भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की संप्रभुता और आतंकवाद का प्रत्युत्तर देने के अधिकार का समर्थन किया। अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने इसे एक क्षेत्रीय मुद्दा बताते हुए तनाव कम करने का आग्रह किया।

कुछ इस्लामी राष्ट्र भी भारत के साथ खड़े हैं, हालांकि उन्होंने आतंकवादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से दोषी नहीं ठहराया।

सऊदी अरब ने कहा कि वह बढ़ते तनाव को लेकर चिंतित है। उसने आम नागरिकों को नुकसान से बचाने पर जोर दिया।

यूएई और कतर ने शांति की अपील की और आतंकवाद का विरोध दोहराया।

ईरान ने शांति का आग्रह करते हुए कहा कि “नागरिकों को निशाना बनाना या आतंक का इस्तेमाल करना अनुचित है।”

बांग्लादेश ने भी भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया है।

इसलिए, विश्व समुदाय का संदेश काफी हद तक भारत के पक्ष में है। यह व्यापक रूप से दर्शाता है कि भारतीय सेना ने संयम और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया, जिससे व्यापक संघर्ष को टाला जा सका है और बढ़ते विवाद के पीछे पाकिस्तान का हाथ है।

–आईएएनएस

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