लखनऊ : अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफें करने लगे हैं।
पहले, 15 जुलाई को मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 1500 करोड़ की विकास योजनाओं का उद्घाटन करते समय उत्तर प्रदेश की उपलब्धियों को सराहा। उन्होंने योगी की कोविड-19 की पीक के समय भी योगी के कार्य की सराहना की।
फिर 1 अगस्त को शाह ने लखनऊ में एक कार्यक्रम में योगी सरकार की तारीफ की और वहां की कानून एवं व्यवस्था को देश में श्रेष्ठ करार दिया। उन्होंने दावा किया कि 2017 विधानसभा चुनावों के दौरान जब वह प्रचार कर रहे थे तो प्रदेश में अपराधियों का राज था। तब वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और कई दिन उत्तर प्रदेश में ढेरा जमाए रहे थे।
फिर 5 अगस्त को मोदी ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लाभार्थियों से बातचीत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर का मुकाबला करने और खाद्य वितरण क्षेत्र में योगी के काम की तारीफ की।
वास्तव में उनके संबोधन का कारण अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास की पहली बरसी था। योगी ने भीइस उपलब्धि का पूरा लाभ उठाने की कोशिश की और बदले में राम मंदिर के निर्माण कार्य को लेकर मोदी की तारीफ की।
राजनीतिक विश्लेषक आश्चर्यचकित हैं, जिस तरह मोदी और शाह ने अपना स्वर बदला है और अब खुलकर योगी की पीठ थपथपा रहे हैं।
विडंबना यह है कि दो महीने पहले तक मीडिया रिपोर्टों के अनुसार दोनों महामारी की चुनौती को संभालने के तरीके योगी से संतुष्ट नहीं थे। दिल्ली के राजनीतिक हल्कों में अफवाहें उड़नी शुरू हो गई थीं कि उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हस्तक्षेप के बाद ही योगी को बचाया जा सका।
मजे की बात यह है कि भाजपा के दोनों शीर्ष नेता जो अब योगी की तारीफों के पुल बांध रहे हैं, मुश्किल से अपनी पार्टी के मुख्यमंत्रियों की उपलब्धियों की सराहना करते हैं। यहां योगी की उस कार्य के लिए सराहना हो रही है जो उन्होंने किया ही नहीं। वास्तव में, उनकी सरकार बुरी तरह विफल रही और भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं ने भी आक्रोश व्यक्त किया था।
महामारी के मोर्चे पर योगी को समर्थन करने का तर्क हालांकि सीधा है। चूंकि यह डबल इंजन सरकार है, इस मामले में योगी को दोष देने का मतलब है केंद्र के खिलाफ भी आलोचनाओं की बारिश को आमंत्रण देना। आखिरकार, लोग भूले नहीं हैं कि कैसे भाजपा के बड़े नेता अप्रैल में भी पश्चिम बंगाल में चुनावी प्रचार में लगे थे जब कोविड-19 हजारों जिंदगियां छीन रही थी।
इसके अलावा, मोदी ने शायद अब महसूस कर लिया है कि उत्तर प्रदेश चुनावों में योगी के मुकाबले का कोई नेता नहीं है। असल में मोदी यही चाहते थे कि योगी काबू में रहें और मानें कि बॉस वही ( मोदी) हैं
यही ध्यान में रखते हुए मोदी ने 7 जुलाई को मंत्रिमंडल विस्तार किया और योगी से भी अपनी टीम का आधार बढ़ाकर गैर जाटव और गैर यादव पिछड़ी जातियों से मंत्रियों को शामिल करने को कहा।
योगी ने हालांकि अपने मंत्रिमंडल में नये चेहरों को शामिल नहीं किया है और न ही अरविंद शर्मा, पूर्व नौकरशाह व मोदी के करीबी माने जाते हैं, को कोई जिम्मेदारी सौंपी है लेकिन अपेक्षित है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जल्द ही प्रधानमंत्री की बात मानेंगे।
मोदी-शाह टीम के साथ समस्या यह है कि राजनीतिक विरोधियों की सरकारों में खामियां निकालने की कला में वह माहिर हैं इसलिए, उदाहरण के लिए, जब ममता बनर्जी सरकार पर पश्चिम बंगाल में वह हमला बोलते हैं और लोग तालियां पीटते हैं, तो इस जोड़ी को मजा आता है। बात जहां भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जाती हो तो उन्हें कुछ नहीं सूझता।
उत्तर प्रदेश में जहां सत्ताविरोधी लहर उनके खिलाफ है, मोदी-शाह जोड़ी को कोई रणनीति नहीं सूझ रही और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कुछ मिल नहीं रहा।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के पटल से कांग्रेस की अनुपस्थिति भी उनके आड़े आ रही है।
हालांकि मोदी ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लाभार्थियों को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने अपनी सरकार के बनाये तीन कृषि कानूनों का जिक्र टाला ही क्योंकि उत्तर प्रदेश के किसान भी इन कानूनों के खिलाफ हैं।
उत्तर प्रदेश के अलावा अगले साल पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी चुनाव होने हैं। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के बिना भाजपा की कोई गिनती नहीं है। किसान आंदोलन ने भी उनके वोट बैंक में सेंध लगाई है। उत्तराखंड में भी लगातार मुख्यमंत्री बदले जाने से भाजपा की संभावनाओं को चोट पहुंची है।
गोवा और मणिपुर जैसे छोटे राज्यों में बहुत कुछ दांव पर नहीं लगा है। इसलिए, भगवा पार्टी अपनी सारी ताकत उत्तर प्रदेश में झोंकने वाली है जो कि राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है।
– इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम