नयी दिल्ली: कोविड 19 महामारी के दौरान अपने फर्ज़ को अंजाम देते हुए वायरस की चपेट में आकर सैकड़ों पत्रकारों ने जान गंवा दी, लेकिन विडंबना यह है कि जब मीडिया घरानों के मालिकों ने नुकसान का बहाना बनाते हुए पत्रकारों, जो महामारी की खबरें लोगों तक पहुंचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे थे, को निकाला तो इसकी कहीं खबर नहीं बनी। हिंदी शॉर्ट फिल्म ‘द लिस्ट : मीडिया ब्लडबाथ इन कोविड टाइम्स‘ इसी पहलू को सामने लाती है।
जैसे ही मैंने फिल्म देखकर पूरी की तो मेरे जेहन में आया ‘स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल‘, जो जर्मनी में पैदा हुए ब्रिटिश अर्थशास्त्री अर्नेस्ट फ्रेडरिक शुमकर की एक किताब का चर्चित शीर्षक था। फिल्म को कोच्ची इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड्स में श्रेष्ठ लॉकडाऊन फिल्म का पुरस्कार मिला है और हाल में प्रथम रंग मुकुट फिल्मोत्सव, अगरतला, त्रिपुरा में इसका चयन हुआ और इसका ऑनलाइन प्रदर्शन हुआ।
भारतीय मीडिया में कोविड काल में हुई छंटनी पर आधारित फिल्म के लेखक-निर्देशक महेश राजपूत तो खुद एक पत्रकार हैं ही, फिल्म में एक प्रमुख, संपादक की, भूमिका निभाने वाले अभिनेता मनोज कुमार शर्मा भी एक पत्रकार हैं।
अंग्रेजी दैनिक द व्हिसल ब्लोअर के चंडीगढ़ संस्करण के संपादक (मनोज शर्मा) की दुविधा शुरू होती है जब प्रधान संपादक उसे फोन कर 15 कर्मचारियों की सूची बनाने को कहते हैं जिन्हें निकाला जाना है क्योंकि कोविड संकट के कारण आय में कमी आई है और प्रबंधन खर्चे घटाना चाहता है। मनीष स्टाफ की एक बैठक बुलाता है और एक-एक कर कर्मचारियों से इस्तीफा लेता है और सारे इस्तीफे अपने बॉस को भेजता है। चूंकि सस्पेंस नहीं खोलना इसलिए मैं यह नहीं बताऊंगी कि इस उपलब्धि का इनाम उसे क्या हासिल होता है।
पटकथा और संपादन चुस्त है और एक भी शॉट या संवाद बेवजह नहीं है। 15 मिनट की अवधि का हर सेकंड सुनियोजित है और चूंकि यह दो पत्रकारों की रचना है, कथानक की विश्वसनीयता और माहौल सटीक है।
मनोज, संजीव कौशिश (बॉस) और रश्मि भारद्वाज (रितु, मनीष की पत्नी) ने मंजे हुए कलाकारों की तरह काम किया है जबकि इनमें से कोई भी पेशेवर कलाकार नहीं है। अन्य कलाकारों, जिनमें आकांक्षा शांडिल (रजनी, एचआर प्रमुख), साहिर बनवैत (रिपोर्टर जगबीर), गुरविंदर कौर (सरबजीत), डॉ. गुरतेज सिंह (शशांक) और जसप्रीत कौर (नीतू) ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं से पूरा-पूरा न्याय किया है।
फिल्म कैसे बनी, इसके बारे में इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम से बातचीत में मनोज कुमार ने बताया, “उस समय मीडिया में बहुत छंटनी हुई थी। हम विभिन्न मीडिया संस्थानों में बड़े पैमाने पर लोगों को हटाये जाने की बातें सुन रहे थे। मैंने भी अपना अनुभव महेश को बताया था, जो काफी नाटकीय था।“
उन्होंने बताया, “इस पृष्ठभूमि में उन्होंने फिल्म की रूपरेखा तैयार की और पटकथा लिखनी शुरू की। महेश ने प्रस्ताव दिया कि फिल्म में प्रमुख भूमिका मैं निभाऊं। दिलचस्प बात यह है कि मैं पहले से ही सोच रहा था कि मैं निवासी संपादक की भूमिका निभा सकता हूं। फिर हमें निवासी संपादक की पत्नी के किरदार के लिए किसी को चुनना था। रश्मि, मेरी पत्नी, ने यह अवसर लपक लिया और कहा, “अगर मैं यह भूमिका कर सकती हूं तो किसी और को अपनी जगह क्यों लेने दूं, भले ही यह फिल्म क्यों न हो।“
मनोज, जो फिल्म के कार्यकारी निर्माता भी हैं, बताते हैं, “कम समय में अपना संदेश दर्शकों तक पहुंचाने की चुनौती आपको समय के महत्व के बारे में इतना सचेत कर देती है कि आप पटकथा के समय ही अनावश्यक सामग्री छांट देते हैं। सौभाग्य से हमारे पास एक कसी हुई पटकथा थी। वैसे महेश ने पहले छह सिंधी फिल्मों की पटकथा लिखी हुई है।“
यह फिल्म मनोज की अभिनेता के रूप में पहली फिल्म थी और वह बताते हैं कि यह उनके लिए काफी कुछ सिखाने वाला अनुभव था।
“एक अभिनेता के रूप में मेरे लिए यह काफी कुछ सिखाने वाला अनुभव था। कैमरे के सामने मुझे कोई दिक्कत नहीं आई लेकिन मुझे लगता है कि डबिंग स्टूडियो में मैं अपना श्रेष्ठ नहीं दे पाया। मुझे लगता है कि कैमरे के सामने मैंने संवाद ज्यादा प्रभावशाली ढंग से बोले थे पर स्टूडियो में मैं लिप सिंकिंग के तकनीकी पहलू में फंस गया। यह इसलिए हुआ कि डबिंग का यह मेरा पहला अनुभव था।“
निर्देशक महेश राजपूत बताते हैं कि वह फिल्म में सभी नये कलाकारों को नहीं लेना चाहते थे इसलिए उन्होंने मोहाली के एक्टिंग स्कूल सुचेतक की अनीता शब्दीश से संपर्क किया। उन्हें भी पटकथा पसंद आई थी और उन्होंने फिल्म के लिए कुछ कलाकार मुहैया कराए। बाद में डॉ: गुरतेज सिंह, जो खुद नाटक लेखक और निर्देशक हैं, ने भी एक भूमिका निभाने की सहमति दी।
फिल्म हालांकि सीमित बजट (करीब डेढ़ लाख रुपये) में बनी है लेकिन महेश बताते हैं कि यह रकम जुटाने में भी उन्हें काफी दिक्कतें आईं और क्राऊड फंडिंग से लेकर दोस्तों से मदद लेकर उन्होंने फिल्म पूरी की।
रकम जुटाने के बाद लोकेशन हासिल करना भी मनोज और महेश के लिए चुनौती से कम न था।
महेश बताते हैं, “हम छंटनी पर फिल्म बना रहे थे और लगभग सभी मीडिया संस्थानों ने छंटनी की थी। ऐसे में कोई हमें कैसे अपने यहां शूटिंग करने दे सकता था? किसी तरह हमने चंडीगढ़ के एक स्थानीय हिंदी अखबार ‘अर्थप्रकाश‘ और माेहाली के पंजाबी दैनिक “रोजाना स्पोक्समैन‘ की प्रबंध संपादक को अपने यहां शूटिंग की अनुमति के लिए मनाया।“
फिल्म का निर्माण मैडनेस विदाऊट मेथड इंटरटेनमेंट के बैनर तले किया गया है। निर्माता पद्मिनी राजपूत हैं। फिल्म का संपादन गोपाल राघानी ने किया है और कैमरा सुनिल वेद ने संभाला है। फिल्म ओटीटी एबीसी टाकीज़ पर देखी जा सकती है।