दस जनपथ की विशेषदूत बनकर आई कुमारी शैलजा की गोपनीय जयपुर यात्रा से अनायास नए क़यासों का बाज़ार गर्म
नई दिल्ली में कांग्रेस के शक्ति पुंज दस जनपथ की विशेषदूत बनकर जयपुर आई पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुमारी शैलजा की गोपनीय यात्रा से प्रदेश की राजनीति में अनायास नए क़यासों का बाज़ार गर्म हो गया है।राजनैतिक गलियारों में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि राजस्थान की राजनीति में बहुत कुछ घटने वाला हैं तथा कांग्रेस आलाकमान गहलोत-पायलट के मसले को जल्द से जल्द सुलझाने के मूड में है।
कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी की विशेषदूत बनकर जयपुरआई हरियाणा कांग्रेस की अध्यक्ष कुमारी शैलजा की अचानक हुई इस गोपनीय यात्रा ने राजनैतिक हलकों में नई हलचल पैदा कर दी हैं। इसके कई तरह के कयास व मायने लगाए जा रहे हैं। कुमारी शैलजा की इस यात्रा को निजी बताया जा रहा है,लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कुमारी शैलजा की यह यात्रा पूर्णत: राजनैतिक यात्रा थी।
जानकारों की माने तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चल रहा मसला वेणुगोपाल तथा माकन की यात्राओं के बाद भी पूरी तरह सुलझा नहीं,इसीलिए कुमारी शैलजा को भेजा गया हैं। कुमारी शैलजा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए सोनिया गांधी का विशेष संदेश लेकर ही आई थी। तभी कुमारी शैलजा रविवार की रात्रि मेंं अचानक जयपुर पहुंची और मुख्यमंत्री गहलोत से मंत्रणा करने के बाद सुबह की फ्लाइट से वापस दिल्ली लौट गई।
उनकी यात्रा को इतना अधिक गोपनीय रखने की कौशिस की गई कि सांगानेर एयरपोर्ट से मुख्यमंत्री निवास तक जाने के लिए दिल्ली से निजी गाड़ी आई थी। बताते है कि शैलजा की यह कार सोमवार सुबह एयरपोर्ट पर शैलजा को ड्रॉप करने के बाद जयपुर से वापस दिल्ली गई हैं।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुमारी शैलजा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए सोनिया गांधी का क्या संदेश लेकर आई थी ? इसकी जानकारी नहीं पाई है लेकिन उनकी यात्रा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा हैं।
कुमारी शैलजा दस जनपथ के अति निकट और गांधी परिवार की सदस्य मानी जाती हैं। वे 26 साल तक सांसद और 15 वर्षों तक केन्द्र में मंत्री भी रही है ।ऐसे में माना जा रहा है कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री गहलोत को दिया गया संदेश राजस्थान की राजनीतिक हालातों को नया मोड़ देने वाला हो सकता है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार आलाकमान को ये चिंता सता रही हैं कि राजस्थान में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। आलाकमान इन दिनों अपना ध्यान सबसे अधिक उन राज्यों पर केन्द्रित कर रखा हैं जहां उसकी सरकार हैं अथवा मुकाबले की स्थिति में हैँ। इनमें राजस्थान सबसे महत्वपूर्ण हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सार्वजनिक रूप से भले ही राजस्थान में 2023 में वापसी की बात करें,लेकिन आलाकमान इस बात से भली भाँति वाफिक है कि वर्तमान में जो माहौल बना हुआ है उसे देखते हुए कांग्रेस सरकार का प्रदेश में पुनः सत्ता में लौटना बहुत मुश्किल हैं। लिहाजा कांग्रेस आलाकमान इस सोच से आगे बढ़ रही है कि प्रदेश में वापसी ना ही सही,लेकिन इसका खामियाजा पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में ना भुगतना पड़े। पिछले दो लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो राजस्थान सहित कांग्रेस के प्रभाव वाले प्रदेशों में निराशा ही हाथ लगी। राजस्थान में 2014 व 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी।
आलाकमान की सोच मुख्य रूप से दिल्ली को मजबूत करने की रणनीति हैं । वह चाहती है कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इस बार राजस्थान में भाजपा में चल रहें अंतर्कलह के मद्देनजर कम से कम 10 से 15 सीटों पर जीते मिलें ,ताकि लोकसभा सीटें बढऩे पर कांग्रेस संसद में अधिक मजबूत हो सके।
गहलोत-पायलट के मसले को जल्द सुलझाने के मूड में आलाकमान
उक्त व्यूह रचना को ध्यान में रखते हुए आलाकमान पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट गुट को राजस्थान की सत्ता और संगठन में भागीदारी देना चाहती हैं। राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटों में से करीब 50 से 60 सीटों पर गुर्जर वोट हार-जीत में निर्णायक हैं और पायलट गुर्जर वोट बैंक में लोकप्रिय और सबसे ताकतवर नेता हैं। पार्टी को लोकसभा में भी इसका लाभ मिलेगा इसीलिए आलाकमान पायलट के मामले को ज्यादा लटकाना नहीं चाहती। ज्योतिराज सिन्धिया व जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ कर जाने का दंश झेल चुकी पार्टी अब और अधिक रिस्क नहीं लेना चाहती है । कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी कुमारी शैलजा की राजस्थान यात्रा को इसी संदेश से जोड़कर देखा जा रहा हैं,क्योंकि पाँच अगस्त से सोनिया गांधी का विदेश दौरा भी प्रस्तावित हैं।पार्टी इससे पहलें ही कोई निर्णय लेना चाहती है अन्यथा सोनिया के विदेश से लोटने तक और स्वाधीनता दिवस के भी होने से यह मामला कुछ और समय तक अधर में लटक सकता है।