नई दिल्ली : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शीर्ष डॉक्टरों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने देश में बढ़ते हाई ब्लड प्रेशर के मामलों पर चिंता जताते हुए इसे समय रहते नियंत्रित करने की जरूरत पर जोर दिया है। उनका मानना है कि अब समय आ गया है कि हाई ब्लड प्रेशर को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के रूप में प्राथमिकता दी जाए। इसके तहते हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की स्क्रीनिंग को सुधारा जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहे। जोधपुर एम्स मं आयोजित इस उच्च स्तरीय बैठक के दौरान गैर-संचारी रोग (एनसीडी) नियंत्रण और खासकर हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की खतरनाक रूप से बढ़ती तादाद को नियंत्रित करने के लिए एक रोडमैप बनाने पर विचार-मंथन किया गया।
इस एक दिवसीय विचार-मंथन में जोधपुर और गोरखपुर एम्स के शीर्ष डॉक्टरों के अलावा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, गुजरात, आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इम्प्लीमेंटेशन रिसर्च ऑन एनसीडी (एनआईआईआर-एनसीडी), नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर (एनएचएसआरसी) और इंडिया हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव (आईएचसीआई) के विशेषज्ञ शामिल हुए। हालांकि, ब्लड प्रेशर का पता लगाना आसान है और कम खर्च वाली दवाओं से इसका इलाज अपेक्षाकृत संभव है, इसके बावजूद यह अब एक पूर्ण स्वास्थ्य संकट बन गया है। प्रत्येक चार में से एक वयस्क भारतीय इससे पीडि़त है।
इसे दुनिया में मौत का सबसे बड़ा कारण या हत्यारा माना जाता है। इसकी वजह से सालाना कम से कम एक करोड़ 8 लाख लोग मौत के शिकार होते हैं। जबकि यह 21.2 करोड़ लोगों के डिसेबिलिटीज-एडजस्टेड लाइफ ईयर्स के लिए जिम्मेदार है। दुनिया के 1.4 अरब से ज्यादा लोग इस स्थायी रोग के साथ जी रहे हैं। अनियंत्रित ब्लड प्रेशर भारत में अकाल मृत्यु और विकलांगता का एक प्रमुख कारण बन गया है।
गुजरात के स्टेट हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. ए. एम कादरी ने इस विचार-मंथन में कहा कि भारत में दिल के दौरे का ज्यादातर कारण अनियंत्रित हाई ब्लड प्रेशर को माना जाता है। ब्लड प्रेशर के इलाज में लापरवाही के चलते ऐसा होता है। हमारा अनुमान है कि ब्लड प्रेशर के मरीजों की वास्तविक संख्या के केवल आधे का पता चल पाया है। उनमें से भी दस में से सिर्फ एक का ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहता है। जबकि सभी गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) की निरंतर देखभाल और इलाज की आवश्यकता होती है। हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटिज पर ध्यान केंद्रित करना बेहद महत्वपूर्ण है। इन्हें भारत की मूक महामारी भी कहा जाता है। उधर, एम्स गोरखपुर की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. सुरेखा किशोर ने हाई ब्लड को देशभर में प्राथमिकता देने और इससे पीडि़त लोगों को समय पर परामर्श लेने को महत्वपूर्ण कदम बताया।
डॉ. सुरेखा किशोर ने कहा कि बिना निदान वाले और अनुपचारित उच्च रक्तचाप संकट से लड़ाई के लिए डॉक्टरों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, चिकित्सा संघों को एक समन्वित कार्यबल के रूप में एकजुट होना चाहिए। विशेषज्ञों के रूप में यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पर ध्यान दें जो दिनों-दिन बिगड़ता जा रहा है। एम्स जोधपुर के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डीन और कम्युनिटी एवं फैमिली मेडिसिन विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. पंकज भारद्वाज ने इस विचार-मंथन सत्र का समापन किया। सत्र का समापन करते हुए डॉ. भारद्वाज ने कहा कि देशभर की चिकित्सा बिरादरी इस बात का पूरा संज्ञान लेती है कि यह समय की आवश्यकता है कि स्थानीय स्तर के समाधान, जागरूकता निर्माण, रोगी सहायता समूह को मजबूत बनाने, नीति-निर्माताओं के साथ चर्चा करने के साथ-साथ हम हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए हेल्थ डिलीवरी को मजबूत बनाने के तरीकों की तलाश करेंगे।
इस दिशा में बहुत सारे अच्छे काम पहले से हो रहे हैं। उन नवाचारों और बेहतर कार्यप्रणालियों पर विशेष ध्यान देना सार्थक कदम होगा।
————- इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम