कैसा होगा ‘मोदी सरकार 2.0’ का पहला फेरबदल

नई दिल्ली: सत्ता के गलियारों से लेकर राजनीतिक हलक़ों तक में चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल और उसका विस्तार कर सकते हैं। मंगलवार को कई नए राज्यपाल बनाने और कई को बदलने से भीन ये साफ़ हो गया है कि मोदी मंत्रीमंडल का विस्तार अब कभी भी हो सकता है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत रो कर्नाटक का राज्यपाल बनाकर मोदी ने अपने मंत्रीमंडलस में एक और गह ख़ाली कर ली है।

दो साल से है इंतज़ार

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को 30 मई को ही दो साल पूरे हो चुके हैं। अभी तक मंत्रिपरिषद में न तो कोई फेरबदल हुआ है और नही कोई विस्तार। काफी अरस से विस्तार को लेकर अटकलें लग रही हैं। अब देखा यह ह कि पीएम मोदी कॉसमेटिक सर्जरी से ही काम चलाएंगे या फिर बड़ी चीरफाड़ करके अपनी सरकार का चेहरा बदल कर इसे और प्रभावी दिखाने की कोशिश करेंगे।

क़रीब दो हफ्तों से प्रधान ने गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ इस बारे में लगातार चर्चा कर रहे हैं। पीएम मोदी ने कई दिन तक मंत्रियों को बुलाकर उनके मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा भी की थी।।

क्या है मौजूदा स्थिति

फिलहाल केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कुल 53 मंत्री हैं। ये काफी छोटी मंत्रिपरिषद हैं। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा 21 केबिनेट मंत्री, 9 स्तंतत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री और 23 राज्यमंत्री हैं। नौ में से 6 स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री अन्य मंत्रालयों में भी बतौर राज्यमंत्री ज़िम्मेदारी संभाल रहै हैं। जितेंद्र सिहं स्वतंत्र प्रभार के साथ पूर्वोत्तर राज्यों के विकास मंत्री हैं। साथ ही वो प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा तीन और मंत्रालयों में भी राज्यमंत्री हैं। इसी तरह हरदीप पुरी स्वतंत्र प्रभार के साथ नागर विमानन और शहरी विकास राज्य मंत्री हैं। लेकिन साथ ही वो वाणिज्य मंत्रालय में भी राज्य मंत्री है।

इतने कम मंत्री क्यों हैं ‘मोदी सरकार 2.0’ में

दरअसल 30 मई 2019 को नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार बतौर प्रधानमंत्री 56 मंत्रियों के साथ शपथ ली थी। शायद उनका इरादा बाद में इसमें विस्तार का रहा होगा। लेकिन साल 2020 की शुरुआत में ही दुनिया के साथ देश में भी कोरोना संक्रमण फैल गया। शायद इसी वजह से मंत्रिपरिषद में विस्तार नहीं हो पया। इस बीच दो मंत्रियों की मौत हो गई। पिछले साल 23 सितंबर को केंद्रीय रेल राज्य मंत्री सुरेश अंगड़ी का कोरोना से एम्स में निधन हो गया था। उनके 15 दिन बाद ही 8 अक्तूबर को खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया।

नवंबर 2019 में शिवसेना के एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की वजह से केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल उसके मंत्री अरविंद सावंत ने इस्तीफ़ा दे दिया था। पिछले साल तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में अकाली दल ने भी एनडीए छोड़ दिया। अकाली दल की एक मात्र मंत्री हरसिमरत कौर ने भी मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था। इस तरह दो साल में मोदी सरकार के तीन कोबिनेट और एक राज्यमंत्री कम हो गए। कम हुए मंत्रियों की जगह नए मंत्री नहीं बनाए गए। साथ छोड़ने वाले सहयोगी दलों के मंत्रियों से खाली हुई जगहों को भी दूसरे सहयोगियों से नहीं भऱा गया। इसी लिए पीएम मोदी की मंत्री परिषद बेहद छोटी रह गई।

कई मंत्रियों पर है काम का ज़्यादा बोझ

मंत्रीपरिषद छोटी होने की वजह से कई मंत्रियों पर काम की ज्यादा बोझ है। चार कम हुए मंत्रियों का काम भी मौजूदा मंत्रियों को ही द्खन पड़ रहा है। प्रकाश जावड़ेकर सूचना और प्रसारण के साथ पर्यावरण मंत्री भी हैं। लेकिन उके पास भारी उद्योग मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी है। शि ,सेना के अरविंद सावंत के इस्तीफे के बाद उन्हें यह ज़िम्मेदारी दी गई। पीयूष गोयल वाणिज्य और रेल मंत्री हैं। लेकिन उके पास उपभोक्ता मामलों का भी अतिरिक्त प्रभार है। राम विलास पासवान की मौत के बाद से उन्हें यह ज़िम्मेदारी भी मिल गई थी। नरेंद्र सिंह तोमर कृषि के साथ पंचायती राज और ग्रामीण विकास का जिम्मा संभाल रहे हैं। उनके पास हरसिमरत कौर केस इस्तीफ़े से खाली हुआ खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी है।

इसी तरह किरेन रिजिजू खेल एवं युवा मामलों के मंत्री हैं। आयुष मंत्री श्रीपद नाईक के सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद उनके मंत्रालय का जिम्मा भी वही संभाल रहे हैं।

कितने मंत्री हो सकते हैं केंद्रीय मंत्रीपरिषद में

2004 में संसद में पास किए गए क़ानून के हिसाब से केंद्रीय मंत्रीपरिषद में प्रधानमंत्री समेत कुल 79 मंत्री हो सकते हैं। क़ानून के मुताबिक़ दोनों सदनों की कुल सीटों की संख्या के 10% ही अधिकतम मंत्री बनाए जा सकते हैं। लोकसभा में 543 चुने हुए प्रतिनिधि और दो मनोनीत सांसद होते हैं। वहीं राज्यसभा में 238 सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं और 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं। इस तरह दोनों सदनों के कुल सदस्यों की संख्या 790 है। इसका 10% 79 बैठता है। अपनी पहली सरकार के दूसरे विस्तार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आंकड़े को लगभग छू लिया था।

कैसा था मोदी का पहला मंत्रिमंडल

नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को पहली बार देश के 15वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। तब उनके साथ 46 मंत्रियों ने शपथ ली थी इनमें 24 कैबिनेट मंत्री, स्वतंत्र प्रभार के 10 और 12 राज्यमंत्री शामिल थे। क़रीब छह महीने बाद 10 नवंबर 2014 को पीएम मोदी ने अपने मंत्रीमंडल का पहला विस्तार किया। विस्तार के बाद मंत्रीपरिषद में 66 मंत्री हो गए थे। 26 केबिनेट, 13 स्वतंत्र प्रभार के मंत्री और 26 राज्यमंत्री। सरकार कोस दो साल पूरे होने के बाद 5 जुलाई 2016 को पीएम मोदी ने अपने मंत्रीमंडल का दूसरा और आख़िरी विस्तार किया। इसके बाद मंत्रीपरिषद में 78 मंत्री हो गए थे। इनमें 27 केबिनेट, 12 स्वतंत्र प्रभार के मंत्री और 38 राज्यमंत्री थे।

अब क्या करेंगे मोदी

मोदी क्या करेंगे, इसकी भनक तो वह किसी को कभी लगने ही नहीं देते। कितने मंत्रियों का पत्ता साफ होगा, किस-किस के पर कतरे जाएंगे और किसको तरक्की मिलेगी इन तमाम सवालों के जवाब सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास हैं। मंत्रिमंडल में होने वाले संभावित फेरबदल और विस्तार से पहले इसकी जानकारी किसी को हो, ऐसा मुमकिन नहीं दिखता। लेकिन उनकी सरकार के मंत्रिमंडल के फेरबदल और विस्तार से इसका अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। मंत्रिमंडल में होने वाले संभावित फेरबदल और विस्तार की चर्चाओं से तमाम मंत्रियों की सांसे अटकी हुईं हैं। दो दिन से प्रधानमंत्री आवास पर चल रही मैराथन बैठकों को देख कर लगता है कि मोदी 2016 का तरह इस बार भी बड़ा फेरबदल और विस्तार करेंगे।

सहयोगी दलों का दबाव

मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चाओं के बीच ही बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी आवाज़ उठानी शुरू कर दी है। गुरुवार को अपना दल (एस) की अध्यक्ष और पहली मोदी सरकार में मत्री रहीं अनुप्रिया पटेल ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की। बताया जाता है कि उहोंने यूपी सरकार में अपनी पर्टी की प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग की है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि अनुप्रिया फिर मंत्री बनकर मोदी सरकार में शामिल होने की जुगत लगा रही हैं। वहीं ख़बर है कि जनता दल यूनाइटेड भी इस बार सरकार में शामिल हो सकता है। 2019 में उसने सरकार मे शामिल होने के प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। वहीं बिहार में भाजपा को जदयू से बड़ी पार्टी बनवाने में बड़ी भूमिका निभवने वाले चिराग पासवान भी अपने पिता की खाली हुई गद्दी संभाले का सपना संजोए बैठे

मंत्रिमंडल में नहीं है सहयोगी दलों काएक भी मंत्री

बीजेपी 2019 में भले ही 300 से ज़्यादा सीटें अपने दम पर जीती थी। लेकिन केंदेर में सरकार एनडीए की है। लेकिन आज की तारीख़ में मोदी मंत्रिमंडल में बीजेपी के किसी भी सहयोगी दल का एक भी मंत्री नहीं है। लोकजनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान की मौत और शिवसेना के अरविंद सावंत व अकाली दल की हरसिमरत कौर के इस्तीफ़े के बाद मंत्रिमंडल में एक भी सहयोगी दल का मंत्री नहीं बचा। रिपब्लिकन पार्टी के रामदास अठावले राज्यमंत्री ज़रूर हैं। लेकिन वो बीजेपी के कोटे से राज्यसभा में हैं। लिहाज़ा पीएम मोदी के सामने अपनी सरकार अपनी सरकार का चेहरा इस तरह बदलने की चुनौती भी है कि वो एनडीए की सरकार दिखे। इसलिए सहयोगी दलों को मंत्रीपरिषद में जगह मिल सकती है।

पांच राज्यों के चुनावों पर नज़र

अगले साल की शुरुआत में ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। मंत्रिमंडल में होने वाला फेरबदल और विस्तार इन्हीं के मद्देनजर किया जाएगा। ज़ाहिर है कि बीजेपी हर हालत में उत्तर प्रदेश का चुनाव दोबारा जीतना चाहेगी। लिहाज़ा उत्तर प्रदेश से कुछ चेहरों को ख़ास तवज्जो देते हुए मंत्री परिषद में शामिल किया जा सकता है। प्रधानमंत्री की यह कवायद ठीक 2016 की की तरह होगी उस समय भी 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल और विस्तार किया गया था। इस बार भी ऐसा ही कुछ होने की उम्मीद लगती है।

–इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम

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