जनचौक: यूपी के बाहुबली हरिशंकर तिवारी का 15 मई की शाम निधन हो गया। गोरखपुर स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। 90 वर्षीय हरिशंकर लम्बे समय से बीमार थे। लोकतंत्र के इतिहास में अपराध के साथ राजनीति का नाता जोड़ने की यूपी में शुरूआत गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी ने की थी। अपराध व राजनीति की मिश्रित संस्कृति से जुड़े इतिहास के पन्नों को जब भी पलटा जाएगा, इसके प्रथम अध्याय में हरिशंकर तिवारी का नाम अवश्य मिलेगा।
पूर्वांचल की राजनीति में हरिशंकर तिवारी एक ऐसा नाम रहा जिसने हर दलों की सरकार में अपना प्रभाव कायम किया और लंबे समय तक इलाके में प्रभावशाली बने रहे। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने परिवार के कई सदस्यों को भी विधायक और सांसद से लेकर उंचे उंचे पदों तक पहुँचाया। जिन्होंने क्राइम से लेकर राजनीति तक की पिच पर बैटिंग की और गोरखपुर में गोरखनाथ मठ के अलावा सत्ता का कोई और केंद्र रहा तो वो ‘हाता’, उनका घर।
हरिशंकर तिवारी ने चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से 1985 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। इसके बाद उन्होंने 1989, 91 और 93 में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। पांचवी बार वो ‘ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी)’ के टिकट पर जीते। 2002 में उन्होंने इसी क्षेत्र से ‘अखिल भारतीय लोकतांत्रिक काग्रेस’ के टिकट पर लगातार छठी बार जीत का स्वाद चखा। 2017 में उन्होंने होने बेटे विनय शंकर तिवारी को बसपा का टिकट दिला कर इस सीट से विधायक बनवाया।
वहीं उनके एक अन्य बेटे भीष्म शंकर तिवारी संत कबीर नगर से समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए थे। 2009-14 लोकसभा के काल में वो सांसद रहे थे। हरिशंकर तिवारी की छवि एक गैंगस्टर की रही है। उनका पैतृक गाँव चिल्लूपार के ही टांडा में था। हरिशंकर तिवारी के नाम एक रिकॉर्ड दर्ज है कि वो जेल में से चुनाव जीतने वाले पहले गैंगस्टर हैं। उन्हें कभी उत्तर प्रदेश का सबसे प्रभावशाली ‘ब्राह्मण चेहरा’ माना जाता था। 1997 में उन्होंने अन्य नेताओं के साथ मिल कर ‘अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कॉन्ग्रेस’ का गठन किया था। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हों या फिर कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता हों या फिर राजनाथ सिंह, चाहे वो मायावती ही क्यों न हों। वे इन सभी की सरकारों में मंत्री पद संभाला।
हॉस्टल के रूम में एक लड़ाई से शुरू हुआ बाहुबली का जन्म
बाहुबली की कहानी शुरू होती है पूर्वांचल की राप्ती नदी से सटे गोरखपुर जिले से। हॉस्टल के रूम में एक लड़ाई से शुरू हुआ इनका सफर किसको पता था की राजनीति पर जा अटकेगा। देखते ही देखते छात्र राजनीति से निकलकर कुछ सालों में पंडित हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के नेता बन गए थे। दूसरी ओर वीरेंद्र प्रताप शाही क्षत्रियों के नेता के रूप में देखे गए थे। पंडित हरिशंकर तिवारी के बारे में एक बात प्रचलित है कि तिवारी गरीबों के दिल में और अमीरों के दिमाग में रहते थे। इन्हीं के नक्शे कदम पर चल कर ही मुख्तार अंसारी, रमाकांत यादव, राजा भैया और बृजेश सिंह के माफिया राज की शुरुआत हुई थी।
पूर्वांचल से शुरु हुआ सफर
बात है साल 1985 की जब देश में ऐसा पहली बार हुआ कि कोई विधायक जेल में था और विधानसभा की सीट उसकी जेब में। एक इंटरव्यू के दौरान तिवारी ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह पर आरोप लगाते हुए कहा था कि “उन्होंने झूठे केस में फंसा कर मुझे जेल भेजा है। कांग्रेस पार्टी से मेरा पुराना नाता है। मैं प्रदेश कांग्रेस कमेटी से लेकर राष्टीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य रहा। मैंने इंदिरा जी के साथ काम किया है, लेकिन चुनाव कभी नहीं लड़ा और तत्कालीन राज्य सरकार ने जब मुझे झूठे केस में फसाया, तो जनता के प्यार और दबाव के कारण मुझे चुनाव लड़ना पड़ा।” इस चुनाव में हरिशंकर तिवारी गोरखपुर जिले की चिल्लूपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और सलाखों के पीछे रहने के बावजूद निर्दलीय चुनाव जीते।
80 के दशक में उनके ऊपर 26 मामले दर्ज थे। इसमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, छिनौती, रंगदारी, वसूली और सरकारी कार्य में बाधा डालने सहित कई मामले शामिल थे। लेकिन, आज तक किसी भी मामले में उन्हें न्यायालय ने दोषी नहीं करारा। यह वह वक्त था, जब पूर्वांचल में विकास के नाम पर कई योजनाओं के टेंडर जारी हुए और उनके लिए अपराधियों में भिड़ंत हुई। हरिशंकर तिवारी धीरे-धीरे पूरे पूर्वांचल के ठेके अपने पास लेने लगे। रेलवे, कोयला सप्लाई और खनन से लेकर शराब तक के ठेकों पर उनका ही राज चला करता था। उन्होंने लोगों के बीच अपनी ‘रॉबिनहुड’ वाली छवि बना ली।
राजनीति में एक समय ऐसा था जब इंदिरा गांधी के खिलाफ जय प्रकाश नारायण मोर्चा खोले हुए थे। इस दौरान छात्र जेपी के साथ और इंदिरा के खिलाफ विरोध कर रहे थे। लेकिन पूर्वांचल में अलग ही कहानी चल रही थी। पूर्वांचल में माफिया, शक्ति और सत्ता की लड़ाई शुरू हो चुकी थी। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्र यहां बंदूकों की नाल साफ कर रहे थे। यही वह पल है जब हरिशंकर तिवारी की राजनीति में एंट्री होती है। लंबे समय से मूलभूत सुविधाओं से वंचित इस क्षेत्र के युवाओं की दिलचस्पी कट्टों और खतरनाक हथियारों में आ गई।
वीरेंद्र शाही की हत्या का लगा आरोप
80 के दशक में कहा जाता है कि साहेब सिंह और मटनू सिंह नाम के दो शार्प शूटर हरिशंकर तिवारी के लिए काम करते थे और इनकी ही वजह से तिवारी की व्हाइट कॉलर वाली छवि बनी रही। तिवारी ने कभी खुद जुर्म नहीं किया और यही वो समय था जब श्रीप्रकाश शुक्ला ने तिवारी से हाथ मिला लिया था। 1990 के दौरान वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी के बीच कई बार लड़ाई हुई और साल 1997 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दिन के उजाले में वीरेंद्र शाही को मौत के घाट उतार दिया गया था।
ऐसा माना जाता है श्रीप्रकाश शुक्ला ने हरिशंकर तिवारी के कहने पर ही वीरेंद्र की हत्या की थी। इस हत्याकांड के बाद दोनों गुटों के बीच लड़ाई समाप्त हो गई थी लेकिन साथ ही पूर्वांचल की राजनीति में माफिया राज ने जन्म लिया। जैसे-जैसे साल आगे बढ़े पूरे पूर्वांचल पर कब्जा बढ़ता गया। सरकार चाहे कोई भी हो हरिशंकर तिवारी कि मंत्री की गद्दी हमेशा तय रहती थी। एक समय ऐसा आया कि पूर्वांचल के रेलवे, कोयले सप्लाई, खनन, शराब और कई अन्य ठेके हरिशंकर तिवारी के दबदबे का शिकार बन गए थे।
कल्याण सिंह सरकार में रहे विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री
हरिशंकर तिवारी का नाम इस मुकाम तक पहुंच गया था की लगातार 22 वर्षों तक वह विधायक चुने गए थे और साथ ही राजनाथ सिंह, मायावती और मुलायम सिंह यादव के मंत्रिमंडल का अहम हिस्सा रहे। कल्याण सिंह की सरकार में विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री का पद भी तिवारी को दिया गया था। इनको किसी माफिया से खतरा नहीं था क्योंकि अगर कोई विरोधी खतरा बनता था तो वह जिंदा ही नहीं बचता था।
पत्रकार राजेश त्रिपाठी से मिली पराजय
वर्ष 2007 में हरिशंकर तिवारी की राजनीति का पराभव काल शुरू हुआ। पत्रकारिता से राजनीति में कदम रखने वाले राजेश त्रिपाठी ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर हरिशंकर तिवारी को पराजित किया। इस तरह बाहुबली को राजनीति में पहली बार हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 2012 के विधान सभा चुनाव में भी हरिशंकर तिवारी को करारी हार मिली। इसके बाद वे चुनाव में कभी नहीं उतरे।
–इंडिया न्यूज स्ट्रीम