भारत के एयर बेस पर डिफ़ेंस सिस्टम कब लगेंगे ?

यूसुफ किरमानी

28 जून, २०२१

नई दिल्लीः भारत का सालाना रक्षा बजट 3 लाख करोड़ है और देश के तमाम एयर बेस पर एयर डिफेंस सिस्टम ही नहीं है। लेकिन जम्मू में एयर फ़ोर्स स्टेशन पर दो हल्के बम गिराये जाने की घटना के बाद देश के इतने बड़े रक्षा बजट पर सवाल उठ खड़े हुए। आख़िर भारत के पास इस तरह की तैयारी क्यों नहीं है कि ऐसे हमलों को रोका जा सके। जम्मू की घटना में पाकिस्तान शक के दायरे में है।

कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने फौरन कहा कि जम्मू एयर फोर्स स्टेशन पाकिस्तान के रक्षा क्षेत्र से 43 किलोमीटर दूर है। पाकिस्तान की अभी इतनी औकात नहीं हुई है कि वो इतनी दूर जाने वाला ड्रोन खरीद सके जो बम भी गिराता हो। ऐसे ड्रोन से बम गिराने की टेक्नॉलजी सिर्फ अमेरिका और चीन के पास है। अमेरिका तो मित्र है औऱ चीन की सीमा आसपास बिल्कुल भी नहीं है। तो यह रहस्य बरकरार है कि यह ड्रोन किसने भेजा, लेकिन पाकिस्तान शक के दायरे में है।

रक्षा विशेषज्ञ सैयद मोहम्मद मुर्तज़ा कहते हैं कि “भारत के पास पिछले साल सितम्बर-अक्टूबर से यह इंटेलिजेंस इनपुट था कि पाकिस्तानी आतंकी संगठन आईएसआईएस जैसी तकनीक की ट्रेनिंग ले रहे हैं, जिसके ज़रिए ड्रोन से बम गिराये जाते हैं। आईएसआईएस ने ड्रोन के ज़रिए सीरिया में कई स्थानों पर ऐसे बम गिराये थे। इतना ही नहीं 23-24 को तजाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ) -एनएसए बैठक में आतंकी संगठनों के तकनीकी रूप से लैस होने का ज़िक्र किया था। इन बातों का मतलब यह हुआ कि हम लोगों को जानकारी तो सारी है लेकिन तैयारी कुछ भी नहीं है।”

मुर्तज़ा ने जम्मू की घटना के संदर्भ में आशंका जताई कि “इसमें क्वॉडकॉप्टर ड्रोन का इस्तेमाल हुआ है। ऐसे ड्रोन का इस्तेमाल पाकिस्तानी आतंकी संगठन भारत-पाकिस्तान की पंजाब सीमा पर कर चुके हैं। इसके ज़रिए भारत की सीमा में नशीले पदार्थ और हथियार गिराए गए थे। क्वॉडकॉप्टर बहुत हल्के वाले बम ले जाने में सक्षम हैं।”

यह पूछे जाने पर कि ऐसे ड्रोन किस तरह गिराये जा सकते हैं, रक्षा विशेषज्ञ मुर्तुजा ने कहा “इन्हें हार्डकिल (Hardkill) यानि फ़ायरिंग करके या मिसाइल के ज़रिए ऐसे ड्रोन को मार गिराया जा सकता है। दूसरे तरीक़े को सॉफ्टकिल (Softkill) कहते हैं। इसके ज़रिए ड्रोन के सिग्नल को जाम कर दिया जाता है। भारत के पास ऐसे विशेष हथियार या उपकरण नहीं हैं जो ऐसे ड्रोन को टारगेट कर सके।”

मुर्तज़ा ने कहा कि “आतंकियों के क्वॉडकॉप्टर भारत के लिए मुसीबत बनने वाले हैं। क्योंकि यह सस्ता है। आतंकी संगठन कुछ सौ डॉलर में इसे तैयार कर लेते हैं। सीरिया में तो ऐसा ड्रोन मिला था, जिसमें शटल कॉक (बैडमिंटन खेलने में इस्तेमाल होने वाली) ग्रेनेड फ़िट थे। ऐसा ड्रोन और ग्रेनेड दो सौ डॉलर में तैयार हो जाता है। ऐसे ड्रोन के जरिए घुसपैठ आसान है। गिरफ़्तारी का कोई ख़तरा नहीं। मिशन फेल होने पर पाकिस्तान का फ़ौरन बयान आ जाता है कि वो ड्रोन हमारा नहीं था।”

रक्षा विशेषज्ञ मुर्तज़ा ने इस बात पर हैरानी जताई कि “पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन के दौरान लाल क़िले पर डीआरडीओ द्वारा विकसित एंटी ड्रोन सिस्टम का प्रदर्शन किया गया था। कहाँ गए वो एंटी ड्रोन सिस्टम? सच तो यह है कि अगर हमारे पास कोई चीज़ है भी तो हमने उसे सही जगह लगाया नहीं है। डीआरडीओ का एंटी ड्रोन सिस्टम बहुत आसानी से तीन किलोमीटर की सीमा में उड़ने वाले दुश्मन के माइक्रो ड्रोन तक का सिग्नल जाम कर सकता है या उसके इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को बर्बाद कर सकता है।”

भारत की तैयारी

भारत की तैयारी इस पर निर्भर है कि उसे भविष्य में अपने मित्र देशों से क्या टेक्नॉलजी मिलती है। रूस से दिसम्बर 2021 में एंटी एयरक्राफ्ट सिस्टम एस-400 मिल सकता है। इसकी क्षमता इतनी जबरदस्त है कि यह सिस्टम 400 किलोमीटर दूर भी किसी लड़ाकू विमान को गिरा सकता है। इस तकनीक के आने पर भारत भी चीन के बराबर एयर डिफेंस में आ जाएगा, लेकिन सवाल यही है कि सिस्टम अमेरिका का बिकेगा या चीन का। इसी तरह भारतीय वायुसेना हैमर तकनीक खरीदना चाहती है जिसमें हवा से नीचे जमीन पर उड़ते हुए विमान से मिसाइल गिराई जा सकती है। यह सिस्टम राफाल लड़ाकू विमानों के अऩुकूल है। आमतौर पर मिसलाइल गिराने के लिए एक निश्चित ऊंचाई चाहिए होती है लेकिन हैमर तकनीक में कहीं भी किसी भी ऊंचाई से मिसाइल गिराई जा सकती है। फ्रांस यह तकनीक बेचने और ट्रेनिंग देने को तैयार है।

अभी तक भारत में रक्षा विशेषज्ञ इस बात पर बहस कर रहे थे कि भारत ऐसी टेक्नॉलजी खरीदे जिसके जरिए भविष्य में लड़े जाने वाले तकनीकी युद्ध होंगे या फिर वह परंपरागत ढंग से लड़ाकू विमान औऱ हेलिकॉप्टर खरीदता रहे। लेकिन जम्मू में आसमान से दो हल्के बम गिरने से बहस की दिशा बदल गई है और अब एयर डिफेंस को यूएवी, ड्रोन और अन्य तकनीक के जरिए मजबूत करने की बात चल रही है।

भारत यूएवी (मानव रहित एयरक्राफ्ट, ड्रोन आदि), रॉकेट और मिसाइल रेजीमेंट की संख्या बढ़ा रहा है। भविष्य की लड़ाई हवा में ज्यादा होने वाली है। एक पूरी लॉबी इस पर जुटी हुई है कि भारतीय सेना को अमेरिका से हथियारबंद प्रीडेटर ड्रोन (Armed Predator Drones) खरीदकर भारतीय सेना को दे दिए जाएं। अगर अमेरिका से यह सौदा होता है तो अमेरिका ने कहा है कि वह भारतीय रक्षा विशेषज्ञों को साइबर सिक्योरिटी की ट्रेनिंग भी दे देगा क्योंकि भारतीय रक्षा ठिकाने भारत के साइबर दुश्मनों के निशाने पर हैं। लेकिन इस धंधे में चूंकि फ्रांस और रूस भी हैं तो वे भी इस तरह का कुछ भारत को बेचना चाहते हैं। फ्रांस ने अभी जो राफाल बेचा है, वही कंपनी यह सिस्टम भी बेचने को तैयार है। यह सारा काम लॉबी के जरिए कराने की कोशिश हो रही है।

दरअसल, खतरा किससे है

हमारे रक्षा विशेषज्ञों के दिलो दिमाग में पाकिस्तान छाया हुआ है। वे अखबारों से लेकर टीवी डिबेट में पाकिस्तान को ले आते हैं। टीवी चैनल भी इससे खुश रहते हैं लेकिन भारत के आसपास घट रही घटनाओं और खासकर चीन को लेकर वे कोई बात नहीं करना चाहते। यह खबर अब आम हो चुकी है कि चीन की सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) जिनझियांग में होटन एयर बेस और तिब्बत में निंगची एयरबेस को अपग्रेड किया है यानी दोनों एयरबेस पर चीन ने एंटी एयरक्राफ्ट सिस्टम एस- 400 स्क्वॉन्ड्रन्स ल़ॉन्च किया है। ये दोनों इलाके लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और अरुणचल प्रदेश के नजदीक हैं। चीन के इस एयर डिफेंस में यूएवी और ड्रोन मुख्य रूप से शामिल हैं। जब यह खबर आम हुई तो चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने 22 जून को कहा था कि भारत के एयर डिफेंस की स्थिति बहुत नाजुक होती जा रही है और प्रस्तावित डिफेंस थियेटर कमांड की जरूरत बढ़ गई है।

बहरहाल, कुल मिलाकर बिकेंगे तो हथियार ही और अगला रक्षा बजट शायद और बढ़ कर आए। भारत में प्राइवेट सेक्टर में डिफेंस का भविष्य उज्जवल है। हथियारों की खरीद-फरोख्त कराने वालों की लॉबिंग का गोल्डन टाइम शुरु होने जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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