नई दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को )ने अपनी शिक्षा रिपोर्ट में बताया है कि प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में भारत में 10 में से 7 स्कूल निजी क्षेत्रों में खुले हैं और करीब 57% स्कूली छात्र निजी क्षेत्र में पढ़ रहे हैं ।
यूनेस्को ने आज स्कूली शिक्षा के निजीकरण पर ग्लोबल रिपोर्ट जारी करते हुए यह बताया है कि दक्षिण एशियाई देशों में स्कूली शिक्षा का निजीकरण काफी तेज गति से हो रहा है और वह विश्व के अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दक्षिण एशिया की सरकारें 15% से कम खर्च शिक्षा पर कर रही हैं जिसके कारण शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र पांव पसार रहे है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता से असंतोष के कारण लोग निजी क्षेत्रों में अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। लेकिन आज निजी शिक्षा को नियंत्रित एवम निगरानी करने की जरूरत है।कोविड के दौरान स्कूली छात्र जरूर सरकारी स्कूलों की तरफ लौटे हैं लेकिन कुल मिलाकर निजी करण को ही बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की स्तिथि संतोषजनक नहीं है ।
यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट में भारत अफगानिस्तान बांग्लादेश भूटान श्रीलंका नेपाल मालदीव पाकिस्तान ईरान आदि देशों का अध्ययन किया है और स्कूली शिक्षा में तेजी से हो निजी कारण की जानकारी दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 के बाद 10 में से 7 स्कूल भारत में प्राइवेट खुल रहे हैं। प्री प्राइमरी स्तर पर 25% प्राइमरी स्तर पर 45% और माध्यमिक स्तर पर 51 प्रतिशत छात्र आज निजी क्षेत्रों में पढ़ रहे हैं ।
रिपोर्ट में भी कहा गया है किरोजगार के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं के कारण कंपटीशन अधिक बढ़ने से और शिक्षा की गुणवत्ता कम होने के कारण ट्यूशन का बाजार अधिक फल फूल रहा है और लोगों को पढ़ाई पर अधिक खर्चा उठाना पड़ रहा है ।
रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया मे घरेलू ख़र्चका औसतन करीब 38% हिस्सा शिक्षा पर उठाना पड़ रहा है। नेपाल में यह 50% पाकिस्तान में 57% और बांग्लादेश में 71% हो गया है ।भारत में सरकारी स्कूल के छात्रों में की तुलना में निजी स्कूल के छात्रों पर खर्च 5 गुना अधिक हो गया है ।
रिपोर्ट के अनुसार भारत के 50% से अधिक स्कूल निजी क्षेत्रों में है जबकि ईरान में तो यह 93 प्रतिशत है, नेपाल में 25% पाकिस्तान में 30% है ।
रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका बांग्लादेश जैसे देशों में भी ग्रामीण और शहरी इलाकों में शिक्षापर अभिभावकों के खर्च में काफी इजाफा हुआ है ।रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सच है कि अगर प्राइवेट स्कूल नहीं होते तो दक्षिण एशिया के अधिकतर छात्र निरक्षर रह जाते लेकिन यह सरकार का कर्तव्य बनता है कि वह शिक्षा के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक निवेश करें और गुणवत्ता को बहाल करें तथा निजी स्कूलों को नियंत्रित करे । — इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम