नई आजादी का जश्न और अच्छे दिन आएंगे का कोरस

एक थीं कंगना रनौत. फिल्मों में काम करतीं थीं. कुछ अच्छी फिल्में उन्होंने की. शुरुआती नाकामी के बाद उन्हें कामयाबी भी मिली. उनके अभिनय को सराहा भी गया. उनके अभिनय के लिए उन्हें समामन-अवार्ड भी मिले. राष्ट्रीय पुरस्कार से भी उन्हें नवाजा गया. लेकिन यह कहानी आजादी से पहले की है. ‘गुलाम देश’ की नागरिक कंगना रनौत को देश के लोगों ने ही नहीं फिल्मों को जानने-समझने वालों ने सर माथे पर बिठाया. यह कहानी पुरानी हो गई है. इसकी टीस कंगना को साल रही है. गुलाम देश में रहने वालों ने उन्हें क्यों सराहा, क्यों उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिए इसकी कसक उन्हें है. इसलिए देश की आजादी की गौरव गाथा का बखान वे सभा-समारोहों में कर रहीं हैं, चैनलों पर बोल रहीं हैं. ये कंगना रनौत दूसरी हैं.

एक कंगना रनौत वह थीं जिन्हें भीख में मिली आजादी वाले भारत में ही पहली बार राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था. उन्हें यह पुरस्कार भीख में नहीं दिया गया, बल्कि उनके अभिनय के लिए दिया गया जिन्होंने उस दौर में कई कामयाब फिल्में दीं. एक कंगना रनौत यह हैं. अब यह फिल्में कम करतीं हैं, लेकिन अपने विचारों से देश में नफरत फैलाती रहती हैं. जहर इस कद्र फैलाती हैं कि ट्वीटर ने उन पर पाबंदी लगा डाली. लेकिन वे लगातार दूसरे तरीकोंसे नफरत फैलाने में लगातार लगीं हैं. इन कंगना रनौत और उनक कंगना रनौत का बड़ा फर्क यह है कि इस नए हुए आजाद देश में उन्हें अवार्ड या पदमश्री सम्मान उनकी प्रतिभा के लिए नहीं बल्कि उनकी लंपटई, बड़बोलेपन और पागलपन की वजह से ज्यादा मिला है.

पिछले कुछ सालों में फिल्मों की वजह से कम, विवादों की वजह से ज्यादा चर्चा में रहीं हैं. विवादों ने उन्हें भगवा ब्रिगेड की चहेती भी बना डाला. इस मामले में उन्होंने कइयों को पीछे छोड़ दिया, हालांकि कई और भी सरकार की भक्ति में कम नहीं लगे थे. लेकिन कंगना ज्यादा किस्मत वाली रहीं. भाजपा उन पर मेहरबान है और केंद्र सरकार भी.

उन कंगना रनौत पर जिन्होंने महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के विरोध में विवादित टिप्पणी की थी, उन पर भाजपा की मेहरबानी तो ठीक है लेकिन उन कंगना रनौत पर जो आजादी को भीख कह रही हैं उन पर भाजपा की मेहरबानी, रनौत के साथ-साथ उनकी नीयत पर भी सवाल खड़े करती है. फूहड़पन और बददिमागी इस हद तक बढ़ेगी, हममें से बहुत कम लोगों ने इसकी कल्पना की होगी. लेकिन कंगना ने ऐसा किया. सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा और पूरी भगवा ब्रिगेड से भी है और सरकारी चीयर्स लीडरों यानी चैनलों से भी है.

अखिलेश यादव के जिन्ना का जिक्र, राशिद अलवी के बयान या सलमान खुर्शीद की किताब पर हिंदू-मुसलमान करते चैनलों, एंकर-एंकरानियों को कंगना के भीक में मिली आजादी और फिर गांधी के भीख के कटोरे जैसे शब्दों पर न तो एतराज हुआ न हीइसपर बहस-मुबाहिसा. कंगना चैनलों के एजंडे पर नहीं थीं और होंगी भी नहीं. क्योंकि वे भाजपा और केंद्र सरकार की चहेती हैं और भाजपा की चहेती तो फिर कंगना रनौत पर सवाल कौन और क्यों करे. हिंदुइज्म और हिंदुत्व पर बहस हो रही है.

सलमान खुर्शीद की किताब पढ़ी नहीं है लेकिन एक आम नागरिक होने के नाते गांधी के हिंदुत्व और गोडसे के हिंदुत्व का फर्क समझ में आता है. देश में गोडसे के हिंदुत्व को चलाने के लिए छाती पीटी जा रही है. एंकर-एंकरनियां चीख रहे हैं. लेकिन सच तो यह है कि हिंदुत्व को समझने के लिए गांधी को समझना जरूरी है और जो गांधी को नहीं समझ सकते वे हिंदुत्व को भी नहीं समझ सकते. लगे रहें चैनलों पर. लड़ते रहें एक दूसरे से. बनाते रहे चुनावी मुद्दा लेकिन देश चलेगा तो गांधी के हिंदुत्व से, गोडसे के हिंदुत्व को मानने वाले चाहे जितना चीख-पुकार मचा लें.

निजी चैनल के एक कार्यक्रम में कंगना रनौत ने जो कुछ भी कहा वह शर्मनाक है. देश में कंगना के बयान को लेकर आक्रोश है, लेकिन भाजपा खामोश है. कंगना के बयान पर न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शर्मिंदा हैं और न ट्वीटर-ट्वीटर खेलने वाले भाजपा के छोटे-बड़े नेता, वरुण गांधी को छोड़ कर. निर्लज्जता और बेशर्मी की प्रकाष्ठा देखें जब वे ऐसा बोल रहीं थीं तो एंकरानी नाविका कुमार ने तो इस पर आपत्ति दर्ज नहीं ही की, वहां मौजूद लोगों ने तालियां तक बजाईं. उनसे बातचीत कर रहीं देश की ‘महान एंकर’ नाविका कुमार मुस्कराती हैं, फिर लहालोट होकर कहती हैं कि इसीलिए सब आपको कहते हैं कि आप भगवा हैं. यह रेंगती हुई पत्रकारिता थी और रीढ़विहीन एंकरानी.

कंगना ने जो कहा सबने देखा-सुना और वहां मौजूद लोगों की प्रतिक्रिया भी. तालियों की आवाजें और देश के सबसे पुरानी मीडिया समूह का स्वतंत्रता सेनानियों पर की गई टिप्पणी पर कंगना के कसीदे पढ़ना, यह सकते में डालने वाला था. हैरानी नहीं हुई, नाविका की मुस्कुराहट या उनकी टिप्पणी पर. यह वही नाविका हैं जो भाजपा प्रेम में राहुल गांधी को ऑनएअर गाली दे चुकीं हैं. तो फिर कंगना से काउंटर करतीं ऐसा कैसे संभव था.

कंगना रनौत ने 1947 में देश को मिली आज़ादी को ‘भीख’ में मिली हुई आज़ादी बताया और नाविका और उनका संस्थान उनका मौन समर्थन करता रहा. विवाद बढ़ा तो चैनल को लगा गड़बड़ हो गई तो सफाई दी, वैसी ही सफाई जैसी राहुल को गाली देने के बाद नाविका कुमार ने टसुए बहाए थे. सबसे कड़ी प्रतिक्रिया भाजपा सांसद वरुण गांधी की आई. भाजपा की तरफ से यह इकलौती प्रतिक्रिया रही.

वरुण गांधी ने कंगना रनौत के बयान वाले वीडियो को साझा करते हुए वाजिब सवाल उठाया कि इसे ‘पागलपन कहा जाए या फिर देशद्रोह’. कंगना के बयान पर सरकार की चुप्पी इसलिए और भी साल रही है क्योंकि कुछ दिन पहले ही एक पत्रकार पर सिर्फ त्रिपुरा इस बर्निंग कहने पर यूएपीए लगा दिया जाता है, लेकिन देश के तमाम स्वतंत्रता सेनानी को अपमानत करने के लिए कंगना को पदमश्री से सम्मानित किया जाता है. हालांकि दो दिन पहले यह सम्मान उन्हें मिला था. लेकिन क्या इस पुरस्कान-सम्मान की वे हकदार हैं. उनके इस बयान के बाद तो उनसे सभी राष्ट्रीय पुरस्कार वापस ले लेने चाहिए.

कोई भी संवेदिनशील सरकार होती तो अब तक कंगना के खिलाफ कार्रवाई हो गई होती लेकिन कंगना तो सरकार के साथ गलबहैयां कर रहीं हैं. कौन उन पर कार्रवाई करेगा. किसी और ने यह बात कही होती तो अब तक टुकड़े-टुकड़े गैंग से लेकर न जाने कितने संज्ञा-विशोषणों से उसे संबोधित किया जा चुका होता और पूरा मीडिया लगा होता. चीखते-चिल्लाते एंकर-एंकरानियां, भाजपा और उनके चहते पैनलिस्टों की पूरी फौज, लाइट-एक्शन-कैमरा. यानी चैनलों की बल्ले-बल्ले. पर यहां तो सन्नाटा पसरा है. मानो कंगना ने आजादी का मखौल नहीं उड़ाया, बस कोई मजाकिया जुमला उछाल दिया है.

टाइम्स नाउ न्यूज़ चैनल के एक कार्यक्रम में कंगना ने कहा, …और उन्होंने एक क़ीमत चुकाई… बिल्कुल वह आज़ादी नहीं थी, वह भीख थी. और जो आज़ादी मिली है वह 2014 में मिली है. वरुण गांधी का ट्वीट भाजपा पर भी सवाल खड़े करता है. उन्होंने ट्वीट किया कि कभी महात्मा गांधी के त्याग और तपस्या का अपमान तो कभी उनके हत्यारे का सम्मान. अब तो कंगना मंगल पाण्डेय से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों का तिरस्कार. भाजपा को वरुण का यह ट्वीट जरूर चुभा होगा. कंगना को तो चुभा ही. वरुण गांधी के ट्वीट पर इंस्टाग्राम पर उन्होंने अपनी राय रखते हुए और भी आपत्तिजनक बयान दियास और गांधी को भीख का कटोरा लिया बताया. पद्मश्री मिलने के बाद कंगना का बौराना वाजिब भी है. क्योंकि पद्मश्री उन्हें काबलियत की वजह से तो मिला नहीं है.

देश के ज्यादातर लोग इसे समझ रहे हैं. कंगना भले इसे लेकर इतराती हुई कहें कि पद्मश्री ने यह दिखाया कि कैसे देश ने उन्हें एक आदर्श नागरिक के रूप में भी महत्त्व दिया है. सच तो यह है कि उनकी इतनी गहरी अज्ञानता पर दया ही किया जा सकता है और उन पर भी जो उनकी अज्ञानता, चाटुकारिता, निर्लज्जता पर तालियां बजा रहे थे. संघ परिवार और आरएसएस लगातार इतिहास को बदलने की कोशिश में लगा है.

एक मूढ़ लड़की ने कुछ दिन पहले ही चैनल पर कहा था कि आजादी 99 साल की लीज पर मिली थी और अब एक दूसरी मूढ़ महिला ने देश के उन तमाम स्वतंत्रता सेनानियों जिनमें नरेंद्र मोदी के आराध्य सरदार पटेल भी हैं का सरेआम अपमान किया. वैसे कंगना रनौत को उन नरेंद्र मोदी से जरूर यह पूछना चाहिए कि आजादी का अमृत महोत्सव सरकार क्यों मना रही है, आजादी तो सात साल पहले मिली थी. क्या कंगना रनौत में यह हिम्मत है.

भगवा ब्रिगेड की नई झंडाबरदार बनीं कंगना रनौत के बयान पर भाजपा की चुप्पी नरेंद्र मोदी पर भी सवाल खड़े करती है. भाजपा शुतुरमुर्ग की तरह भले इस तरह के मामले में रेत में अपनी गर्दन डाल दे लेकिन तूफान गुजरने के बाद भी उससे सवाल पूछे जाते रहेंगे. जिस कंगना को वह अभी सर माथे पर बैठा रही है, वह एक दिन उनके लिए परेशानी का सबब भी बनेगी, देख लेना. सत्ता का आडंबर और चमक कब किसे, किसके सम्मोहन में डाल दे कहा नहीं जा सकता. इंतजार करें और इस नई मिली आजादी का जश्न मनाते हुए कोरस में गाएं- अच्छे दिन आएंगे.

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