मुंबई : सपनों की नगरी मुंबई में मेट्रो और मोनो रेल आने से पहले भी और बाद में भी लोकल ट्रेन (उपनगरीय रेल सेवा) के अलावा अगर कोई और सेवा महानगर की जीवनरेखा रही है तो वह बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) की बॉम्बे इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट यानी ‘बेस्ट’ बस सेवा ही रही है।
बेस्ट का देश की श्रेष्ठ बस सेवाओं में शुमार ऐसे ही नहीं किया जाता क्योंकि मुंबई महानगर के कोने-कोने तक लगभग हर सड़क पर दौड़ने वाली बसों से महानगर की ढाई करोड़ की आबादी को उपनगरीय रेलवे स्टेशनों से कार्यस्थलों और घरों तक जोड़ने समेत सपने साकार करने की जद्दोजहद में लगे लोगों का अटूट संबल है यह बस सेवा। इसलिए निजीकरण की आंधी में पिछले कुछ वर्षों से इस बस सेवा को बर्बाद करने में लगे बेस्ट प्रबंधन और बीएमसी को रोकने के लिए सजग मुंबईकरों ने एक अभियान को जन्म दिया है, जिसका नाम है, ‘आमची मुंबई आमची बेस्ट ‘( हमारी मुंबई, हमारी बेस्ट)।
महामारी के दौरान भी जब लोकल ट्रेनों में अब तक आम लोगों को यात्रा करने की अनुमति नहीं है, सस्ते और सुलभ सार्वजनिक परिवहन के रूप में बेस्ट की सेवाएं जारी रही हैं, शायद इसीलिए बेस्ट को बचाने के लिए ‘आमची मुंबई आमची बेस्ट‘, जिसमें बेस्ट की यूनियनों से जुड़े सदस्यों समेत कर्मचारी भी शामिल हैं और पूर्व पत्रकारों समेत कुछ सजग नागरिक भी तो कुछ जनवादी व युवा संगठन भी। आमची मुंबई आमची बेस्ट ने एक अभियान शुरू कर बीएमसी और बेस्ट प्रबंधन को इस सेवा को बबार्द न करने का आह्वान किया है।
अभियान के तहत बताया गया है कि महामारी के दौरान बेस्ट के सैकड़ों कर्मचारी कोविड-19 का शिकार होकर जान गंवा चुके हैं, लेकिन सेवाएं जारी रहीं और संकट के समय भी लोगों का सबसे विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन साबित हुईं लेकिन बस सेवा का विस्तार करने के बजाय बेस्ट प्रबंधन और बीएमसी सेवाओं को संकुचित कर रहे हैं। महामारी का इस्तेमाल कर बड़ी बसें के मुकाबले ठेका आधार पर निजी और छोटी बसें चला रहे हैं। इससे मजदूरों, कर्मचारियों, स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चों से लेकर वृद्ध नागरिकों को बस की लंबी कतारों में काफी समय, कई बार घंटों, ज़ाया करना पड़ रहा है।
2019 में बेस्ट प्रबंधन ने कर्मचारी यूनियनों के साथ एक करार किया था कि बेस्ट की बसों की संख्या 3327, जो उस समय थी, कम नहीं होने दी जाएगी और प्राइवेट बसें (छोटी और कंडक्टर बिना बसें) अतिरिक्त होंगी। लेकिन आज बेस्ट की बसों की संख्या घटकर 1999 होगईहै जबकि कुल बसों (निजी बसों को मिलाकर) की संख्या 3267 है।
बेस्ट की बसें बड़ी होने के कारण 72 यात्रियों को ढोने की क्षमता रखती हैं, जबकि एक निजी बस में 30 यात्री ही बैठ सकते हैं। अलावा इसके यह कंडक्टर रहित बसें होने के कारण बस स्थानकों पर ही ठेकेदार या कई बार ड्राईवर खुद यात्रियों से भाड़ा लेकर टिकट देते हैं, जिससे स्थानकों पर वेटिंग टाइम बढ़ता है और बसों की फ्रीक्वेंसी घटती है। कुल मिलाकर बसों की संख्या भी घटी है, यात्रियों की सीटों की संख्या में तो बहुत ज्यादा गिरावट आई है।
प्रति एक लाख की आबादी पर 50 बसों का पैमाना अपनाया जाए तो मुंबई जैसे महानगर में 70 सीटर 6250 बसों की आवश्यकता है। वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के सुझाये नियमानुसार दिल्ली व मुंबई जैसे महानगरों में 12500 बसों की जरूरत है।’आमची मुंबई आमची बेस्ट’ ने सवाल किया है कि जब बीएमसी और बेस्ट के पास सांस्थानिक क्षमता भी है, सक्रिय कार्यबल भी और पैसा भी तो मुंबईकरों को उच्च गुणवत्ता वाली और सस्ती सार्वजनिक परिवहन सेवा से वंचित क्यों किया जा रहा है? और मांग की है कि बसों का बेड़ा 2010-11 के स्तर (4385 बड़ी बसें) पर लाया जाए।
मुख्य सड़कों पर केवल बेस्ट बसों के लिए विशेष लेन बनाये जाएं। कुल मिलाकर ‘आमची मुंबई आमची बेस्ट’ अभियान के तहत बेस्ट सेवाओं के विस्तार का आह्वान बेस्ट व बीएमसी से किया गया है ताकि लोगों को सस्ता सार्वजनिक परिवहन, जो उनका अधिकार भी है, मिले।
–इंडिया न्यूज़ स्ट्रीम
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