झारखंड: राज्यपाल ने डोमिसाइल बिल लौटाया

रांची : झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में पारित डोमिसाइल बिल को लौटा दिया है। राज्यपाल ने कहा है कि यह बिल संविधान के प्रावधान तथा उच्चतम न्यायालय के आदेश के विपरीत है। हेमंत सोरेन सरकार ने बीते वर्ष 11 नवंबर को यह बिल पारित किया था। सरकार ने इस बिल को ऐतिहासिक बताया था। इस फैसले को राज्य की जनता के हक में अब तक का सबसे ठोस कदम बताते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पूरे राज्य में यात्रा निकाल रहे हैं। ऐसे में राज्यपाल द्वारा विधेयक लौटाया जाना राज्य सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। राज्यपाल ने राज्य सरकार को बिल को लौटाते हुए इसकी समीक्षा करने को कहा है। उन्होंने कहा कि बिल को संविधान व उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुसार होना चाहिए। राज्यपाल ने अपनी समीक्षा के दौरान पाया है कि इस बिल में जिस तरह की शर्तें लगाई गई हैं, राज्य विधानमंडल के पास वह शक्ति नहीं है।

बता दें कि राज्य सरकार द्वारा पारित इस बिल में यह प्रावधान किया गया है कि जिन व्यक्तियों या जिनके पूर्वजों के नाम 1932 या उसके पूर्व राज्य में हुए भूमि सर्वे के कागजात (खतियान) में दर्ज होंगे, उन्हें ही झारखंड राज्य का डोमिसाइल यानी स्थानीय निवासी माना जायेगा। इसके साथ ही प्रावधान भी जोड़ा गया है कि राज्य में थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नियुक्तियों में शत-प्रतिशत पदों पर झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की ही नियुक्ति होगी।

इस विधेयक को विधानसभा के विशेष सत्र में पारित कराए जाने के बाद राज्य सरकार ने इसे राज्यपाल को उनके अनुमोदन और इसपर राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त करने के लिए भेजा था।

राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ए.वी.एस. नरसिम्हा राव एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश एवं अन्य के केस का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट द्वारा स्पष्ट व्याख्या की गई है कि नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की शर्तें लगाने का अधिकार मात्र भारतीय संसद में ही निहित है। इस प्रकार यह विधेयक संविधान के प्रावधान तथा उच्चतम न्यायालय के आदेश के विपरीत है।

राज्यपाल ने कहा, झारखंड राज्य के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आच्छादित होते है। उक्त क्षेत्रों में शत प्रतिशत स्थानीय व्यक्तियों को नियोजन में आरक्षण देने के विषय पर उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक बेंच द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किया जा चुका है। इस आदेश में भी उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में नियुक्तियों की शर्तों लगाने के राज्यपाल में निहित शक्तियों को भी संविधान की धारा 16 के विपरीत घोषित किया गया था। सत्यजीत कुमार बनाम झारखंड राज्य के मामले में भी पुन: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में राज्य द्वारा दिये गए शत प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया गया था।

राज्यपाल ने इस विधेयक पर विधि विभाग द्वारा की गई टिप्पणी का भी उल्लेख किया है। विधि विभाग ने इस विल के प्रावधानों को संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत बताया है। विभाग की टिप्पणी में कहा गया है कि ऐसा प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय एवं झारखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा पारित संदर्भित कतिपय न्याय-निर्णय और न्यायादेश के अनुरूप नहीं है। साथ ही ऐसा प्रावधान अनावश्यक वाद-विवादों को जन्म देगा।

–आईएएनएस

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