लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के समर्थन में हुए प्रदर्शन को पुलिस ने मात्र 15 मिनट में ख़त्म करा दिया।नागरिक समाज द्वारा तीस्ता की रिहाई के लिये लगाए जा रहे नारों पर भी पुलिस को आपत्ति थी।
लखनऊ के शहीद स्मारक पर सोमवार की शाम नागरिक समाज के लोग तीस्ता के समर्थन में जमा हुए थे। विभिन सामाजिक संगठनों के अलावा शिक्षाविद, छात्र, अधिवक्ता और पत्रकार आदि भी सामाजिक कार्यकर्ता की रिहाई कि माँग करने आये थे। लेकिन प्रदर्शन शुरू होते ही वहाँ भारी संख्या में पुलिस बल आ गया। पुलिसकर्मीयों ने आते ही प्रदर्शनकारियों पर धरना ख़त्म करने का दबाव बनना शुरू कर दिया।
इस बीच पुलिस का बढ़ता दबाव देखकर कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ता पुलिस से बात करने गईं। जिसके बाद पुलिसकर्मीयों और प्रदर्शनकारियों में बहस शुरू हो गई।
वहाँ मौजूद पुलिस अधिकारियों का कहना था कि धरना अवैध है। क्यूँकि इसकी अनुमति ज़िला प्रशासन से नहीं ली गई है। जबकि प्रदर्शनकारियों का कहना था कि “धरना-प्रदर्शन-आंदोलन” करने का लोकतांत्रिक देश में सभी नागरिकों का अधिकार है। “संविधान” से मिले अधिकार के लिये, किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है।
हालत को देखते हुए पुलिस ने नागरिक समाज को प्रदर्शन के लिये केवल 15 मिनट का समय दिया। प्रदर्शन शुरू होते ही नागरिक समाज ने सरकार की “दमनकारी” नीतियों की आलोचना शुरू कर दी।
इस बीच धरना स्थल पर अतिरिक्त पुलिस बल आ गया।जैसे ही प्रदर्शनकारियों ने तीस्ता सीतलवाड़ की रिहाई की माँग में नारा लगाया।पुलिस दोबारा सक्रिय हो गई।
प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने दोबारा बनाकर धरना ख़त्म करा दिया।जबकि सभी वरिष्ठ वक्ता जिसमें लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा, प्रो०रमेश दीक्षित, सामाजिक कार्यकर्ता मधु गर्ग, वंदना रॉय, मीना सिंह, अधिवक्ता विरेंद्र त्रिपाठी और पत्रकार दया शंकर राय बोलने के लिए बाक़ी थे।
इन में से कुछ से धरना समाप्ति के बाद बात कि तो उन्होंने कहा कि सरकार ने देश में “अघोषित आपातकाल” जैसा मौहल बना दिया है।देश में असहमति की आवाज़ उठाने वालों पर मुक़दमे किये जा रहे हैं।
प्रो रूप रेखा वर्मा ने कहा कि “सरकार पुलिस भेजकर हमको डराना चाहती है, लेकिन हम सरकारी दमन के विरुद्ध आवाज़ उठाते रहे गे।” तीस्ता सीतलवाड़, संजीव भट्ट और गुजरात के पूर्व डीजीपी, आरबी श्रीकुमार की गिरफ़्तारी की निंदा करते हुए उन्होंने कहा की इनको जेल बदले के भावना से भेजा गया है।क्यूँकि यह वह लोग हैं, जिन्होंने ने “गुजरात नरसंहार” के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी।
तीस्ता सीतलवाड़ की रिहाई की माँग करते हुए प्रो रमेश दीक्षित ने कहा कि सीतलवाड़ ने जिन के विरुद्ध आवाज़ उठाई आज वह सत्ता के शीर्ष पर है।अब वह सीतलवाड़ का उत्पीड़न कर रहे हैं।
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की मधु गर्ग कहती है “मुझको यह समझ में नहीं आता कि एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन से सरकार को क्या समस्या थी, जो धरना पुलिस के बल पर रुकवा दिया गया।
क़ानून के जानकार विरेंद्र त्रिपाठी के अनुसार देश का मौहल ऐसा हो रहा है, जैसे “अघोषित आपातकाल”। छात्र नेता प्रियांशी अग्रवाल कहती है, असहमति की आवाज़ उठाने वालों के साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है, जैसे वह अपराधी हों।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में यह पहली बार नहीं हुआ है जब किसी आंदोलन को कुचला गया हो।इस से पहले नगरिकता संशोधन क़ानून (सीएए( के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों भी भाजपा सरकार के निशाने पर आये थे।
प्रदेश में सीएए के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में क़रीब 20 लोगों की जान गई थी।आरोप है सभी पुलिस की गोली से मारे गये।इसके अलवा बड़ी संख्या में लोगों को जेल भेजा गया था।
जेल जाने वालों में पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी, अधिवक्ता मोहम्मद शोएब, रंगकर्मी दीपक कबीर, अम्बेडकरवादी दलित चिंतक पवन राव अम्बेडकर और कांग्रेसी नेता सदफ़ ज़फ़र आदि शामिल थे।
आप को बता दें कि राजधानी लखनऊ में हाथरस कांड के प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर भी लाठीचार्ज किया गया।इसके अलवा घंटाघर (हुसैनाबाद) में महिलाओं के सीएए विरोधी आंदोलन में भी पुलिस ने बड़ी संख्या में आंदोलनकरीं महिलाओं पर मुक़दमे दर्ज किये।