क्या ऐसे आएगा बीएचयू का पुराना गौरव वापस? वीसी से लेकर प्रॉक्टर तक सब कार्यकारी

देश के प्रतिष्ठित व उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय के रूप में कभी पहचान रही बीएचयू अब अपने पूराने गौरव को हासिल करने के लिए जूझ रहा है। इस विश्वविख्यात विश्वविद्यालय के अधिकांश पद कार्यवाहक के भरोसे चल रहा है। जिसमें कुलपति से लेकर प्राक्टर तक के पद शामिल हैं।

इन पदों पर स्थायी नियुक्तियां न होने से सभी विकास कार्य प्रभावित हैं। ऐसे से तो कई पद खाली पड़े हैं, पर चार प्रमुख स्थान खाली होने से व्यवस्था पर अब सवाल उठने लगे हैं। जिसमें बीएचयू के कुलपति, चीफ इंजीनियर, प्रॉक्टर व बरकछा कैंपस के आचार्य प्रभारी शामिल हैं। इन पदों से छात्रों का रोजाना का नाता है।

बीएचयू के निवर्तमान कुलपति प्रो. राकेश भटनागर का कार्यकाल समाप्त होने के एक महीने पहले ही नए कुलपति के चयन के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था। शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित कमेटी के अध्यक्ष गुजरात केंद्रीय विवि के कुलपति डॉ. हंसमुख अढ़िया थे। हैदराबाद के अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विवि के वीसी प्रो. ई. सुरेश कुमार तथा आईआईएम नागपुर के प्रो. भममा आर्य मैत्री कमेटी के सदस्य थे। कमेटी को 11 एवं 12 फरवरी को 13 आवेदकों का साक्षात्कार बीएचयू कैंपस में ही करना था, लेकिन साक्षात्कार से दो दिन पहले ही कमेटी भंग कर दी गई। 29 मार्च को प्रो. राकेश भटनागर का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से अब तक बीएचयू को स्थाई कुलपति का इंतजार है।

इसका नतीजा है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शोध प्रवेश परीक्षा का परिणाम जारी होने में विलम्ब होने पर छात्रों को सड़क पर उतरना पड़ा। केंद्रीय कार्यालय पर प्रदर्शन कर छात्रों ने कार्यवाहक कुलपति प्रो. वीके शुक्ला को ज्ञापन सौंपते रोष जताया। उनका कहना था कि इस वर्ष अप्रैल माह में ही आरईटी का आयोजन हुआ था। आखिकार एक पखवारा पूर्व रिजल्ट घोषित हुआ। अभी भी सभी प्रमुख पदों पर तैनाती बाकी है। इसका सीधा असर यहां के शिक्षण व्यवस्था रहा पड़ रहा है।

हाल यह है कि काफी समय से जीके सिंह चीफ इंजीनियर के पद पर कार्यवाहक के रूप में तैनात हैं। इसी तरह विश्वविद्यालय के मिर्जापुर बरकछा मैं आचार्य प्रभारी के पद पर कृषि संस्थान के प्रो. बीके मिश्र तैनात किया गए हैं। पिछले माह चीफ प्राक्टर प्रो. आनंद चौधरी ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद से डिप्टी चीफ प्राक्टर बीसी कापड़ी काम देख रहे हैं।

कार्यवाहक कुलपति के भरोसे चल रहे देश के प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों में बीएचयू, केंद्रीय विवि झारखंड, छत्तीसगढ़ केंद्रीय विवि, केंद्रीय विवि सागर, जम्मू केंद्रीय विवि, हिमाचल केंद्रीय विवि, हरियाणा केंद्रीय विवि, साउथ बिहार केंद्रीय विवि, बिहार केंद्रीय विवि, दिल्ली विवि, जेएनयू, राजस्थान केंद्रीय विवि, मेघालय केंद्रीय विवि, हैदराबाद केंद्रीय विवि, उर्दू केंद्रीय विवि हैदराबाद, मणिपुर केंद्रीय विवि, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान शामिल रहे हैं। इसमें से कुछ स्थानों पर नई तैनाती हाल ही में हुई है। जबकि बीएचयू को अपने कुलपति का अभी भी इंतजार है।

यहां के छात्रों का कहना है कि लगातार कैंपस में शैक्षणिक माहौल खराब होने से निराशा मिल रही है। इसमें भी प्रमुख पदों के रिक्त रहने के कारण परेशानी और बढ़ी है।
ऐसे वक्त में जब मोदी सरकार नई शिक्षा नीति लागू कर उच्च शिक्षा के संस्थानों में शोध के बेहतर माहौल बनाने की बात कर रही है। तब यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर शिक्षक से लेकर तमाम जिम्मेदार पदों पर बिना तैनाती किए आखिर कौन सा माहौल हम बनाने में सफल को पाएंगे।

विश्व गुरु के रूप में भारत को स्थापित करने की बात करने वाली हमारी सरकार उच्च शिक्षण संस्थानों की उपेक्षा कर क्या अपने लक्ष्य को हासिल कर पायेगी। अंतर्राष्ट्रीय मानक पर खरा उतरने के लिए उच्च शिक्षा केंद्रों को संसाधन संपन्न शोध केंद्र का स्वरुप दिए बिना कैसे संभव है। हालात यह है कि ये संस्थान अभी बुनियादी संकट से जूझ रहे हैं।

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