अडानी-हिंडनबर्ग मामला आखिर क्या है?

नई दिल्ली : एक उदयोगपति जो कुछ समय पहले तक दुनिया के अमीरतरीन लोगों में शामिल थे और सबसे अमीर भारतीय माने जाते थे, कैसे सिर्फ चन्द दिनों के अन्दर अमीरों की लिस्ट में कई स्थान नीचे चले गए?

जी हां, हम उद्योगपति गौतम अडानी की बात कर रहे हैं। शेयर बाज़ार में उनका नुकसान 100 बिलियन अमरीकी डॉलर तक कैसे पहुंच गया? अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों ने गोता क्यों लगाया? ऐसे कुछ सवालों के जवाब यहां देने की कोशिश हम करेंगे।

इस कड़ी में हम अडानी-हिंडनबर्ग प्रकरण पर एक नज़र डालेंगे जिससे आपको पता चले कि इस प्रकरण में मूल मुद्दा क्या है।

अडानी की किस्मत हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट जारी किये जाने के बाद रूठी। रिपोर्ट में इस भारतीय उद्योग समूह के खिलाफ गंभीर आरोप लगाये गये थे और कारोबारी जगत में तहलका मचा दिया था। देश की उच्चतम अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई है।

रिपोर्ट 24 जनवरी को रिलीज़ की गई थी जब अडानी समूह की प्रमुख फर्म अडानी एंटरप्राइजेस का 20 हजार करोड़ (2.5 बिलियन अमरीकी डॉलर) का एफपीओे आने वाला था।

रिपोर्ट आने के बाद अडानी को बाज़ार में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का नुकसान हुआ। रायटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय लिस्टेड अडानी कंपनियों की मिलाकर मार्केट वैल्यू 108 बिलियन अमरीकी डॉलर है, जो हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने से पहले 218 बिलियन अमरीकी डॉलर थी।

रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के एक सप्ताह बाद अडानी समूह ने घोषणा की कि अडानी एंटरप्राइजेस लिमिटेड का 20 हजार करोड़ रुपये का एफपीओे रद्द किया जा रहा है और निवेशकों का पैसा लौटा दिया जाएगा।

आइये, पहले देखते हैं कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मुख्य बिंदु क्या हैं जो भारत के सबसे बड़े कारोबारी और औद्योगिक समूहों में से एक की वित्तीय यानी फाइनेंशियल और ऑपरेशनल गतिविधियों का विश्लेषण करती हैं। इसके अलावा हम रिपोर्ट के बाहर आने से लेकर अब तक की हलचल पर भी निगाह डालेंगे।

भारतीय कारोबार व उद्योग के कई क्षेत्रों जैसे उद्योग, रियल एस्टेट, पोर्ट, एग्रीबिज़नेस, डिफेंस आदि में अडानी समूह का कारोबार फैला हुआ है। आरोप है कि अपने शेयरों के दाम बढ़ाने के लिए काफी जोड़तोड़ व गड़बड़ियां समूह की तरफ से की गई हैं।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने अपनी सब्सीडरी और ज्वाइंट वेंचरों से बड़ी मात्रा में राजस्व प्राप्त किया है जो इसके समेकित यानी कंसोलीडेटेड वित्तीय स्टेटमेंट में नहीं है। इससे कंपनी की वास्तविक वित्तीय हालत और लाभकारिता यानी प्रॉफिटेबिलिटी को लेकर भ्रामक, गुमराह करने वाली तस्वीर उभरती है। रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि अडानी समूह इनसाइडर ट्रेडिंग और टैक्स चोरी में भी संलिप्त है।

रिपोर्ट पर्यावरण संबंधी मामलों को लेकर भी अडानी समूह पर सवाल उठाती है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि समूह ने बड़े पैमाने पर जंगलों का नुकसान किया है, जमीनी पानी और वायु को प्रदूषित किया है और इस तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह के कार्पोरेट गवर्नेंस के मुद्दे पर चिंता जताई गई है और कहा गया है कि कंपनी का नियंत्रण इसके संस्थापक गौतम अडानी के हाथ है जो माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स के लिए ठीक नहीं है।

अब रिपोर्ट पर जहां तक अडानी समूह की प्रतिक्रिया का जहां तक मामला है, समूह ने 413 पृष्ठों का जवाब दिया और उक्त सारे आरोपों को खारिज कर दिया है। समूह ने रिपोर्ट को भारत के खिलाफ हमला करार दिया है। अडानी समूह के जवाब के बाद हिंडनबर्ग का तीखा बयान सामने आया जिसमें उसने कहा कि वह अपनी रिपोर्ट पर कायम है। उसने यह भी कहा कि “धोखाधड़ी को राष्ट्रवाद के आवरण से ढंका नहीं जा सकता।“

अडाणी समूह ने उत्तरदायी कारोबारी गतिविधियों के प्रति अपनी कटिबद्धता दोहराई और कहा कि वह लगातार टिकाऊ और सामाजिक नज़रिये से महत्वपूर्ण परियोजनाओं को अंजाम देता रहा है। कंपनी ने यह भी कहा कि वह अपना काम पूरी तरह नियम-कानून के दायरे में रहकर ही करते हैं।

हालांकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के सामने आने के बाद अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों में तीखी गिरावट आई और समूह ने अपना एफपीओ भी रद्द किया। ब्लूमबर्ग बियानायेर इंडेक्स के अनुसार दुन्य के अमीर्तम लोगों की लिस्ट में अब ३२वेन अस्थान पर है जब की हिन्देंबर्ग रिपोट से पहले वह तीसरे अस्थान पे थे.

एफपीओ यानी फालोऑन पब्लिक ऑफर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शेयर बाजार में सूचीबद्ध यानी लिस्टेड कंपनी नये शेयर जारी करती है जो उसके वर्तमान शेयरधारक भी खरीद सकते हैं और नये निवेशक भी।

यहां एक बात बताना जरूरी है कि हिंडनबर्ग रिसर्च एक शॉर्ट-सेलिंग रिसर्च संस्था है और अडानी समूह के शेयरों के दाम में गिरावट में उसका निहित स्वार्थ है।

आप पूछेंगे कि यह शॉर्ट-सेलिंग क्या बला है? जब एक निवेशक खरीद-फरोख्त इस तरह करता है कि खरीदे, खुले बाजार में बेचे और दाम सस्ते होने पर फिर खरीदे तो उसे शॉर्ट-सेलर कहते हैं। यह प्रक्रिया दीर्घावधि निवेशकों को रास नहीं आती जो चाहते हैं कि शेयरों दाम ऊपर जाएं।

अब हम जान लें कि इस समय बात कहां पहुंची है।

मीडिया में आई खबरों के अनुसार अडानी समूह ने न्यू यॉर्क की कानूनी फर्म वॉचटेल लिप्टन, रोज़न एंड कैटेक्स को हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ केस लड़ने के लिए हायर किया।

इधर, भारत में सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई। दरअसल, रिपोर्ट सामने आने के बाद एडवोकेट विशाल तिवारी, एडवोकेट मनोहर लाल शर्मा, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और अनामिका जैसवाल ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की थीं। याचिकाओं में भारतीय निवेशकों को नुकसान पहुंचाने के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच करने का अनुरोध भी था तो हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाये गये आरोपों के आधार पर अडानी समूह के खिलाफ जांच करने का भी।

। अदालत ने जो कमेटी स्थापित की है, उसे दो महीने में अपनी रिपोर्ट बंद लिफाफे में देने का निर्देश दिया है। कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे करेंगे। यह कमेटी हालात का समग्रता में आकलन करेगी औैर वह कारक बतायेगी जिनकी वजह से शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव आया।

इसके अलावा यह कमेटी वह उपाय भी बतायेगी जिससे निवेशकों में जागरूकता को मजबूत किया जा सके। कमेटी इसकी भी जांच करेगी कि अडानी समूह समेत अन्य कंपनियों की तरफ से कथित कानून उल्लंघन में नियामक संस्थाओं की विफलता तो नहीं थी।

अदालत ने सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) को भी अपनी जांच दो महीने में पूरी करने औैर स्टेटस रिपोर्ट पेश करने को कहा।

—iइंडिया न्युज्ज़ स्ट्रीम

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