भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव हर रोज चुनौती भरा बनता जा रहा है. पांच राज्यों में यूं तो चुनाव होना है लेकिन भाजपा का सारा जोर यूपी पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार यूपी में सक्रिय हैं और योजनाओं व घोषणाओं का पिटारा खोल रहे हैं. लेकिन विपक्ष की लामबंदी भाजपा को परेशानी में डाल रही है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की सक्रियता से भाजपा में बेचैनी है और शायद यही वजह है कि नरेंद्र मोदी ने अपना सारा जोर यूपी पर लगा रखा है.
भाजपा इसे देखते हुए अब जदयू के साथ मिल कर यूपी में चुनाव लड़ना चाहती है. कितनी सीटें भाजपा यूपी में जदयू को देगी, यह अभी तय नहीं है. सीटों को लेकर बातचीत चल रही है और जल्द ही इसके घोषणा की उम्मीद है. सियासी पंडितों का मानना है कि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू को साथ लेना भाजपा की मजबूरी बन गई है क्योंकि यूपी में कोयरी और कुर्मी वोटरों की तादाद अच्छी खासी है और कई सीटों पर वे जीत-हार को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए भाजपा हर कीमत पर जदयू को साथ लेने की जुगत में है. बिहार में भाजपा नेताओं ने कुछ मामलों को लेकर भले नीतीश कुमार के खिलाफ मुखरता से बोला हो लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने नीतीश कुमार के खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा है.
भाजपा यूपी चुनाव से पहले किसी भी हाल में अपने पुराने सहयोगी को नाराज करना नहीं चाहती क्योंकि नीतीश कुमार को नाराज करने से उसे यूपी में नुकसान हो सकता है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने साफ किया है कि भाजपा से बातचीत चल रही है और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है. सीटों की तादाद को लेकर भी उन्होंने साफ किया कि इन बातों को मीडिया के जरिए सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. सही वक्त पर सारी बातें सामने रखी जाएंगी. कमोबेश ऐसी ही बातें जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने की. वे कुछ दिन पहले यूपी में थे और संगठन के पदाधिकारियों से मिल कर चुनाव पर चर्चा की थी.
वैसे इतना तो तय है कि भाजपा नेतृत्व ने जदयू से यूपी चुनाव के लिए उन सीटों की सूची मांगी है जहां से वह विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार को उतारने की इच्छा रखता है. इससे पहले 2007 में जदयू को भाजपा ने 20 सीटें दीं थीं लेकिन इस बार भाजपा इतनी सीटें देने के मूड में नहीं है वैसे कहा जा रहा है कि जदयू ने ज्यादा सीटों की सूची भाजपा को थमाई है. कुछ दिन पहले आरसीपी सिंह ने भाजपा नेतृत्व से गठबंधन के संबंध में बात कर सूची सौंपी है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस सिलसिले में मुलाकात की थी.
ऐसा माना जा रहा है किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ माहौल है. ऐसे में इसकी भरपाई भाजपा मध्य व पूर्वी उत्तर प्रदेश से करना चाहती है. इन इलाकों में कुर्मी-कोयरी व अति पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. ऐसे में इस बात की कोशिश की जा रही है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन क्षेत्रों में एनडीए के पक्ष में सभा करें. अति पिछड़ा वर्ग के लिए उनके काम की चर्चा पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य उत्तर प्रदेश में की जाती रही है. जदयू की कोशिश है कि यूपी के इन क्षेत्रों में वह भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़े. यूपी में जदयू अपने बूते चुनाव लड़ तो सकता है लेकिन कितनी सीटें वह जीतेगा, इसे लेकर वह भी पसोपेश में है. वैसे यह जरूर होगा कि अगर वह अकेले चुनाव लड़ता है तो इससे भाजपा को नुकसान होगा. अगर पांच हजार वोट भी उसके उम्मीदवारों को आते हैं तो भाजपा को इससे नुकसान हो सकता है.
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, विकासशील इंसान पार्टी और लोजपा पारस गुट भी विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारना चाहता है लेकिन भाजपा जदयू को ही तवज्जो दे रही है. इससे पहले हरिकेवल प्रसाद सलेमपुर सीट से समता पार्टी की टिकट पर 1998 में लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. फिर 2004 में यूपी के आंवला लोकसभा क्षेत्र से कुंवर सर्वराज सिंह जदयू के टिकट पर जीते थे. पिछली बार जदयू ने यूपी में अपना उम्मीदवार उतारा ही नहीं था. जदयू राष्ट्रीय स्तर पर अपना पहचान तो बना चुका है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसे पार्टी के तौर पर मान्यता नहीं मिली है. इसलिए उत्तर प्रदेश से वह इसकी शुरुआत करने के मूड में है. सवाल यह है कि भाजपा से अगर बात नहीं बनती है तो क्या जदयू अकेले चुनाव में उतरेगा. इस सवाल का जवाब न तो पार्टी नेताओं के पास है और न ही सियासी विशलेषकों के पास.











