ऐसे थे पेले

नई दिल्ली, फ़ज़ल इमाम मल्लिक: कोलकाता की गलियों में पेले और उनकी जादूगरी के किस्से आम हैं। वे लोग ज्यादा उत्साह से पेले की जादूगरी की बात करते हैं जिन्होंने 1977 में तब के कलकत्ता में पेले को खेलते देखा था। अपनी जादूगरी से उन्होंने फुटबाल के मक्का कहे जाने वाले शहर के लोगों को कायल किया था। उस दौर के हजारों लोग और उनके खिलाफ खेलने वाले खिलाड़ी आज भी अभिभूत हैं। उन क्षणों को याद करते हुए वे अघाते नहीं हैं। पेले के निधन के खबर ने यूं तो दुनिया भर के फुटबाल प्रेमियों को मर्माहत किया लेकिन कोलकाता के लोगों के लिए यह गहरा सदमा ही था। उनसे एक भावनात्मक रिश्ता इस शहर से था और है। कोलकाता में पेले फुटबाल की जादूगरी न दिखाते तो शायद उनके चाहने वाले तो होते लेकिन भावनात्मक तौर पर उन्हें शायद ही याद किया जाता। अपने जमाने के मशहूर फुटबालर मोहम्मद हबीब उन खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्होंने पेले के उस कासमस क्लब के खिलाफ मैदान पर कलाकारी दिखाई थी, जिसने कोलकाता में प्रदर्शनी मैच खेला था। मोहम्मद हबीब ने कासमस क्लब के खिलाफ गोल कर अपनी प्रतिभा से पेले को कायल भी किया था। मोहन बागान क्लब से लेकर मोहम्मडन स्पोर्टिंग और भारत के लिए खेल चुके हबीब के लिए वह क्षण गर्व भरा था जब पेले ने उस गोल के लिए उनकी प्रशंसा की थी। एक बड़े खिलाड़ी की दूसरे अच्छे खिलाड़ी का यह उद्गार हबीब आज भी नहीं भूले हैं। वे कहते हैं कि पेले गोल के बाद उनके पास आए, उनके कंधे को थपथपाया और तारीफ के जुमले कहे। हबीब बताते हैं कि उनका बड़प्पन था कि मुझ जैसे छोटे खिलाड़ी की उन्होंने पीठ थपथपाई।

ऐसी ही कुछ बातें गौतम सरकार भी करते हैं। अपने जमाने के बेहतरीन मीडियो में से एक गौतम सरकार और प्रदीप चौधरी को पेले को रोकने की या कहें कि निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। पेले को गौतम सरकार ने बहुत आजादी लेने नहीं दी। उन पलों को याद करते हुए सरकार कहते हैं कि पेले ने उनकी तारीफें कीं तो वे हतप्रभ रह गए। सरकार कहते हैं कि पेले उन्हें देख कर मुस्कुराए और कहा कि तो यह तुम हो नंबर-14 (गौतम सरकार 14 नंबर की जर्सी पहनते थे) जिसने मुझ पर कड़ी निगरानी रखी और मुझे रोके रखा। सरकार कहते हैं कि उनकी यह बात सुन कर एक मेरे अंदर ऊर्जा का नया संचार हुआ। चुन्नी गोस्वामी पोडियम के पास ही खड़े थे। पेले की बात उन्होंने सुन ली थी। बाद में उन्होंने कहा कि अब तुम्हें फुटबाल से संन्यास ले लेना चाहिए। पेले की इस प्रतिक्रिया के बाद सचमुच और क्या हासिल करना था फुटबाल से। पेले की तारीफ मेरे करिअर की सबसे बड़ी उपलब्धि रही। यह अपनी तारीफ नहीं है लेकिन एक अखबार में छपा था कि न्यूयार्क कासमस क्लब में मेरा फोटा लंबे समय तक टंगा था। पेले हमारे प्रदर्शन से बहुत प्रभावित हुए थे इसलिए वे पहले तमाम खिलाड़ियों से मिलना चाहते थे। पेले को यह उम्मीद नहीं थी कि कोई भारतीय क्लब उनके खिलाफ इस तरह का प्रदर्शन कर सकता है।

कोलकाता के लोग 1977 को याद करते हुए कहते हैं कि तब का दौर दूसरा था। टीवी आजकी तरह प्रचलन में नहीं था। कंप्यूटर की तो किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। मोबाइल और टैबलेट भी नहीं थे जो खेल के उस जादूगर के वीडियो बनाए जा सकते। सिर्फ यादें हैं और उन यादों में पेले कहीं अंदर तक मुस्कुराते हुए नजर आते हैं। 22 सितंबर,1977 को तबके दमदम हवाईअड्डा और आजके नेताजी सुभाषचंद्र अंतरराष्ट्रीय एअरपोर्ट पर पेले ने न्यूयार्क कासमस क्लब के अपने साथियों के साथ पांव धरा था। कासमस क्लब को मोहन बागान के खिलाफ नुमाइशी मैच खेलने के लिए न्यौता गया था। कासमस क्लब गुडविल टूर के तहत एशियाई देशों के दौरे पर थी और अंतिम मैच मोहन बागान के खिलाफ खेलना था। हालांकि उस टीम में कई स्टार खिलाड़ी थे। उनमें विश्व विजेता टीम के सदस्य रहे ब्राजीली कार्लोस अलबर्टो टोरेस और इतालवी खिलाड़ी जार्जियो चिंगालिया भी थे। लेकिन दीवानगी बस सिर्फ एक खिलाड़ी को लेकर थी और वे थे पेले।

मोहन बागान टीम की अगुआई पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सुब्रत भट्टाचार्य कर रहे थे। तब ईडन गार्डन में फुटबाल के मैच भी हुआ करते थे। 24 सितंबर को खेले गए इस मैच को लेकर जो उत्तेजना और उत्सुकता थी, उसे वे बयान करते हुए कहते हैं कि पेले को भारत लाने का सारा श्रेय मोहन बागान के तब के प्रमुख धीरेन दा को जाता है। उनकी पहल पर ही पेले और कासमस क्लब कोलकाता आए थे। सुब्रत बताते हैं कि जब हमें पता चला कि हमें पेले के खिलाफ मैच खेलना है तो हम रोमांच से भर उठे। हालांकि उस टीम में कई और बड़े खिलाड़ी थे लेकिन पेले सबसे अलग और सबसे खास थे। हम इतने उत्साहित थे कि मैच से पहले हमने अपना वार्मअप करना भी छोड़ दिया ताकि हम उन्हें प्रैक्टिस करते हुए देख सकें।

हालांकि मैच शायद उस ऊंचाई को नहीं छू पाया था, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। मोहन बागान ने कासमस क्लब के खिलाफ बेहतरीन प्रदर्शन किया था और मैच एकतरफा नहीं रहा था। मुकाबला 2-2 से ड्रा छूटा था। हालांकि पेले मैच में गोल नहीं दाग पाए थे। लेकिन अपने चमत्कारिक फुटबाल से उन्होंने कोलकाता के फुटबाल प्रेमियों का मन मोह लिया था। उन्होंने कुछ क्लासिक टच दिखाए। पैरों की कलाकारी और ड्रिब्लिंग का कमाल भी दिखाया। उन्होंने दर्शनीय फ्री किक लगाया था लेकिन मोहन बागान के गोलची शिवाजी बनर्जी ने इस पर बेहतरीन बचाव कर फुटबाल के इस जादूगर को गोल करन से रोक दिया था। यह सही है कि मोहन बागान तब पेले की इस टीम के बनिस्बत कमजोर था और पेले के सम्मोहन में हर खिलाड़ी जकड़ा था। उनका बाल कंट्रोल, हेडिंग, राइट फुटर और किसी भी डिफेंस को घुटने पर ला देने की महारत अदभुत थी। कोलकाता के दर्शकों ने इसे देखा और सराहा था। दरअसल पेले ने फुटबाल के नए व्याकरण को गढ़ा था। अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने पेले से हुई मुलाकात पर कहा था कि मैं रोनाल्ड रीगन, अमेरिका का राष्ट्रपति हूं लेकिन आपको अपना परिचय देने की जरूरत नहीं क्योंकि हर कोई जानता हैं कि कौन पेले है।

पेले अब नहीं हैं। फुटबॉल खेलना अगर कला है तो उनसे बड़ा कलाकार दुनिया में शायद कोई दूसरा नहीं हुआ। तीन विश्व कप खिताब, 784 मान्य गोल और दुनिया भर के फुटबॉलप्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने पेले उपलब्धियों की एक महान गाथा छोड़कर विदा हुए हैं। पेले ने यूं तो उन्होंने 1200 से ज्यादा गोल दागे थे लेकिन फीफा ने 784 को ही मान्यता दी है। वे फुटबॉल की लोकप्रियता को चरम पर ले जाकर उसका बड़ा बाजार तैयार करने वाले खिलाड़ियों में से रहे।उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि 1977 में जब वह कोलकाता आए तो मानों पूरा शहर थम गया था। वे 2015 और 2018 में भी भारत आए थे। कोलकाता आज भी उनकी जादूगरी का मुरीद है।

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akash

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