सौरभ, क्रिकेट और सियासत

सौरभ गांगुली की बीसीसीआई से विदाई हो गई। उनकी विदाई भी बहुत सम्मानजनक नहीं रही। मैदान से भी उनकी बिदाई लगभग ऐसी ही रही थी और अब जबकि वे देश के क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था के पद से विदा हुए तो कई तरह के विवाद खड़े हो गए। विवाद तो उनके अनुकंपा पर अध्यक्ष बने रहने पर भी होते रहे थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही फैसले को पलट कर नई नजीर बनाई और सौरभ व बोर्ड के सचिव जय शाह के लिए राह आसान की थी। लेकिन सौरभ गांगुली सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत के बाद भी बोर्ड के अध्यक्षपद पर बने नहीं रह सके। वे अध्यक्ष पद से हटे और इसकी वजह सियासत बताई जा रही है। सियासत हो भी रही है। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने तलवारें म्यान से बाहर निकाल ली हैं।

सौरभ के बाद रोजर बिन्नी का बीसीसीआई के नए अध्यक्ष बने हैं। वे भारत के 1983 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य थे। रोजर बिन्नी की बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर ताजपोशी बिना कीसी हील-हुज्जत के निपट गई। उनके खिलाफ किसी ने नामांकन नहीं किया था। वैसे अब यह सवाल लगातार किए जा रहे हैं कि सौरभ गांगुली को क्यों हटाया जा रहा है और जय शाह क्यों बने हुए हैं। जय शाह दोबारा सचिव बन सकते हैं तो सौरभ क्यों नहीं। सौरभ गांगुली को अध्यक्ष पद पर दूसरा मौका क्यों नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने तो सौरभ का रास्ता भी साफ कर ही दिया था।

यह सवाल इसलिए महत्त्वपूर्ण हो गया है क्योंकि सौरभ कि विदाई को सियासत से जोड़ कर देखा जा रहा है। बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि भाजपा की गंदी सियासत का शिकार हो गए हैं सौरभ गांगुली। तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता हैं कुणाल घोष। कुणाल घोष ने इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि भाजपा ने सौरभ को किनारे लगा दिया है। दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त इस बात की खूब चर्चा हुई थी कि सौरभ गांगुली भाजपा में शामिल होंगे और विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। उन्हें भाजपा मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी बता रही थी। तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सौरभ के घर खाने पर भी गए थे और भाजपाइयों ने खाना खाते अमित शाह और सौरभ की तसवीर को वायरल कर तृणमूल कांग्रेस को खूब चिढ़ाया था। सौरभ गांगुली और भाजपा के रिश्ते को लेकर उसी डिनर के बाद कयास लगाए जाने लगे थे। अमित शाह ने गांगुली के साथ उनके दक्षिण कोलकाता स्थित घर पर डिनर किया था। रात्रिभोज में परिवार के करीबी सदस्य ही शामिल रहे थे। डिनर के बाद गांगुली ने मीडिया से कहा था कि इसे लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन इसके पीछे कोई खास वजह नहीं है। वैसे अमित शाह के साथ डिनर से पहले गांगुली ने कहा था- मैं उन्हें 2008 से जानता हूं। मैं उनके बेटे के साथ काम करता हूं। वे हमारे घर आ रहे हैं और हमारे साथ खाना खाएंगे। लेकिन इसके बाद फिर गांगुली के राजनीति में शामिल होने के कयास तब लगाए जाने लगे थे जब उन्होंने एक ट्वीट किया था।

उन्होंने ट्वीट में कहा था कि वे अपनी जिंदगी का नया अध्याय शुरू करने की योजना बना रहे हैं। हालांकि उन्होंने यह साफ़ नहीं किया कि वह नया अध्याय किस रूप में होगा। उन्होंने ट्वीट में लिखा था- आज मैं कुछ ऐसा शुरू करने की योजना बना रहा जो मुझे लगता है कि शायद बहुत से लोगों की मदद करेगा। मुझे आशा है कि आप अपना समर्थन जारी रखेंगे क्योंकि मैं अपने जीवन के इस अध्याय में प्रवेश कर रहा हूं। जाहिर है कि इसके बाद बहुत सारे अगर-मगर जैसे सवाल सामने आए। कयास लगाया जाने लगा था कि क्या वे राजनीति के पिच पर उतरने की सोच रहे हैं। भाजपा में सौरभ गांगुली के जाने की चर्चा ने तब फिर जोर पकड़ा था।

लेकिन सौरभ भाजपा में नहीं गए। भाजपा कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा पड़ा। फिर भाजपा विधानसभा चुनाव में चारों खाने चित हो गई। ममता बनर्जी और भी ताकतवर होकर बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं। अब बारी तृणमूल कांग्रेस की है। भाजपा को अब वह चिढ़ा रही है और सौरभ गांगुली को अपमानित करने का आरोप लगा रही है। निशाने पर भाजपा और उसका शीर्ष नेतृत्व है। वैस बीसीसीआई ने शायद गांगुली को आईपीएल प्रमुख पद की पेशकश की थी। लेकिन सौरभ ने इसे मंजूर नहीं किया। वजह साफ है जो व्यक्ति बीसीसीआई का अध्यक्ष रहा हो वह आईपीएल का प्रमुख क्यों बनना चाहेगा। अगर कोई ऐसा करता है तो इससे उसकी हैसियत तो घटेगी ही, उसे बार-बार अपमानित भी होना पड़ेगा। तृणमूल इन सबके लिए सीधे-सीधे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जिम्मेदार ठहरा रही है। तृणमूल ने इसे सियासी बदला बताया और सवाल किया है कि अमित शाह के बेटे जय शाह को बीसीसीआई के सचिव के रूप में दूसरा कार्यकाल मिल सकता है, तो गांगुली को क्यों नहीं।

बीसीसीआई ने राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई के पदाधिकारियों के कार्यकाल के अनिवार्य कूलिंग-ऑफ अवधि को खत्म करने की शुरुआत की। यानी कोई पदाधिकारी लगातार दो कार्यकाल तक उस पद पर बना रह सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठ रहे हैं और विशेषज्ञों की राय है कि सुप्रीम कोर्ट को तो इस मामले में सख्त रवैया अपना कर अवमानना का मामला चलाना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने ही कूलिंग आफ अवधि पर फैसला सुनाया था। लेकिन बीसीसीआई ने उस फैसले पर अमल नहीं किया। पहले इन पदों पर लगातार दो कार्यकाल तक कोई नहीं रह सकता था। इसके लिए कूलिंग-ऑफ़ अवधि होनी चाहिए थी। लेकिन अब प्रशासकों को लगातार दो कार्यकाल के बाद ही कूलिंग-ऑफ़ पीरियड से गुजरना होगा।

बहरहाल, अमित शाह का जिक्र करते हुए तृणमूल नेता ने कहा है कि भाजपा के एक वरिष्ठ नेता इस साल मई में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान के घर रात के खाने के लिए गए थे। वैसे तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि मुझे लगता है कि सौरभ स्थिति को समझाने के लिए सबसे अच्छे व्यक्ति हैं। अगर उनके पास स्थिति की कोई राजनीतिक व्याख्या है, तो मुझे नहीं पता कि वह कितना साफ़ कर सकते हैं। अब तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सौरभ के बीसीसीआई के अध्यक्ष पद से हटाए जाने पर सवाल उठाया है और कहा है कि उन्हें आईसीसी भेजा जाना चाहिए। ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को इशारे-इशारे में इसके लिए जिम्मेदार माना है और भाजपा नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर दिया है। दिलचस्प यह है सौरभ गांगुली को आईसीसी भेजने की गुहार उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की है। भारत में क्रिकेट में भले सियासी दखल खूब होता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में किसी को पद पर बनाने या हटाने का खेल तो सदस्य देश के बोर्ड ही करते हैं र जाहिर है कि सदस्य देशों के बोर्डों में मोदी जी की तो नहीं ही चलेगी। लेकिन ममता बनर्जी सौरभ गांगुली के अपमान की बात कर रहीं हैं तो उन्होंने भाजपा नेतृत्व को परोक्ष रूप से निशाने पर लिया है।

तृणमूल के इन आरोपों को भाजपा ने निराधार बताते हुए कहा है कि पार्टी ने कभी भी गांगुली को शामिल करने की कोशिश नहीं की। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि हमें नहीं पता कि भाजपा ने सौरभ गांगुली को पार्टी में शामिल करने की कोशिश कब की। सौरभ गांगुली क्रिकेट के दिग्गज हैं। कुछ लोग अब बीसीसीआई में बदलाव को लेकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। क्या उनकी कोई भूमिका थी जब उन्होंने बीसीसीआई अध्यक्ष का पद संभाला था। तृणमूल को हर मुद्दे का राजनीतिकरण करना बंद कर देना चाहिए। दिलीप घोष भले सौरभ पर सियासत न करने की सलाह दे रहे हैं लेकिन देश जानता है कि भाजपा कहां और कितनी सियासत करती है। वैसे दलीलें जो भी दी जाए भारत में क्रिकेट में सियासी दलों का खूब जलवा है। सारे विरोध, गिले-शिकवे भूल कर यहां एक-दूसरे के साथ सभी दल के नेता कदमताल करते दिखाई देते हैं। भारत में क्रिकेट सियासत का एक बड़ा हथियार है, सभी दल इस हथियार को अपने-अपने तरीके से इस्तेमाल करते हैं। सौरभ गांगुली अभी इसी सियासत का हथियार बन गए हैं।

————— इंडिया न्यूज स्ट्रीम

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