बिहार भाजपा को पटरी पर लाने की कवायद राष्ट्रीय नेतृत्व ने शुरू कर दी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भाजपा हाल के कुछ महीनों में लगातार हमलावर रही. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कई नेताओं ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाया. बिहार भाजपा के प्रभारी भूपेंद्र यादव का परोक्ष रूप से उन्हें साथ भी मिला. लेकिन इसका खमियाजा बिहार में भाजपा को उठाना पड़ा. पहले एमएलसी चुनाव में भाजपा 12 से सात सीटों पर सिमट गई और फिर बोचहा उपचुनाव में उसे करारी मात हुई. भाजपा के अंदरखाने भी घमासान मचा था. इन पर लगाम लगाने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के पर भी कतरे और प्रदेश इकाई को संदेश भी दिया कि नीतीश कुमार से उलझना ठीक नहीं है.
कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के अचानक पटना दौरे ने कई संकेत दिए. प्रधान पटना आए और नीतीश कुमार से मुलाकात की. इस मुलाकात की खबर पटना में बैठे भाजपा नेताओं तक को नहीं लगी. इससे समझा जा सकता है कि उनका पटना दौरा कितना महत्त्वपूर्ण था. बिहार प्रदेश भाजपा के नेताओं को उनके दौरे की भनक तक नहीं मिली. धर्मेंद्र प्रधान पटना पहुंचे और फिर नीतीश कुमार से मुलाकात करने उनके घर पहुंच गए. नीतीश कुमार से उनकी लंबी बातचीत हुई. रात भर वे पटना में रहे और अगली सुबह दिल्ली के लिए रवाना हो गए. यूं तो यह एक सामान्य सी बात लगती है लेकिन भाजपा और एनडीए की राजनीति को समझने वाले इसे सामान्य नहीं मान रहे हैं.
भाजपा का कोई बड़ा नेता दिल्ली से आए और सिर्फ नीतीश कुमार से मिलकर वापस लौट जाए, तो इसका सियासी मतलब तो निकाला ही जाएगा. हद तो यह है कि लंबे समय तक बिहार भाजपा के प्रभारी रहे धर्मेंद्र प्रधान पार्टी के प्रदेश कार्यालय भी नहीं गए. दरअसल धर्मेंद्र प्रधान के पटना दौरे का मिशन सिर्फ एक था-नीतीश कुमार से मुलाकात करना. इस घटनाक्रम ने बिहार भाजपा में बदलाव के बड़े संकेत दे दिये हैं.
भाजपा नेताओं का मानना है कि पिछले कई सालों से बिहार में भाजपा के प्रभारी भूपेंद्र यादव के कद को छोटा कर दिया गया है. वे बिहार में पार्टी को किसी कंपनी की तरह चला रह थे. लेकिन उनके कई फैसले पार्टी को रास नहीं आए इसलिए फिर से धर्मेंद्र प्रधान को बिहार भेजा गया है. भाजपा नेताओं का मानना है कि अब धर्मेंद्र प्रधान वही रोल निभायेंगे जो किसी जमाने में अरुण जेटली निभाया करते थे. उस दौर में पार्टी का प्रभारी कोई रहे, नीतीश कुमार से जुडे गठबंधन के मामलों को जेटली देखते थे. अब वह काम धर्मेंद्र प्रधान करेंगे. संगठन का काम कोई भी देखे, गठबंधन की दूसरी पार्टियों से समन्वय का काम धर्मेंद्र प्रधान ही देखेंगे.
भाजपा सूत्रों के मुताबिक धर्मेंद्र प्रधान पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों को विश्वास है. धर्मेंद्र प्रधान को उत्तर प्रदेश चुनाव का प्रभारी बनाया गया था. वहां पार्टी की सत्ता में वापसी का बड़ा श्रेय उन्हें मिला है. लिहाजा उन्हें बिहार में समन्वय की जिम्मेवारी सौंपी गई है. धर्मेंद्र प्रधान ने नीतीश कुमार से तकरीबन दो घंटे तक बातचीत की और कहा जाता है कि उन्होंने इस दौरान इस बात पर चर्चा की, जसकी वजह से भाजपा और जदयू में टकराव जैसे हालात बन गए थे. भाजपा सूत्र बता रहे हैं कि धर्मेंद्र प्रधान अब अमित शाह और जेपी नड्डा के साथ बात कर दोनों पार्टियों में बेहतर समन्वय का रास्ता निकालेंगे.
अब सवाल यह है कि आखिरकार शीर्ष नेतृत्व के सबसे खास माने जाने वाले भूपेंद्र यादव को लेकर मिजाज क्यों बदला. दरअसल बिहार में हाल में हुए घटनाक्रम ने भाजपा नेतृत्व को चौकन्ना कर दिया है. बिहार में स्थानीय निकाय कोटे से एमएलसी के 24 सीटों पर चुनाव हुए. बारह सीटिंग सीट पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा पांच सीटें हार गई. फिर बोचहा विधानसभा सीट पर उप चुनाव में तो भाजपा की भद्द पिट गयी. इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार 36 हजार से भी ज्यादा वोटों से चुनाव हार गईं. भाजपा के लिए यह शुभसंकेत नहीं था. उसे लगा कि वह बिहार में अपनी जमीन खो रही है. पार्टी को भी समझ में आया कि सहयोगी पार्टी जदयू के वोट उसे ट्रांसफर नहीं हो रहे हैं. फिर लोगों में राजद और जदयू के संबंधों को लेकर संदेश भी गया तो भाजपा का चौकन्ना होना स्वभाविक था.
माना जा रहा है कि पार्टी अभी और कई फेरबदल कर सकती है. फिलहाल बिहार भाजपा की पूरी कमान भूपेंद्र यादव समर्थकों के हाथ में है. भाजपा के नेता आपसी बातचीत में पार्टी को भूजपा यानि भूपेंद्र जनता पार्टी कहने लगे थे. ऐसे में बिहार में संगठन में भी फेरबदल किया जा सकता है. कुछ महीने बाद पार्टी को नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति करनी है. नया प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र यादव गुट का नहीं होगा, यह साफ हो गया है. भाजपा में चर्चा है कि नया प्रदेश अध्यक्ष धर्मेंद्र प्रधान की पसंद का हो सकता है. बिहार में एनडीए मंत्रिमंडल के पुनर्गठन की भी चर्चा है और इसमें कुछ मौजूदा मंत्रियों की छुट्टी की जा सकती है. इनमें सबसे ज्यादा खतरा भूपेंद्र यादव के खास माने जाने वाले मंत्री रामसूरत राय की है, जिन्हें बोचहा उपचुनाव में हार का सबसे बड़ा जिम्मेदार माना जा रहा है. इनके अलावा केंद्रीय मंत्री पर भी गाज गर सकती है. क्योंकि भूपेंद्र यादव खेमा उन्हें लगातार मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रहा था. हर दूसरे दिन खबर उड़ती थी कि नीतीश कुमार केंद्र में जाएंगे और उनकी जगह भाजपा का मुख्यमंत्री होगा. लेकिन धर्मेंद्र प्रधान ने साफ कर दिया है कि भले भाजपा के नेता-मंत्री अपने को सुपर बॉस कहते रहें, बिहार में तो नीतीश कुमार ही सुपर बॉस हैं.