नई दिल्ली :सोमवार को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से महिलाओं के प्रति सम्मान को देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण स्तंभ बताया. इस मुद्दे पर बोलते हुए पीएम मोदी इतना भावुक हुए कि कुछ पलों के लिए बोलते-बोलते रुक गए. तब लगा था कि महिला सम्मान को लेकर वो काफी गंभीर हैं. लेकिन शाम होते होते प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात से बिलकीस बानो गैंगरेप मामले में उम्रकैद की सज़ा पाए सभी 11 मुजरिमों को रिहा करने की खबर आई. इसने महिला सशक्तिकरण को लेकर पीएम मोदी की गंभीरता और प्रतिबद्धता की हवा निकाल दी.
महिलाओं के सम्मान पर क्या बोले पीएम मोदी?
पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश में महिलाओं के प्रति लोगों के व्यवहार का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, ‘मैं एक पीड़ा जाहिर करना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि शायद ये लाल किले का विषय नहीं हो सकता. मेरे भीतर का दर्द कहां कहूं. वो है किसी न किसी कारण से हमारे अंदर एक ऐसी विकृति आई है, हमारी बोल चाल, हमारे शब्दों में.. हम नारी का अपमान करते हैं. क्या हम स्वभाव से, संस्कार से रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं? नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है. ये सामर्थ्य मैं देख रहा हूं.’ मोदी यह बोलते हुए इतना भावुक हो गए थे कि कुछ देर के लिए बोलते-बोलते रुक गए. पीएम ने कहा कि भारत के विकास के लिए महिलाओं का सम्मान एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, हमें अपनी ‘नारी शक्ति’ का समर्थन करने की ज़रूरत है.
बिलकीस बानो के गुनाहगारों की रिहाई
लाल किले से दिए गए पीएम मोदी के इस भाषण के कुछ ही घंटों बाद गुजरात सरकार ने नारी शक्ति का ऐसा सम्मान किया कि जैसा पहले कभी देखने सुनने में नहीं आया. बहुचर्चित बिलकीस बानो के गैंगरेप और उसके परिवार के सात लोगों की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सज़ा पाए सभी 11 मुजरिमों को रिहा कर दिया गया. गुजरात सरकार ने ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल मई में क़ैदी समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर सुनवाई के बाद गुजरात सरकार को सज़ा पाए अपराधियों की समय से पहले रिहाई की 1992 की नीति के तहत दो महीने में फैसला करने के निर्देश दिए थे. इस फैसले को लेकर गुजरात सरकार की नीयत के साथ ही सुप्रीम कोर्ट तक पर सवाल उठ रहे हैं.
मुजरिमों के हीरो की तरह सम्मान पर सवाल
गुजरात सरकार के फैसले के बाद जब 11 मुजरिम गोधरा की जल से बाहर आए तो स्थानीय लोगों न उनका सम्मान किया. उनके सम्मान का वीडियो गुजरात के कुछ न्यूज़ चैनलों पर दिखाया गया. यह शर्मनाक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. इसमें साफ देख सकता है कि कोई मुजरिमों को मिठाई खिला रहा है तो कोई उनके पैर छू रहा है. कुछ महिलाएं मुजरिमों का तिलक करती हुईं भी दिख रही हैं. गैंगरेप और हत्या जैसे संगीन अपराधों में उम्रकैद की सजा पाए अपराधियों का ऐसा स्वागत और सम्मान बताता है कि लाल किले से की गई पीएम मोदी की अपील का इन लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा है. वैसे भी मुसलमानों के खिलाफ अपराध को अंजाम देने वाले अपराधियों के जमानत पर छूटने के बाद उनके स्वागत समारोह अब देश में आम बात हो गई है. यहां तो अपराधियों की सज़ा माफ करके बाकायदा रिहाई हुई है.
संगीन अपराधियों का रिहाई का दोषा कौन?
यहां ये सवाल महत्वपूर्ण है कि आखिर इतने संगीन अपराधों में उम्रकैद की सज़ा पाए अपराधियों को 15 साल की सज़ा को बाद क्यों रिहा कर दिया गया. क्या उनकी रिहाई में कोई राजनीतिक संदेश छिपा हुआ है. आख़िर कौन है उनकी रिहाई का जिम्मेदार? गुजरात सरकार, देश की सबसे बड़ी अदालत या सज़ा पूरी होने से पहले रिहाई को लेकर बनी नीति? बिलकीस बानो गैंगरेप मामले के 11 मुजरिमों को छोड़े जाने में दो संस्थाओं की बड़ी भूमिका है. जिसमें सबसे पहले अदालत है और दूसरा अदालत के निर्देश का पालन करने वाली गुजरात सरकार है. दोनों ने इस मामले के फैसले पर दूरगामी विचार नहीं किया. नतीजा सामने है, जेल से बाहर आने पर उन 11 गैंगरेप के मुजरिमों का समाज ने सम्मान तक किया. हालांकि अपराधियों के सम्मान से ज्यादा बड़ा मुद्दा ये है कि जिस सिस्टम ने उन 11 दोषियों को छोड़ा है, उससे सवाल पूछा जाना चाहिए या नहीं?
मुजरिमों की रिहाई पर उठ रहे हैं सवाल
बिलकीस बानो गैंगरेप के सजायाफ्ता मुजरिमों की समय से पहले रिहाई को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. गुजरात के मानवाधिकार वकील शमशाद पठान कहते हैं कि बिलकीस गैंगरेप मामले से कम जघन्य अपराध करने वाले बड़ी संख्या में दोषी बिना किसी छूट के जेलों में बंद हैं. उनके बारे में तो सरकार ने कोई फैसला नहीं किया. जब कोई सरकार ऐसा फैसला लेती है तो सिस्टम में पीड़ित की उम्मीदें कम हो जाती हैं. वो कहते हैं कि ऐसे कई आरोपी हैं जिनकी सजा की अवधि पूरी हो गई है, लेकिन उन्हें इस आधार पर जेल से रिहा नहीं किया गया है कि वे किसी गिरोह का हिस्सा हैं. या फिर एक या दो हत्याओं में शामिल रहे हैं. लेकिन इस तरह के जघन्य मामलों में, गुजरात सरकार आसानी से दोषियों को छूट की मंजूरी दे देती है, उन्हें जेल से बाहर निकलने की अनुमति मिल जाती है. ये सिर्फ हत्या और गैंगरेप का ही नहीं बल्कि जघन्य प्रकार के गैंगरेप का भी मामला था.
क्या था बिलकीस बानो गैंगरेप मामला?
तीन मार्च 2002 को गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकीस बानो के परिवार पर हमला किया था. अभियोजन पक्ष के अनुसार बिलकीस उस समय पांच महीने की गर्भवती थीं. उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. इतना ही नहीं, उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. इस पर देशभर में काफी नाराजगी देखी गई थी. इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए. इस मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था. अहमदाबाद में ट्रायल शुरू हुआ. हालांकि, बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी की कि गवाहों पर दबाव बनाया जा सकता है और सीबीआई क हाथ लगे सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट को ट्रांसफर कर दिया.
कब हुई थी सज़ा?
सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 जनवरी 2008 को बिलकीस बानो के परिवार के सात सदस्यों से गैंगरेप और हत्या के आरोप में 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं. बाद में बंबई होईकोर्ट ने बी इस सज़ा को बरकरार रखा था. अब उन्हीं 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किया गया है.
कब और कैसे शुरू हुई माफी की प्रक्रिया?
उम्रकैद की सजा पाए 11 मुजरिमों में एक, राधेश्याम शाह ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 और 433 के तहत सजा को माफ करने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी कि उनकी छूट के बारे में फैसला करने वाली “उपयुक्त सरकार” महाराष्ट्र है न कि गुजरात. गुजरात हाईकोर्ट का यह आदेश महत्वपूर्ण था. क्योंकि ट्रायल महाराष्ट्र में चला था. उसने साफ शब्दों में कहा कि महाराष्ट्र सरकार विचार करे. उसी समय गुजरात सरकार का इरादा अगर नेक होता और वो 11 दोषियों को जेल से बाहर आने का रास्ता रोकने को तैयार होती तो वो तमाम कदम उठा सकती थी. गुजरात सरकार चुप रही. इसके बाद मुजरिम राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह 1 अप्रैल, 2022 तक बिना किसी छूट के 15 साल 4 महीने जेल में रहा. सुप्रीम कोर्ट में मई 2022 में इसके बाद जो हुआ, उसी से इन 11 मुजरिमों के बाहर आने का रास्ता साफ हुआ.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 9 जुलाई 1992 की नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश देते हुए दो महीने के भीतर फैसला करने को कहा. गुजरात सरकार ने इस मामले पर फैसला करने के लिए पंचमहल के आयुक्त सुजल मायत्रा के नतृत्व में एक समिति समिति बनाई थी. समिति ने सर्वसम्मति से मामले के सभी 11 दोषियों को क्षमा करने के पक्ष में फैसला किया और सरकार को सिफारिश सौंप दी. गुजरात सरकार ने समिति की सिफारिश को मंजूर करते हुए इस पर आखिरी मोहर लगा दी. नतीजतन स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गैंगरेप और हत्या के सभी 11 दोषी गोधरा जेल से रिहा कर दिए गए. ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की अर्जी पर गौर करने के निर्देश दिए थे, रिहा करने का नहीं. गुजरात सरकार दोषियों की रिहाई के लिए बाध्य नहीं थी. लेकिन उसने राजनीतिक संदेश देने के लिए इन दोषियों को रिहा किया.
गैंगरेप और हत्या के मुजरिमों की ये रिहाई कई सवाल छोड़ गई है. कानूनी दांवपेच के सवाल तो कई है. सभी अहम हैं. लेकिन सबसे बड़ी सवाल राजनीतिक नैतिकता का है. एक तरफ पीएम मोदी नारी सम्मान को देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण स्तंभ बताते हैं और उनकी गुजरात मॉडल नारी सम्मान को रौंदने वाले दरिंदों को उम्रकैद की सजा माफ करके उन्हें आज़ाद कर देता है. समाज उनका हीरो की तरह स्वागत और सम्मान करता है. भला सशक्तिकरण के नारे का इससे बड़ा मज़ाक भला क्या हो सकता है?
—इंडिया न्यूज़ इस्ट्रीम