नई दिल्ली : केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के लिए पहले हिमालयन फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। ये फिल्म महोत्सव पांच दिनों तक चलेगा। इसका आयोजन 24 सितंबर से 28 सितंबर तक लद्दाख की राजधानी लेह में किया जाएगा। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर इस फिल्म महोत्सव का उद्घाटन करेंगे।
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के विक्रम भट्ट ने कारगिल युद्ध मे देश को विजय दिलाई थी ।उन्हें “करगिल का शेर “भी कहा जाता है तथा सेना की ओर से उनका कोड नाम “शेरशाह था।करगिल युद्ध जीतने के बाद एक और चोटी 4875पर विजय पाने के क्रम में 5 दुश्मनों को मार गिराने के बाद भट्ट हमले में जख्मी हो गए ।अंत मे उन्होंने प्राण त्याग दिए।
1996 में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम कैप्टन बनाये गए।
इसके बाद नगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की ज़िम्मेदारी कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली। कैप्टन बत्रा अपनी कंपनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा की ओर से इस क्षेत्र की तरफ बडे़ और बिना शत्रु को भनक लगे हुए उसकी मारक दूरी के भीतर तक पहुंच गए। कैप्टेन बत्रा ने अपने दस्ते को पुर्नगठित किया और उन्हें दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण के लिए प्रेरित किया। सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होनें बड़ी निडरता से शत्रु पर धावा बोल दिया और आमने-सामने के गुतथ्मगुत्था लड़ाई मे उनमें से चार को मार डाला। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्ज़े में ले लिया।कैप्टन विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया।
इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्ज़े में लेने का अभियान शुरू कर दिया और इसके लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी दी गयी। उन्हें और उनकी टुकड़ी एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफ़ाए का कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर खड़ी ढलान थी और जिसके एकमात्र रास्ते की शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की हुई थी। कार्यवाई को शीग्र पूरा करने के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा ने एक संर्कीण पठार के पास से शत्रु ठिकानों पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। आक्रमण का नेतृत्व करते हुए आमने-सामने की भीषण गुत्थमगुत्था लड़ाई में अत्यन्त निकट से पांच शत्रु सैनिकों को मार गिराया। इस कार्यवाही के दौरान उन्हें गंभीर ज़ख्म लग गए। गंभीर ज़ख्म लग जाने के बावजूद वे रेंगते हुए शत्रु की ओर बड़े और ग्रेनेड फ़ेके जिससे उस स्थान पर शत्रु का सफ़ाया हो गया। सबसे आगे रहकर उन्होंने अपने साथी जवानों को एकत्र करके आक्रमण के लिए प्रेरित किया और दुश्मन की भारी गोलीबारी के सम्मुख एक लगभग असंभव सैन्य कार्य को पूरा कर दिखाया। उन्होंने जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों के साथ, जिनमे लेफ्टिनेंट अनुज नैयर भी शामिल थे, कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। किंतु ज़ख्मों के कारण यह अफ़सर वीरगति को प्राप्त हुए।
उनके इस असाधारण नेतृत्व से प्रेरित उनके साथी जवान प्रतिशोध लेने के लिए शत्रु पर टूट पड़े और शत्रु का सफ़ाया करते हुए प्वॉइंट 4875 पर कब्ज़ा कर लिया। कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाई.के. जोशी ने विक्रम को शेर शाह उपनाम से नवाजा था।
सरकार ने 15 अगस्त 1999 को बत्रा को सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा था।उनपर इस साल 12 अगस्त को शेरशाह फ़िल्म रिलीज हुई थी। हिमालय फ़िल्म समारोह के उद्घटान सत्र में इसफ़िल्म के निर्माता विश्व वर्धन और अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा भी मौजूद रहेंगे। फ़िल्म समारोह के दौरान फ़ूड प्रदर्शनी , सांस्कृतिक एवम संगीत कार्यक्रम , कार्यशाला एवम पुरस्कार प्राप्त फिल्में भी दिखाई जाएगी।
——— इंडिया न्यूज स्ट्रीम